उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं होनी चाहिए जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुंहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है।
असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
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उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
उन्होंने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने एलेग्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।
इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अंगुली में बांधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया।
तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
खैर, यह तो हुई रक्षा बंधन के त्योहार से जुड़ी ऐतिहासिक बातें। हाल-फिलहाल की बात करें तो रक्षा बंधन के त्योहार पर अब सिर्फ राखी ही नहीं, दूर देश अपने भाइयों को राखी भेजने वाले लिफाफों को भी खासी तवज्जो दी जा रही है।
इसमें डाक विभाग द्वारा जारी किया गया वॉटरप्रूफ लिफाफा आकर्षण का केंद्र बना हुआ है जो बारिश में भी आपकी राखी को सुरक्षित रखता है।
नोएडा के डाक विभाग के पोस्टमास्टर आर.डी.शर्मा ने बताया कि यह लिफाफा इसी वजह से मंगाया गया है क्योंकि बरसात का समय होने की वजह से लिफाफे में बंद राखी के भीगने का खतरा रहता है।
लेकिन वॉटरप्रूफ लिफाफा अगर पानी में भी गिर जाएगा तो भी राखी के गलने का खतरा नहीं रहता। महज पांच रुपए में मिलने वाले इन लिफाफों की खरीदारी जमकर हो रही है। अधिकारियों की मानें तो प्रतिदिन पांच दर्जन से ज्यादा लिफाफे बिक रहे हैं।
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