सदाचार द्वारा बुराई पर जीत का दर्शन

Webdunia
- होशंग घ्यारा

जनेऊ संस्कार एवं अंतिम संस्कार
' ईश्वर ने अपनी संपूर्ण सृष्टि के प्रत्येक अंग में विपरीत वृत्तियों की जोड़ियाँ बनाई हैं। ऐसी ही एक जोड़ी सदाचारी मन तथा दुराचारी मन की है। सदाचारी मन सकारात्मक है, सृजनशील है और व्यक्ति को विधाता की ओर ले जाने की क्षमता रखता है। दुराचारी मन स्वतः ही इसके ठीक विपरीत भूमिका अपना लेता है और सदाचारी मन को अपना काम करने से रोकने का प्रयास करता है। जीवन अच्छाई तथा बुराई की ताकतों के बीच निरंतर संघर्ष है।'

यह है विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक जरथोस्ती धर्म के दर्शन का सार। प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए इस धर्म की नींव रखी। यह बात है लगभग 600 ईसा पूर्व की (हालाँकि कुछ इतिहासकार इसे 6000 ईसा पूर्व भी मानतें हैं)।

जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा धार्मिक एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है।

सातवीं सदी ईस्वी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुरातन वैभव तथा शक्ति गँवा चुका था। जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली तो अपने धर्म की रक्षा हेतु अनेक जरथोस्ती धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली। यहाँ वे 'पारसी' (फारसी का अपभ्रंश) कहलाए। आज विश्वभर में मात्र सवा से डेढ़ लाख के बीच जरथोस्ती हैं। इनमें से आधे से अधिक भारत में हैं।

जरथोस्ती दर्शन के मूल तत्व
फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने 'अहुरा मजदा' कहा अर्थात 'महान जीवन दाता'। अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है। जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है।

इनमें एक है अहुरा मजदा की आत्मा, 'स्पेंता मैन्यू'। दूसरी है दुष्ट आत्मा 'अंघरा मैन्यू'। इस दुष्ट आत्मा के नाश हेतु ही अहुरा मजदा ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव एवं अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया। वे जानते थे कि अपनी विध्वंसकारी प्रकृति तथा अज्ञान के चलते अंघरा मैन्यू इस विश्व पर हमला करेगा और इसमें अव्यवस्था, असत्य, दुःख, क्रूरता, रुग्णता एवं मृत्यु का प्रवेश करा देगा।

मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है, की इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श एवं अमरत्व। इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व की तमाम बुराई को समाप्त कर देगा।

कुछ अधिक वैज्ञानिक कसौटी पर धर्म को परखने वाले 'स्पेंता मैन्यू' की व्याख्या अलग तरह से करते हैं। इसके अनुसार 'स्पेंता मैन्यू' कोई आत्मा नहीं, बल्कि संवृद्धिशील, प्रगतिशील मन अथवा मानसिकता है। अर्थात यह अहुरा मजदा का एक गुण है, वह गुण जो ब्रह्माण्ड का निर्माण एवं संवर्द्धन करता है। ईश्वर ने स्पेंता मैन्यू का सृजन इसीलिए किया था कि एक आनंददायक विश्व का निर्माण किया जा सके।

प्रगतिशील मानसिकता ही पृथ्वी पर मनुष्यों को दो वर्गों में बाँटती है। सदाचारी, जो विश्व का संवर्द्धन करते हैं तथा दुराचारी, जो इसकी प्रगति को रोकते हैं। जरथुस्त्र चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर तुल्य बने, जीवनदायी ऊर्जा को अपनाए तथा निर्माण, संवर्द्धन एवं प्रगति का वाहक बने। इस प्रकार देखा जाए तो स्पेंता मैन्यू हमारे जीवन की दिशा नर्देशक प्रेरणा है।

पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को स्वयं को कायम ही नहीं रखना है, बल्कि अपना विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। जरथोस्ती धर्म में जड़ता की अनुमति नहीं है। विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती हैं, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ कर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।

जीवन के प्रत्येक क्षण का एक निश्चित उद्देश्य है। यह कोई अनायास शुरू होकर अनायास ही समाप्त हो जाने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है। सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से, अच्छाई द्वारा, अच्छाई के लिए जीना है। 'हुमत' (सद्विचार), 'हुउक्त' (सद्वाणी) तथा 'हुवर्षत' (सद्कर्म) जरथोस्ती जीवन पद्धति के आधार स्तंभ हैं।

जरथोस्ती धर्म में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।

निराशावाद व अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्त्र चाहते हैं कि मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाए, खुश रहे। वह जो भी करे, बस एक बात का ख्याल अवश्य रखे और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित न हो। भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन की मनाही नहीं है, लेकिन यह भी कहा गया है कि समाज से तुम जितना लेते हो, उससे अधिक उसे दो। किसी का हक मारकर या शोषण करके कुछ पाना दुराचार है। जो हमसे कम सम्पन्न हैं, उनकी सदैव मदद करना चाहिए।

जरथोस्ती धर्म में दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थायी जीत माना गया है। इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ होगा। यदि वह सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में वास पाएगी और यदि दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्य की गहराइयों में जाएगी, लेकिन दुराचारी आत्मा की यह स्थिति भी अस्थायी है। आखिर जरथोस्ती धर्म विश्व का अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता है, बुराई की सजा को नहीं।

अतः यह मान्यता है कि अंततः कई मुक्तिदाता आकर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे। तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्वसामर्थ्यवान होंगे। फिर आत्माओं का अंतिम फैसला होगा। इसके बाद भौतिक शरीर का पुनरोत्थान होगा तथा उसका अपनी आत्मा के साथ पुनर्मिलन होगा। समय का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और अहुरा मजदा की सात कृतियाँ शाश्वत धन्यता में एक साथ आ मिलेंगी और आनंदमय, अनश्वर अस्तित्व को प्राप्त करेंगी।

अग्नि का विशेष स्थान
जरथोस्ती धर्म में अग्नि को विशेष दर्जा प्राप्त है। जरथुस्त्र ने इसे सत्य व सदाचार का भौतिक प्रतीक माना है। साथ ही यह प्रकाश, ऊष्मा तथा जीवन का स्रोत भी है। यह जीवन की वह ऊर्जा है जो अहुरा मजदा की शेष छह कृतियों में प्रविष्ट होकर उन्हें क्रियाशील बनाती है। अग्नि पवित्रता की सवोत्कृष्ट प्रतीक है। यह जिसे भी छूती है उसे पवित्र कर देती है।

अग्नि को कभी अशुद्ध नहीं किया जा सकता। इन्हीं कारणों के चलते अग्नि को ईश्वर का प्रतीक मानकर जरथोस्ती इसकी आराधना करते हैं। सभी धार्मिक क्रिया-कलाप अग्नि की उपस्थिति में ही संपन्न कराए जाते हैं। धर्म ग्रंथ 'अवस्ता' का पाठ कर ईश आराधना की जाती है।

प्रमुख त्योहार
जरथोस्ती धर्मावलंबियों के चार प्रमुख त्योहार होते हैं। यह हैं नवरोज (नव वर्ष), पतेती (वर्ष का अंतिम दिवस), खोरदाद साल (पैगंबर जरथुस्त्र का जन्मदिवस) तथा जमशेदी नवरोज। जमशेदी नवरोज फारस के लोकप्रिय शहंशाह जमशेद की याद में मनाया जाने वाला त्योहार है। प्राचीनकाल में इसी को नव वर्ष के रूप में मनाया जाता था। आज भी ईरान आदि में इसे नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।

यह हर वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 21 मार्च को आता है। वैसे भारत में बसे पारसियों सहित कई अन्य जरथोस्ती धर्मावलंबी एक पृथक कैलेंडर के अनुसार नवरोज मनाते हैं, जो प्रायः अगस्त माह में आता है।

जनेऊ संस्कार एवं अंतिम संस्कार
कोई व्यक्ति जन्म से जरथोस्ती नहीं होता। जनेऊ संस्कार (नवजोत) द्वारा उसका विधिवत जरथोस्ती धर्म में प्रवेश होता है। यह संस्कार किशोरावस्था के आरंभ से पूर्व (प्रायः 7 से 13 वर्ष की उम्र के बीच) संपन्न कराया जाता है। लड़कों व लड़कियों दोनों का जनेऊ संस्कार होता है।

इसमें मलमल से बनी एक विशेष बनियान (जिसे 'सदरा' कहा जाता है) पहनाई जाती है तथा उसके ऊपर जनेऊ (जिसे कश्ती कहते हैं) एक विशेष विधि से बाँधी जाती है। इसके बाद आजीवन सदरा व कश्ती को धारण किए रखना अनिवार्य है।

जरथोस्ती धर्मावलंबियों में मृतकों के अंतिम संस्कार की विधि औरों से हटकर है। पहाड़ी पर बने एक विशेष कूप में शव को रख दिया जाता है, जहाँ गिद्ध उसका भक्षण कर लेते हैं। इस प्रकार शव के कारण पृथ्वी, जल अथवा वायु प्रदूषण नहीं होता। वैसे कुछ समय से पारसी समाज में दफनाने की विधि की स्वीकार्यता भी बढ़ी है।

आज मानव की विशाल भीड़ में जरथोस्ती धर्मावलंबियों की संख्या लगभग नगण्य है। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि आने वाले दशकों में यह कौम शायद पूरी तरह समाप्त हो जाए, लेकिन सच्चे जरथोस्तियों को इसका कोई भय नहीं है। वे जानते हैं कि संसार में स्थायी कुछ भी नहीं है। महत्वपूर्ण केवल यह है कि पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुरूप सदाचारी जीवन जिया जाए, प्रेम का प्रकाश फैलाया जाए, दूसरों को सुख देने में स्वयं का सुख प्राप्त किया जाए ताकि संपूर्ण जगत अच्छाई के आलोक में जगमगा उठे।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन करना चाहिए ये 9 अचूक उपाय, होगी धन की वर्षा

12 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

12 नवंबर 2024, मंगलवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadashi 2024 date: देव उठनी एकादशी की पूजा के शुभ मुहूर्त, तुलसी विवाह की विधि मंत्रों सहित

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे