महाकुंभ में संगम को अखाड़ों से जोड़ रहे ढाई हजार साल पुरानी फारसी तकनीक से बने पीपे के पुल

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
सोमवार, 20 जनवरी 2025 (11:55 IST)
Pipa bridges in Maha Kumbh: महाकुंभ में संगम और 4,000 हैक्टेयर में फैले 'अखाड़ा' क्षेत्र के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं ढाई हजार साल पुरानी फारसी तकनीक से प्रेरित पीपे के पुल (Pipa bridges in Maha Kumbh)। 30 पुलों के निर्माण के लिए जरूरी पीपे बनाने के वास्ते 1,000 से अधिक लोगों ने 1 वर्ष से अधिक समय तक प्रतिदिन कम से कम 10 घंटे काम किया।ALSO READ: मन की बात में महाकुंभ पर क्या बोले पीएम मोदी?
 
प्रत्येक पीपे का वजन 5 टन : दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयोजन में वाहनों, तीर्थयात्रियों, साधुओं और श्रमिकों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए पुलों के निर्माण में 2,200 से अधिक काले तैरते लोहे के कैप्सूलनुमा पीपों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें प्रत्येक पीपे का वजन 5 टन है और यह इतना ही भार सह सकता है।ALSO READ: महाकुंभ में नागा, अघोरी और कल्पवासियों की दुनिया करीब से देखने के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू, जानिए पूरी प्रक्रिया
 
पुल महाकुंभ का अभिन्न अंग हैं : महाकुंभ नगर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि ये पुल संगम और अखाड़ा क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ये पुल महाकुंभ का अभिन्न अंग हैं, जो विशाल भीड़ की आवाजाही के लिए जरूरी हैं। हालांकि इनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता होती है ताकि चौबीसों घंटे भक्तों की सुचारु आवाजाही और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। हमने प्रत्येक पुल पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं और एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र के माध्यम से फुटेज की लगातार निगरानी की जाती है।ALSO READ: महाकुंभ का ऐसा अद्भुत आयोजन संकल्प से ही संभव
 
पीपे के पुल पहली बार 480 ईसा पूर्व में बनाए गए : पीपे के पुल पहली बार 480 ईसा पूर्व में तब बनाए गए थे, जब फारसी राजा जेरेक्सेस प्रथम ने यूनान पर आक्रमण किया था। चीन में झोउ राजवंश ने भी 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में इन पुलों का इस्तेमाल किया था। भारत में इस प्रकार का पहला पुल अक्टूबर 1874 में हावड़ा और कोलकाता के बीच हुगली नदी पर बनाया गया था।
 
ब्रिटेन के इंजीनियर सर ब्रैडफोर्ड लेस्ली द्वारा डिजाइन किए गए इस पुल में लकड़ी के पीपे लगाए गए थे। एक चक्रवात के कारण क्षतिग्रस्त होने के कारण अंतत: 1943 में इसे ध्वस्त कर दिया गया था और इसके स्थान पर रवीन्द्र सेतु का निर्माण किया गया जिसे अब हावड़ा ब्रिज के नाम से जाना जाता है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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