रक्षाबंधन : आत्मरक्षा का प्रतीक

- उमादेवी शाह

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संसार में बहनों के जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण उमंग उत्साह भरा त्योहार है रक्षाबंधन। बहनें बेसब्री से इस विशेष पर्व का इंतजार करती हैं और जिनका कोई भाई नहीं होता तो धर्म का भाई या ईश्वर को प्रतीकात्मक राखी बाँधकर भाई के स्नेह, प्यार, आस्था प्रकट को करती हैं और जीवनभर निभाती हैं। भाई भी बेसब्री से इंतजार करते हैं।

चाहे वे कितने भी दूर रहते हों, चाहे युद्ध के मैदान में हों, बीमार हों या मुसीबत में हों परंतु राखी की राह देखते हैं या स्वयं बहन के पास चले जाते हैं। आजकल तो कम्प्यूटर द्वारा इंटरनेट के माध्यम से भी रक्षाबंधन मनाया जा रहा है।

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रक्षाबंधन का आध्यात्मिक अर्थ है कि पवित्र बनना, पावन बनना, शुद्ध बनना, बुराइयों का त्याग करना एवं जीवन में दृढ़ता लाना। भौतिक रीति से आज के समय में किसी की भी रक्षा कर पाना, हो पाना मुश्किल है, क्योंकि यह संसार नश्वर है तो शरीर भी नश्वर है। परंतु आज सभी मानते, जानते या अनुभव करते हैं कि इस विनाशी शरीर के अलावा भी चैतन्य आत्मा, रूह अविनाशी, अमर, अजर है जिसे कोई काट नहीं सकता, मार नहीं सकता, डुबो नहीं सकता, जला नहीं सकता। फिर रक्षाबंधन का महत्व कैसा?

वास्तव में मनुष्य आत्मा ही स्वयं का मित्र व शत्रु है। वह स्वयं ही स्वयं की रक्षा कर सकता है या सिर्फ सर्वशक्तिवान परमपिता परमात्मा शिव ही सबकी रक्षा कर सकता है, जो कि निराकार, ज्योतिस्वरूप जन्म-मरण से न्यारा, परमधाम, ब्रह्मांड निर्वाणधाम का निवासी है, महाकाल है। इसके लिए भगवान का फरमान है, आदेश है कि हे आत्माओं, इस मनुष्य जीवन के अमूल्य समय में जीवन में पवित्रता, ब्रह्मचर्य, पावनता, शुद्धता अपनाओं और अपने को मनोविकारों से बचाओ।

राखी पर बहनें भाइयों को तिलक लगाती हैं, जो संदेश देता है कि आप भृकुटि के मध्य में विराजमान चैतन्य ज्योति बिंदुस्वरूप आत्मा हो। आप उसके स्वमान में टिककर स्वयं को शरीर के भान से मुक्त करो। फिर राखी का धागा बाँधती हैं, जो हमें प्रतिज्ञा करने की प्रेरणा देता है कि आप पुनः अपने शुद्ध स्वरूप को, पवित्र स्वरूप को, याद करके अपने अंदर की कमजोरियों को खत्म करो।

मुख मीठा करवाने का अर्थ है कि आप भी सभी का मुख मीठा करो, दिल मीठा करो, बोल मीठा करो, संकल्प मीठा करो... और अपना संपूर्ण जीवन मीठा करो। और दूसरों के जीवन को मीठा कर यह सारा संसार क्लेश, तनाव, अशांति, दुःख-दर्द, रोग-शोक से मुक्त करो। तो आओ, आज हम सब मिलकर राखी के इस आध्यात्मिक अर्थ में टिककर, स्थित होकर रक्षाबंधन को मनाएँ।

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