कविता : बहना क्यों होती पराई

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जन्म से बच्चा रहा अकेला, 
एक दिन आई प्यारी बहना .. 
किलकारी गूंजी घर आंगन,खुशियों का रंग हुआ सुनहरा 
 
धीरे-धीरे वह किलकारी बदल गई चहक में 
मैं उसके संग हंसता गाता, खेले संग खेल महल में 

संग में पलते बड़े हुए हम धीरे-धीरे समझ भी आई 
जब हम लड़ते मम्मी कहती बहना तो होती है पराई 
 

 
 
मैं बैठा होकर मायूस ,ना कुछ कहता ना सुनता 
मेरी बहना मेरे घर आई , फिर क्यों किसी का हक बनता 
 
घूंघरू सी खनकती, फूलों सी महकती बहन 
मैंने है किस्मत से पाई 
फिर क्यों दे दूं किसी और को, क्यों मानूं मैं उसे पराई 
 
मां ने समझाया पुचकारा, 
बेटा यह रिश्ता है न्यारा 
प्यारी बहना रहेगी तेरी, पर जाना होगा ससुराल 
फिर आएगी साल के एक दिन मनाने राखी का त्यौहार 
 
मन उखड़ा था उस दिन मेरा, फिर भी भूल गया यह बात 
अब जब बहना हुई पराई , याद आती है यही एक बात 
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