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बारामती में ननद-भाभी की रोचक जंग, चाचा शरद पवार और भतीजे अजित की साख दांव पर

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Baramati Lok Sabha Seat: बारामती में ननद-भाभी की रोचक जंग, चाचा शरद पवार और भतीजे अजित की साख दांव पर राकांपा (शरद चंद्र पवार) गुट के सुप्रीमो शरद पवार का गढ़ रही बारामती सीट इस बार ज्यादा सुर्खियों में है। इस लोकसभा सीट पर ननद सुप्रिया सुले और भाभी सुनेत्रा पवार के बीच रोचक मुकाबला है। सुप्रिया साहेब यानी शरद पवार की बेटी हैं, जबकि सुनेत्रा दादा यानी अजित पवार की पत्नी हैं। इस मुकाबले में एक खास चीज देखने को मिल रही है कि पार्टी बंटने के साथ ही परिवार भी बंटा हुआ नजर आ रहा है। यहां तक कि वोटर भी शरद और अजित के बीच बंट गया है। उम्रदराज मतदाता शरद के पक्ष में है, वहीं युवा मतदाता का रुझान अजित की ओर है। 
 
भतीजे के निशाने पर चाचा : किसी समय शरद पवार के साथ परछाई की तरह रहने वाले अजित पवार आज उनके सामने प्रतिद्वंद्वी बनकर खड़े हैं। अजित अब शरद पर जुबानी हमले करने में भी पीछ नहीं हट रहे हैं। अजित पवार ने बारामती में एक रैली के दौरान कहा था कि अगर मैं सीनियर (शरद पवार) के घर में पैदा होता तो स्वाभाविक रूप से एनसीपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाता और पूरी पार्टी मेरे नियंत्रण में होती। अजित इस समय महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम हैं। ALSO READ: किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई, सरकार को उनकी परवाह नहीं : शरद पवार
 
अजित की पत्नी सुनेत्रा सोशल एक्टीविस्ट के तौर पर काम करती रही हैं, लेकिन चुनाव मैदान में पहली बार उतरी हैं। इससे पहले वे कई बार चुनाव लड़ने से इंकार कर चुकी हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते 'बयानों की मर्यादा' भी टूटती नजर आ रही है। दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता भी एक-दूसरे को लेकर मुखर हो गए हैं। अजित भी अपनी बहन सुप्रिया को निशाना बना रहे हैं। 
 
सुप्रिया का भाई अजित पर आरोप : बारामती में जारी लड़ाई के बीच सुप्रिया ने आरोप लगाया है कि प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी की पार्टी के लोग मतदाता को धमका रहे हैं। हालांकि सुनेत्रा की उम्मीदवारी से पहले ही सुप्रिया ने कहा था कि उनकी लड़ाई विचारों की है, व्यक्तिगत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह पारिवारिक लड़ाई नहीं हो सकती है? लोकतंत्र में कोई भी चुनाव लड़ सकता है।  ALSO READ: महाराष्ट्र : पवार परिवार में एक बार फिर कलह, अजित पवार के भाई ने किया शरद पवार का समर्थन
 
बारामती सीट का इतिहास पर नजर डालें तो इस सीट पर केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा का कभी भी सांसद नहीं बना। 1952 में पहली बार यहां से कांग्रेस उम्मीदवार केशवराव जेधे ने चुनाव जीता था। इस सीट पर सर्वाधिक 13 बार (उपचुनाव सहित) कांग्रेस ने जीत हासिल की, जबकि आपातकाल के बाद हुए चुनाव में यहां से जनता पार्टी के संभाजीराव काकड़े सांसद बने। 
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सबसे लंबे समय तक सांसद रहे शरद पवार : व्यक्तिगत रूप से देखें तो इस सीट पर सबसे ज्यादा समय तक सांसद रहने का रिकॉर्ड शरद पवार के नाम पर ही हैं। वे 1984 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने। इसके बाद वे 1991 में यहां से सांसद ने। इसके बाद से 2009 तक शरद पवार इस सीट से लगातार सांसद रहे। 1998 तक वे कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे, जबकि 1999 से 2009 तक वे एनसीपी के टिकट पर सांसद रहे। अजित पवार भी एक बार 1991 में लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। 2009, 2014 और 2019 में इस सीट से पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले सांसद चुनी गईं। ALSO READ: शरद पवार के पोते रोहित पर ED का Action, जब्त किया 50 करोड़ का कारखाना, क्‍या है वजह?
 
बारामती संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 6 विधानसभाओं- दौंड, इंदापुर, बारामती, पुरंदर, भोर और खड़गवासला में से 2 पर भाजपा, 2 पर कांग्रेस और 2 पर एनसीपी का कब्जा है। हालांकि अजित पवार के पक्ष में एक बार यह है कि दौंड और खडकवासला सीट पर भाजपा का कब्जा है, जबकि इंदापुर और बारामती से विधानसभा चुनाव जीतने वाले एनसीपी विधायक अजित पवार के खेमे में हैं। 
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क्या कहते हैं जातिगत समीकरण : पवार बनाम पवार की इस लड़ाई में परिवार के ही वोट बंटते दिख रहे हैं। जिस तरह से पवार परिवार में कुछ लोग अजित के साथ तो कुछ शरद पवार के साथ हैं। अजित के भाई और भतीजे शरद पवार के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। मतदाताओं के बीच स्थिति कुछ इसी तरह की है। इसी बीच, मायावती की पार्टी बसपा ने प्रियदर्शिनी कोकरे को उम्मीदवार बनाकर त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश की है। कोकरे धनगर समाज से आती हैं, जिसके वोटरों की संख्या 6.5 लाख के करीब है। इस सीट पर 23 लाख के लगभग मतदाता हैं। सुप्रिया ने पिछला चुनाव 1 लाख 55 हजार से ज्यादा वोटों से जीता था। 
 
बारामती सीट पर शरद पवार को कांग्रेस का साथ मिला हुआ, जबकि अजित के पीछे भाजपा खड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन पवार बनाम पवार की लड़ाई ने मुकाबले को रोचक बना दिया है। एक और खास बात यह है कि इस चुनाव जीत भी पवार की होगी और हार भी पवार की। 
 


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