मन की बात में महाकुंभ पर क्या बोले पीएम मोदी?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में महाकुंभ को एकता और समता-समरसता का असाधारण संगम करार दिया

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
रविवार, 19 जनवरी 2025 (12:03 IST)
PM Modi Mann ki baat : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को महाकुंभ को एकता और समता-समरसता का असाधारण संगम करार दिया और कहा कि हजारों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में कहीं भी कोई भेदभाव और जातिवाद नहीं है। ALSO READ: पीएम मोदी ने सुनाई हाथी बंधु की कहानी, बताया किस तरह गांव वालों को मिला हाथियों से छुटकारा?
 
आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 118वीं कड़ी और साल 2025 की पहली कड़ी में अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने महाकुंभ में युवाओं की बढ़ती भागीदारी का उल्लेख किया और कहा कि जब युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता के साथ गर्व से जुड़ जाती है तो उसकी सभ्यतागत जड़े और मजबूत होती है और तब उसका स्वर्णिम भविष्य भी सुनिश्चित हो जाता है।
 
मोदी ने कुंभ, पुष्करम और गंगा सागर मेले का उल्लेख करते हुए कहा कि ये पर्व सामाजिक मेल-जोल, सद्भाव और एकता को बढ़ाने वाले पर्व हैं। ये पर्व भारत के लोगों को भारत की परंपराओं से जोड़ते हैं।
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प्रयागराज में महाकुंभ का श्रीगणेश हो चुका है। चिरस्मरणीय जनसैलाब, अकल्पनीय दृश्य और समता-समरसता का असाधारण संगम.. इस बार कुंभ में कई दिव्य योग भी बन रहे हैं। कुंभ का ये उत्सव विविधता में एकता का उत्सव मनाता है। संगम की रेती पर पूरे भारत के, पूरे विश्व के लोग जुटते हैं।

हजारों… pic.twitter.com/BuV1NWMkmg

— BJP (@BJP4India) January 19, 2025 >
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुंभ में दक्षिण, पश्चिम और हर कोने से लोग आते हैं। कुंभ में गरीब और अमीर सब एक हो जाते हैं और सब लोग संगम में डुबकी लगाते हैं। एक साथ भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं। तभी तो कुंभ एकता का महाकुंभ है। कुंभ का आयोजन हमें यह भी बताता है कैसे हमारी परंपराएं पूरे भारत को एक सूत्र में बांधती हैं।
 
उन्होंने कहा कि इस बार कुंभ में युवाओं की भागीदारी बहुत व्यापक रूप में नजर आई है। उन्होंने कहा कि जब युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता के साथ गर्व के साथ जुड़ जाती है तो उसकी जड़े और मजबूत होती है और तब उसका स्वर्णिम भविष्य भी सुनिश्चित हो जाता है।
 
प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ के इस कार्यक्रम में पौष द्वादशी के दिन अयोध्या में राम मंदिर में राम लाल की प्राण प्रतिष्ठा की वर्षगांठ का भी जिक्र किया और कहा कि प्राण प्रतिष्ठा की यह द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनः प्रतिष्ठा की द्वादशी बन गई। उन्होंने कहा कि हमें विकास के रास्ते पर चलते हुए ऐसे ही अपनी विरासत को भी सहेजना है और उनसे प्रेरणा लेते हुए आगे बढ़ना है।
edited by : Nrapendra Gupta 

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