परवेज मुशर्रफ के बाद पाकिस्तान

संदीप तिवारी
पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने सरकार की ओर से उनके ऊपर लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए अपना पद छोड़ने की घोषणा की है, लेकिन वे पद से हटने के बाद देश में ही रहेंगे या देश से बाहर चले जाएँगे, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा, न ही उन्होंने किसी तरह का संकेत दिया है। हालाँकि यह माना जा रहा है कि पाकिस्तान के सत्तारूढ़ गठबंधन की साझेदार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) चाहती है कि मुशर्रफ देश छोड़कर चले जाएँ।

देश के नाम अपने भावुक संबोधन में मुशर्रफ ने कहा कि नौ साल के शासन के दौरान मैंने देश का रुतबा बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जब मैंने सत्ता संभाली थी तो कोई पाकिस्तान की सुनता तक नहीं था।

मुशर्रफ ने कहा कि मेरे ऊपर लगाए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि मुझे अपने देश से बेपनाह मोहब्बत है और नौ साल के शासनकाल के दौरान मेरी कोई भी नीति गलत नहीं रही। उन्होंने कहा कि मेरी नीयत हमेशा साफ रही और मैंने सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया।

सोमवार की सुबह से इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि मुशर्रफ दोपहर एक बजे के संबोधन में पद छोड़ने की घोषणा कर सकते हैं। हालाँकि उनके प्रवक्ता रिटायर्ड मेजर जनरल राशिद कुरैशी ने इस्तीफे की अटकलों को खारिज कर दिया था। कुरैशी ने बताया कि मुशर्रफ ने सुबह अपने कानूनी और राजनीतिक सलाहकारों से राय मशविरा किया है। इसके बाद वह खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों से भी मिले।

  मुझे अपने देश से बेपनाह मोहब्बत है और नौ साल के शासनकाल के दौरान मेरी कोई भी नीति गलत नहीं रही। उन्होंने कहा कि मेरी नीयत हमेशा साफ रही और मैंने सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया।      
पर मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार मुशर्रफ इस्तीफा देने के बाद अब वतन छोड़कर सऊदी अरब भी जा सकते हैं। सऊदी अरब मुशर्रफ की तरफ से इस राजनीतिक गतिरोध का कोई रास्ता निकालने के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ शुरू से वार्ता कर रहा है। पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में सऊदी अरब की घुसपैठ कोई नई बात नहीं है। नवाज शरीफ के मामले में भी सऊदी शाही परिवार ने मामले का समाधान निकाला था।

सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी इस्तीफे के बाद मुशर्रफ को देश के बाहर जाने देने के मुद्दे पर राजी है, लेकिन पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) और उसके नेता नवाज शरीफ कह चुके हैं कि मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। देशद्रोह का आरोप सिद्ध होने पर फाँसी तक की सजा दी जा सकती है। जबकि पीपीपी का कहना है कि मुशर्रफ पर देशद्रोह का मुकदमा चले या नहीं, इसका फैसला संसद को करना चाहिए।

समझा जाता है कि मुशर्रफ ने इस्तीफा देने के पहले सरकार से अपने लिए सेफ पैसेज (सुरक्षित रास्ते) की भी माँग की होगी। 'द न्यूज' में रक्षामंत्री चौधरी अहमद मुख्तार के हवाले से मुशर्रफ द्वारा सरकार से सुरक्षित रास्ता माँगने और राष्ट्रपति के करीबी सिपहसालारों के हवाले से उनके इस्तीफे के फैसले की जानकारी का संकेत दिया गया था।

पिछले कई दिनों से ऐसी खबरें आ रही थीं कि ब्रिटेन और अमेरिका के राजनयिक भी परवेज मुशर्रफ के लिए सुरक्षित रास्ता निकालने की कोशिश में बातचीत कर रहे थे। ये राजनयिक चाहते थे कि मुशर्रफ स्वेच्छा से पद छोड़ दें ताकि उनके ख‍िलाफ देशद्रोह का मुकदमा न चलाया जाए अन्यथा इस तरह के मुकदमे में उन्हें फाँसी की सजा भी दी जा सकती है।

पाकिस्तान में जो कुछ भी घटता है भारत की उसमें खासी रुचि होना स्वाभाविक है क्योंकि पाकिस्तान हमारा ऐसा पड़ोसी है जिसके साथ हमारे विवाद खत्म होने का नाम नहीं लेते हैं और न ही दोनों देश पूरी तरह से शाँति से रह पाते हैं। ऐसे में जब पाकिस्तान के उस राष्ट्रपति को हटाए जाने की बात हो रही हो, जिसके शासनकाल में भारत पाकिस्तान के बीच के संबंध तेजी से सुधरे हों, तब हमारे लिए चिंता होना स्वाभाविक ही है।

ऐसे में यह सवाल अहम है कि मुशर्रफ का जाना भारत के लिए क्या चुनौतियाँ लेकर आ सकता है? पर लगता तो यह है कि मुशर्रफ के जाने से कोई कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मुशर्रफ वो ताकत नहीं रखते जो वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष रहते हुए रखते थे। इन दिनों वे अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रपति भर थे।

इसका अर्थ है कि पाकिस्तान में जो चुनी हुई सरकार आज है, भारत को उसी के साथ बातचीत जारी रखनी होगी। भले ही इस सरकार के साथ अब तक भारत के अनुभव बहुत अच्छे नहीं रहे हों। पाकिस्तान की भारत के प्रति नीति काफी हद तक नवाज शरीफ और आसिफ जरदारी के बीच रिश्तों पर भी निर्भर करेगी। मुशर्रफ जैसे एक कॉमन एनेमी के हटने के बाद दोनों पक्षों के हित टकरा सकते हैं। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि पाक के भारत के साथ रिश्ते और तनावपूर्ण हो जाएँ।

हाल के दिनों में भारत यह दावा करता रहा है कि नियंत्रण रेखा की तरफ से पाकिस्तानी घुसपैठ बढ़ी है और नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बढ़ती जा रही है। जम्मू-कश्मीर में फैली अशाँति से भी भारत विरोधी नेता लाभ उठाने के बारे में सोच सकते हैं। कम से कम घाटी के अलगाववादियों, उग्रवादियों को यह समय ऐसा लग सकता है जिसके दौरान समय रहते अधिकाधिक लाभ उठाया जाए।

वर्तमान परिस्थितियों को देख कर लगता है कि या तो कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है उसे रोकने की क्षमता इस सरकार में नहीं है या फिर पाकिस्तान में कश्मीर के प्रति वर्तमान नीति को लेकर सेना और देश की सरकार में एक अघोषित आम सहमति है।

भारतीय कश्मीर में अस्थिरता को बढ़ावा देने की होने की पीछे कई कारण हो सकते हैं, सबसे पहले जम्मू-कश्‍मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों को प्रभावित करना। पाँच सालों के संघर्ष विराम के बाद नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ता दिख रहा है।

कश्मीर में तनाव बढ़ाने के पीछे अमेरिका की भूमिका भी हो सकती है और अब ये तथाकथित जेहादी मुजाहिदीन अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को काफी परेशान कर रहे हैंएक कारण यह भी है कि अपनी अंदरूनी राजनीतिक और सामरिक जरूरतों के कारण पिछले चार साल से पाकिस्तान की बदली हुई कश्मीर नीति के कारण कश्मीर आंदोलन से जुड़े कई लोग मायूस हो कर अपने आंदोलन के लिए दूसरे रास्ते तलाशने लगे थे। पर पाकिस्तान को उन लोगों की उम्मीदों को बनाए भी रखना है और ये तत्व अब इस ‍स्थिति से उत्सा‍ह‍ित हो सकते हैं।

हालाँकि अभी हालात चार साल पहले जैसे नहीं हुए हैं पर जल्दी ही वैसे हो जाएँ तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए क्योंकि लगातार खबरें आ रहीं हैं कि लश्कर-ए-तोइबा और जैश-ए-मोहम्मद के कार्यालय अन्य नामों से वापस खुलने लगे हैं और घाटी के नेता नियंत्रण रेखा पर सख्‍ती कम करने और इसे खोलने की माँग जोरदार तरीके से उठाने लगे हैं। श्रीनगर के लालचौक पर पाकिस्तानी झंडे फहराए जा रहे हैं।

अभी तक पंजाब और कश्मीर के कई चरमपंथी और तथाकथित जेहादी भारत की जगह पाकिस्तान के कबायली इलाकों में पाकिस्तान और अमेरिका की फौजों के ख‍िलाफ लड़ने में लगे थे। इसकी वजह से पाकिस्तान के पश्तून और अन्य कबायली चरमपंथियों को पंजाब और कश्मीर में पैठ बनाने की जगह मिल रही थी। अब उन्हें अपना खेल और जोर-शोर से चलाने की छूट भी मिल जाएगी।

कश्मीर में तनाव बढ़ाने के पीछे अमेरिका की भूमिका भी हो सकती है और अब ये तथाकथित जेहादी मुजाहिदीन अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना को काफी परेशान कर रहे हैं। इसलिए कश्मीर में बढ़ा तनाव एक ओर जहाँ पाकिस्तान की सेना को तेजी से काबू के बाहर जा रहे स्वात और अन्य सीमान्त इलाकों में राहत देगा वहीँ ये अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की दिक्कतें भी कम करेगा।

लगता तो यही है कि अब तक तो पाकिस्तान की यही रणनीति चल रही है। अब ये रणनीति कितना सफल होगी या किस हद तक आगे जाएगी, यह भविष्य ही तय करेगा तब तक भारत के हाथ में इंतजार करने और देखने के सिवा कुछ नहीं है।
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