सुरों के बादशाह यूँ ही नहीं बने

एक नजर में पंडित जोशी

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* बचपन में स्कूल से लौटते समय पंडितजी ग्रामोफोन रेकार्ड की दुकान पर रुककर गाने सुनते थे।

* मात्र 11 वर्ष की उम्र में पंडितजी ने गुरु की खोज में घर छोड़ा।

* गायकी के अलावा पंडितजी ने अपने शरीर का भी खूब ख्याल वर्जिश के माध्यम से रखा है।

* सवई गंधर्व गायन सिखाने के मामले में काफी सख्त थे, जिसका असर पंडितजी के गायन में भी देखने को मिलता है। वे अपने आप में गुम होकर प्रस्तुति देते हैं ताकि हरेक सुर बिलकुल कसा हुआ लगे।

* मात्र 19 वर्ष की उम्र में वे मंचीय प्रस्तुति देने लगे थे।

* अभोगी, पूरिया, दरबारी, मालकौंस, तोड़ी, ललित, यमन, भीमपलासी, शुद्ध कल्याण आदि पंडितजी के पसंदीदा राग हैं। इसके अलावा अभंग में माझे माहेर पंढरी, पंढरी चा वास और भजन में जो भजे हरी को सदा ठुमरी पिया के मिलन की आस आदि काफी प्रसिद्ध है।

* 6 से 8 आर्वतन तक ताने गाना यह पंडितजी की विशेषता है।

* पंडितजी तंबाकू वाला पान खाने का शौक रखते हैं, साथ ही उन्हें कार चलाने का भी शौक है।

* ख्याल गायकी के सम्राट उ. अमीर खाँ साहब ने भी पंडितजी के बारे में कहा था कि मेरे बाद ये ख्याल गायकी को काफी आगे ले जाएगा।

*मिले सुर मेरा तुम्हारा ने पंडितजी को घर-घर में लोकप्रिय बना दिया।

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