मेरे भईया को कोई दे दो संदेश...

Webdunia
NDND
सावन की फुहारें जहाँ लोगों का मन हर्षाती हैं, वहीं रक्षाबंधन का पर्व इसके खत्म होने के साथ ही आता है। सावन में भले ही औरतें झूलों और पकवानों का आनंद लेती हो ं, लेकिन जो बहनें रक्षाबंधन पर अपने भाई की कलाई पर नेह का बंधन नहीं सजा पातीं, उनके लिए सावन का वह आनंद फीका पड़ जाता है। शादी के पहले लड़कियाँ जिस उत्सा ह, उमंग और उन्मुक्तता के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाती है ं, शादी के बाद परिस्थितियाँ वैसी नहीं रह जातीं ।

पुरानी पीढ़ी के लोग रिश्तों को जिस गहराई और भावुकता के साथ निभाते थ े, आधुनिक पीढ़ी में कहीं-न-कहीं उस भाव का अभाव दिखता है। पहले शादियाँ जल्दी हो जाया करती थीं और बहनों का बचपन अपने भाइयों के साथ कम ही बीत पाता था। कम उम्र में ही लड़कियों को बाबुल का आँगन छोड़कर जाना पड़ता था। अगर उनकी शादियाँ कहीं दूर प्रदेश में हो जाती थीं तो बहुत कम ही ऐसे मौके आते थ े, जब बहनें राखी पर अपने भाई के पास जा पाती हों। उनकी कितनी ही राखियाँ यूँ ही बीत जाती थीं। हर साल यह मौका आता है और हर बार उन बहनों के मन में टीस उठती है और हर बार वे अपने मन को समझाकर रह जाती हैं। ऐसी ही बहनों ने अपना दर्द कुछ यूँ बयाँ किया -

याद बहुत आती है

WDWD
शादी को कई साल हो चुके हैं। अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं। पिछले पंद्रह सालों से भाई को राखी नहीं बाँध पाई हूँ। याद तो बहुत आती ह ै, लेकिन घर की जिम्मेदारियाँ इतनी हैं कि जा नहीं पाती। पहले तो आँसू बहाकर जी हल्का कर लेती थ ी, लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं तो उनके सामने रो भी नहीं सकती। अब जमाना काफी बदल गया ह ै, संयुक्त परिवार टूटकर एकल हो रहे हैं और वहीं दूसरी ओर भाई-बहनों के बीच भी दूरियाँ बढ़ रही हैं।
(50 वर्षीय गृहिणी विजयलक्ष्‍मी)

आँसू छलक आए

चेहरे पर गहरी उदासी छा गई और कहते-कहते आँखों में आँसू छलक आए। चार सालों से राखी पर अपने मायके राजस्थान नहीं जा पाई हैं
WDWD
आशा। हर बार कोई-न-कोई बाधा आ ही आती है और जाना नहीं हो पाता। राखी भेज तो देती हू ँ, लेकिन खुद अपने हाथों से पहनाने में जो सुकून मिलता है, वह भला डाक से भेजकर कैसे मिलेगा ! इस बार भी राखी पर नहीं जा पाऊँगी। मुझे आज भी याद है, जब मेरी नई-नई शादी हुई थी और मैं पहली राखी पर मायके नहीं जा पाई थी तो खूब आँसू बहाए थे । लेकिन अब इसे नियति मानकर ही चलने लगी हूँ। स्नेह और अपनत्व का जो भाव पहले थ ा, वैसा अब नहीं रह गया है। आज की पीढ़ी परम्पराओं को भूलती जा रही है।
(45 वर्षीय गृहिणी मंजू धारीवाल)

पहली बार हुआ है ऐसा

WDWD
यह पहली बार है, जब कल्पना राखी के मौके पर अपने मायके नहीं जा पाएँगी। राखी के दिन ही अपने गृह-पूजन की व्यस्तता की वजह से इस बार वह अपने भाई को अपने हाथों से राखी नहीं बाँध पाएँगी। उदासी की एक गहरी लकीर कल्पना के चेहरे पर देखी जा सकती है। घर की जिम्मेदारियों के आगे उन्हें अपने इस अरमान को दरकिनार करना पड़ रहा है। भले ही डाक से अपनी मनपसंद राखी भेज दी ह ो, लेकिन नेह के उस धागे को खुद अपने हाथों से न बाँध पाने का उन्‍हें गहरा दु:ख है।
(30 वर्षीय गृहिणी कल्‍पना श्रीखंडे)

नमी है आँखों में

छोटी-सी बेटी है मेरी, लेकिन जब राखी पर अपने भाई को राखी नहीं बाँध पाती तो अपनी बच्ची से भी छोटी बच्ची हो जाती हूँ और खू ब
WDWD
आँसू बहाती हूँ। इस बार भी मैं अपने मायके नहीं जा पाऊँगी। हर रक्षाबंधन पर मन में बड़े दार्शनिक ख्याल आते हैं। काश ! इन सारे बंधनों से मुक्त हो जाऊँ और उड़कर पहुँच जाऊँ अपने प्यारे भाई के पास। लेकिन कल्पनाओं का कोई अस्तित्व नहीं होता। मैं दुबारा उसी दुनिया में लौट आती हूँ, हताश और निराश। राखी का यह पर्व भी यूँ ही सूना बीतने वाला है।
(32 वर्षीय गृहिणी और शिक्षिका दीपिका)

प्रस्‍तुति : नीहारिका झा
Show comments

ग्लोइंग स्किन के लिए चेहरे पर लगाएं चंदन और मुल्तानी मिट्टी का उबटन

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

क्या आपका बच्चा भी चूसता है अंगूठा तो हो सकती है ये 3 समस्याएं