कभ ी- कभी ईश्वर किसी पर इतना कृपालु हो जाता है कि वह ईश्वर के देवदूत में बदल जाता है। लगता है जैसे ईश्वर ने अपनी ही इच्छा को पूरा करने के लिए उस देवदूत को चुना। वह किसी में अपना देवदूत इसलिए चुनता है कि वह देवदूत पृथ्वी पर जाकर कुछ ऐसा करे कि उसके साथ ही उसकी कला के संपर्क में आना वाला भी अपने जीवन में ऐसे मधुरतम अनुभव हासिल करे जो जीवन को ज्यादा बेहत र, ज्यादा संवेदनशील बना सके।
जीवन में महक पैदा कर सके। किसी दिन शुभ मुहूर्त में ईश्वर ने अपने देवदूत के रूप में पंडित भीमसेन जोशी को चुना होगा। कि यह देवदूत अपनी साधना और तप स े, अपने सुरीले कंठ और अपनी खनकदार गायकी से लोगों को आजीवन तृप्त कर सके। उनके तपते मन पर शीतल जल की बौछारें कर दे। उनका ताप हर ले।
बस तभी से पंडित भीमसेन जोशी ईश्वर के दूत बनकर अपने कंठ से वह अखंड झरना बहाए चले जा रहे हैं जिसमें स्नान करते हुए रसिकजन अपने को धन्य-धन्य समझते हैं।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि वर्तमान हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत परिदृश्य में पंडित भीमसेन जोशी का कद और गायकी अतुलनीय है। उनकी आवाज का स्पर्श पाकर हर सुर गमकने लगता है। उनकी आवाज में राग किसी मेहराबदार महल के रूप में साकार होकर चमकने लगता है।
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हम उस राग का वैभव देखकर चमत्कृत हो उठते हैं। यह उनकी कल्पनाशीलत ा, संगीत के प्रति समर्पण का ही प्रताप है कि वे जो भी गाते है ं, हमें उसका अलौकिक रस प्राप्त होता है।
उनके बालमन में शायद यही धुन सवार थी कि उन्हें गायक बनना है। संगीत के प्रति उनका प्रेम अगाध था और यही कारण है कि मन में गूँजते किसी सुर को पकड़ते घर से दूर भाग ग ए... हमेशा-हमेशा के लिए संगीत की स्वर लहरियों पर सवार होने के लिए।
ईश्वर का यह दूत तो अपने कंठ से बहते सुरों के अखंड झरने से तमाम रसिकजनों को तृप्त कर रहा है। हम सब उन्हें नमन करते हैं कि अपने कंठ से उन्होंने हमारा जीवन सुरीला बनाया।
आज यह गायक भारतरत्न है लेकिन मुझे लगता है कि हमारी सरकार किसी महान कलाकार को पुरस्कार तब देती है जब वह अपना सब कुछ कला को समर्पित करते हुए अपने जीवन की संध्याबेला में अस्वस्थ हो जाता है।
यहाँ यह बात याद की जा सकती है कि हमारे देश के अप्रतिम फिल्मकार सत्यजीत राय को भी भारतरत्न तब दिया गया था जब वे अपने जीवन की बेहतरीन फिल्में बना चुके थे और अपनी संध्याबेला में अस्वस्थ होकर लगभग मृत्युशैया पर थे।
ऑस्कर अकादमी ने उनके फिल्मों में योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया थ ा, उसके बाद भारत सरकार को अकल आई थी कि राय को भारतरत्न दिया जाना चाहिए। सरकार अपने पूर्व अनुभवों से कुछ भी नहीं सीखती। पंडित भीमसेन जोशी के संदर्भ में उसका यह व्यवहार बदला नहीं है।
कभी-कभी लगता है कि आखिर सरकार किसी कलाकार को यह सम्मान तब क्यों नहीं देती जब कलाकार अपनी कला के शिखर पर होता ह ै, अपने चरम पर होता है। लेकिन फिर यह भी सोचता हूँ कि कलाकार ये पुरस्कार लेते हुए ज्यादा खुश भी नहीं होते होंगे क्योंकि वे लोगों से जो प्रेम उन्हें मिल चुका होता है वह उनके जीवन का असल पुरस्कार होता है। क्या भारतरत्न पुरस्कार मिलने पर पंडितजी भी ऐसा ही नहीं सोचते होंग े?
ईश्वर का यह दूत तो अपने कंठ से बहते सुरों के अखंड झरने से तमाम रसिकजनों को तृप्त कर रहा है। हम सब उन्हें नमन करते हैं कि अपने कंठ से उन्होंने हमारा जीवन सुरीला बनाया।