सुहाना बचपन : सहज मनोविज्ञान
भाई का नन्हा-सा दिल पहली बार जब छोटी-सी गुलाबी-गुलाबी बहन को देखता है तब अनजानी, अजीब-सी अनुभूतियों से भर उठता है। थोड़ी-सी जिम्मेदारी, थोड़ी-सी चिंता, थोड़ा-सा प्यार, थोड़ी-सी खुशी, थोड़ी-सी जलन, थोड़ा-सा अधिकार ऐसी ही मिलीजुली भावनाओं के साथ भाई-बहन का बचपन गुलजार होता है।नटखट बचपन : नन्ही शैतानियां
याद कीजिए अपने बचपन की शरारतें। क्या भाई-बहन के बिना वे इतनी मोहक और मासूम हो सकती थी? नहीं ना? ठीक इसी तरह आज के बचपन को भी खुलकर जीने दीजिए। बचपन की मयूरपंखी स्मृतियां उनके भविष्य की भी मुस्कान बने इसलिए बहुत जरूरी है कि बड़ा भाई अपनी छुटकी बहन के उल्टे-सीधे नाम रखें, बहुत जरूरी है कि दोनों साथ-साथ उछले-कूदे, गिरे-पड़े, धमाधम धिंगामुश्ती करें। जरूरी है कि पेड़ पर चढ़े और मिट्टी में सने, जरूरी है कि एक दूसरे के खिलौनों को तोड़े-छुपाए।त्योहार के बहाने : रिश्ते नए-पुराने
आज सारे त्योहार तकनीक और आधुनिकता की भेंट चढ़ गए हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भी अछूता नहीं रहा। लेकिन इसके बावजूद सबसे बड़ी बात यह है कि रिश्तों की गर्माहट, आंच, तपन या उष्मा कुछ भी कह लीजिए, वह बरकरार है। आज भी भाई का मन अपनी बहन के लिए उतना ही पिघलता है, आज भी बहन का प्यार भाई के लिए उतना ही मचलता है। यह बात और है कि तरीके बदल गए हैं, भावाभिव्यक्तियां बदल गई हैं, अंदाज बदल गए हैं मगर अहसास वही है।