प्राणायाम : पूरक और रेचक क्रिया योग

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 13 दिसंबर 2012 (19:25 IST)
योगा पूरक और रेचक क्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। वैसे तो हम हर पल पूरक और रेचक क्रिया करते ही रहते हैं। पूरक का अर्थ है श्वास लेना और रेचक का अर्थ है श्वास छोड़ना। हम जन्म से लेकर मृत्यु तक पूरक और रेचक क्रिया करते रहते हैं।
 
श्वास लेने और छोड़ने के बीच हम कुछ क्षण के लिए रुकते हैं। इस रुकने की क्रिया को ही कुंभक कहते हैं। जब श्वास लेकर हम अंदर रुकते हैं तो उसे आभ्यांतर कुंभक कहते हैं और जब बाहर रुकते हैं तो उसे बाह्य कुंभक कहते हैं।
 
अब आप जानकर श्वास छोड़े और लें। छोड़ते वक्त तब तक श्वास छोड़ते रहें जब तक छोड़ सकते हैं और फिर तब तक श्वास दोबारा न लें जब तक उसे रोकना मुश्किल होने लगे। फिर श्वास तब तक लेते रहें जब तक पूर्ण न हो जाएं और फिर श्वास को सुविधानुसार अंदर ही रोककर रखें। इस तरह पूरक, रेचक और कुंभक का अभ्यास करें।
 
अब रेचक पर ध्यान दें : पूरक, रेचक और कुंभक के अच्छे से अभ्यास के बाद सिर्फ रेचक क्रिया ही करें। श्वास छोड़ने की प्रक्रिया को ही रेचक कहते हैं और जब इसे थोड़ी ही तेजी से करते हैं तो इसे कपालभाती प्राणायाम कहते हैं।
 
एडिशनल : सिर्फ 10 मिनट के लिए श्वास लेने और छोड़ने का एनर्जी वॉल्यूम खड़ा कर दें। ऐसा वॉल्यूम जो आपकी बॉडी और माइंड को झकझोर दे। फिर चीखें, चिल्लाएं, नाचें, गाएं, रोएं, कूदें और हंसें। यह रेचक प्रक्रिया है।
 
इसका लाभ : इस क्रिया से सारा स्ट्रेस बाहर आ जाता है। ‍अनावश्यक चर्बी घटकर बॉडी फिट रहती है और भीतर जो भी दूषित वायु तथा विकार है, उसके बाहर निकलने से चेहरे और शरीर की चमक बढ़ जाती है। इसे करने के बाद 10 मिनट का ध्यान करें।
 
इससे आपका तन, मन और प्राण रिफ्रेश हो जाएगा। यह शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम है। हालांकि इसका अभ्यास किसी योग चिकित्सक से पूछकर ही करना चाहिए।

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