राखी : पौराणिक काल से आधुनिक काल तक

ऋषि गौतम

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पर्व का रिश्ता हमारी संस्कृति से बहुत ही गहरा जुड़ा हुआ है। भारतीय संस्कृति के सबसे बड़े परिचायक हैं हमारे पर्व और उत्सव। यहां हर महीने और हर मौसम में कोई ना कोई ऐसा त्योहार होता ही है जिसमें देश की संस्कृति की झलक हमें देखने को मिलती है। आज हम मनाने जा रहे हैं अनेक त्योहारों में से एक रक्षा बंधन। आईए हम जानते हैं इस त्योहार के बारे में विस्तार से...

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रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्योहार है। मुख्य रूप से यह हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। भाई-बहनों के प्यार के इस पर्व के दिन पूरे भारत में समां देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना,यही तो एक ऐसा विशेष दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है। यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है।

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कब मनाई जाती है राखी....

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हिन्‍दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्‍त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्‍योहार भाई का बहन के प्रति प्‍यार का प्रतीक है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं,उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं।

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रक्षा बंधन का पौराणिक महत्व

रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। कहानी कुछ ऐसी है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्‍‌न किया,तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।

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वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।


इस त्योहार के साथ एक और कहानी भी जुडी हुई हैं- एक बार राजा इन्द्र की राक्षसों से लड़ाई छिड़ गई। लड़ाई कई दिनों तक होती रही। न राक्षस हारने में आते थे,न इन्द्र जीतते दिखाई देते थे। इन्द्र बड़े सोच में पड़ गए। वह अपने गुरु बृहस्पति के पास आकर बोले ,"गुरुदेव, इन राक्षसो से मैं न जीत सकता हूं न हार सकता हूं। न मैं उनके सामने ठहर सकता हूं न भाग सकता हूं। इसलिऐ मैं आपसे अंतिम बार आर्शीवाद लेने आया हूं। अगर अबकी बार भी मैं उन्हें हरा न सका तो युद्ध में लड़ते लड़ते वहीं प्राण दे दूंगा।

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उस समय इन्द्राणी भी पास बैठी हुई थी इन्द्र को घबराया हुआ देखकर बोली,"पतिदेव,मै ऐसा उपाय बताती हूं जिससे इस बार आप अवश्य लडाई में जीतकर आएंगे। इसके बाद इन्द्राणी ने गायत्री मंत्र पढ़कर इन्द्र के दाहिने हाथ मे एक डोरा बांध दिया और कहा,पतिदेव यह रक्षाबंधन मै आपके हाथ में बांधती हूं।

इस रक्षाबंधन-सूत्र को पहन कर एक बार फिर युद्ध में जाएं। इस बार अवश्य ही आपकी विजय होगी। इन्द्र अपनी पत्नी की बात को गांठ बांधकर और रक्षा बंधन को हाथ में बंधवाकर चल पड़े। इस बार लड़ाई के मैदान में इन्द्र को ऐसा लगा जैसे वह अकेला नही लड़ रहे इन्द्राणी भी कदम से कदम मिलाकर उनके साथ लड़ रही है।

उन्हें ऐसा लगा कि रक्षाबंधन सूत्र का एक-एक तार ढाल बन गया है और शत्रुओं से उसकी रक्षा कर रहा है। इन्द्र जोर शोर से लड़ने लगे। इस बार सचमुच इन्द्र की विजय हुई। तब से रक्षाबंधन का त्योहार चल पड़ा। यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिऐ इसे सावनी या सूलनो भी कहते है।

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महाभारत में राखी...

महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।

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शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र से कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई,तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।

कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।

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राखी का ऐतिहासिक महत्व...

इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं। वास्तव मे बहन के भाई को राखी बांधने की प्रथा राजस्थान से शुरु हुई।

मेवाड़ की महारानी कर्णावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।

कहते हैं,सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।

उसके बाद से उनमें यह रिवाज हो गया है कि यदि किसी औरत पर कोई मुसीवत आती थी तो वह किसी वीर पुरुष को अपना भाई कहकर राखी भेज दिया करती थी।

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राखी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया।

श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्योहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्योहार का राजनीतिक उपयोग आरम्भ किया।

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और भी है राखी का महत्व...

राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बांधती हैं परन्तु ब्राह्मणों,गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियां अपने पिता,गुरू या अपने से बड़े किसी और बांधती हैं।

कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है।

इतना ही नहीं अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बांधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। जिसकी शुरूआत उत्तराखंड में चिपको आंदोलन से हुई थी। इसी तरह हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बांधते हैं।

हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बांधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबंधन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है।

रक्षाबंधन मंत्र : येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है-"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था,उसी सूत्र से मैं तुझे बांधती हूं,तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।"

समाप्त

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