श्रीराम का अवतरण दिवस

भए प्रकट कृपाला

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- आचार्य गोविन्द बल्लभ जोश ी
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पहली अप्रैल को राम नवमी है य ान ी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अवतरण दिवस। संसार में जब भी अधर्म बढ़ता है एवं बुरी शक्तियां प्रकृति के नियमों को उथल-पुथल करने लगती हैं ऐसी स्थिति में भगवान का अवतार होता है। वह इस प्रकार का लोक आचरण करते हैं जो युग-युगों तक मानव जाति के लिए अनुकरणीय हो जाता है। ऐसे आदर्श महापुरुष एवं समस्त ऐश्वर्य से युक्त श्रीराम का त्रयेता युग में चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या में अवतार होता है।

युगों-युगांतरों से धर्म की स्थापना व संतों को सुख देने के लिए ईश्वर अवतार लेते रहे हैं। इसी श्रृंखला में दानवों के अत्याचार से व्याकुल जब ब्रह्माजी ने समस्त देव मंडल व सिद्ध गुणों के साथ भगवान की स्तुति की, तब कल्याण रूप महाराजा दशरथ व कल्याण रूपी महारानी कौशल्या के पावन गृह में भगवान राम ने अवतार लेकर धर्म, पृथ्वी, गौ, ब्राह्मण, भक्तों व साधुओं को संकटों से मुक्ति दिलाई। गोस्वामी तुलसीदास भगवान राम के अवतार का दृश्य वर्णन करते हैं-

' भए प्रकट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी।
हरषित मतहारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप विचारी।'

राम ईश्वर के अंश हैं। मनु ने शतरूपा से घोर तप पाने का वरदान पाया था। मनु को दशरथ और शतरूपा को कौशल्या माना गया। अपने बाल्यकाल की लीलाओं से भक्तों को आनंदित करते हुए भगवान राम ने 'आचार्य देवो भव, मातृ देवो भव, पितृ देवो भव' का क्रियात्मक रूप से पालन किया। उनका यह पावन चरित्र-'प्रातः काल के रघुनाथा, मातु-पिता गुरु नावहि माथा।' नयी पीढ़ी को बड़ों का सत्कार करने की प्रेरणा देता है।

श्री रामचन्द्र ने अपने अवतार के उद्देश्य का प्रारंभ ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा कर किया। यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों को मारकर ऋषियों का मान बढ़ाया। गौतम ऋषि की शापग्रस्त पत्नी अहिल्या का उद्धार किया। भगवान राम का पावन जीवन जात-पात, ऊंच-नीच के बंधनों को तोड़ने वाला है।

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शबरी के पास जाकर जूठे बेर खाए और अभिमान में फंसे ऋषियों को मार्ग दिखाया। तब भगवान राम ने भक्ति के लक्षण बताते हुए कहा कि -'प्रथम भक्ति संतन्ह कर संता, दूसरी करि मम कथा प्रसंगा।' भगवान राम एक आदर्श सुपुत्र, आदर्श भाई, आदर्श सखा, आदर्श पति, आदर्श शत्रु और आदर्श राष्ट्रभक्त हैं। राष्ट्र को राक्षसी ताकतों से मुक्त कराने के लिए वह किसी भी प्रलोभन का शिकार न हुए। उनके सानिध्य में आने वाले हनुमान (वानर रूप), जामवंत (रीछ), जटायु (मांसाहारी पक्षी), विभीषण (राक्षस वंश) आदि भी दिव्य श्रेणी प्राप्त कर गए। रावण ने अपने सगे मामा मारीच को हिरण बना दिया। श्री राम के संग में रहने के श्राप भी वरदान बने जबकि रावण के पास रहने वाले मेघनाद, कुंभकर्ण आदि को मिले वरदान भी श्राप बने। श्रीराम ने कभी प्रशंसा को दिल में स्थान नहनहीं दिया। राक्षसी ताकतों को मार कर भी वह यही कहते हैं कि-

' गुरु वशिष्ठ कुलपूज्य हमारे जिनकी कृपा दनुज रण मारे।'

ऐसे भगवान राम का व्यक्त्वि प्रेरणादायक है जो समाज में व्याप्त दूरी को सेतु की भांति मिटाने का कार्य करता है, चाहे वे दूरी परस्पर विचारों की हो या भावना की। भगवान राम का कार्य सेतु निर्माण है। ऐसे रघुकुल शिरोमणि भगवान राम को शरीर रूपी अयोध्या नगरी के सिंहासन पर विराजमान कर अपने जीवन में राम राज्य लाएं। यह राम राज्य दैहिक, दैविक व भौतिक तापों को मिटाता है। स्वयं भगवान राम ने कहा है कि-

' सनमुख होई जीव योहि जबहिं, जन्म कोरि अद्य नासाहि तबहिं।'

इस महत्वपूर्ण घोषणा के साथ शर्त भी लगाई कि 'निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा।' ऐसे प्रभु राम बेसहारों के सहारा हैं, दीनबंधु हैं। कृपा करने वाले हैं जिनका कोई नहीं उनके राम तुम हो। संसार में सबसे बड़ा विश्राम तुम हो। राम की स्तुति में 100 करोड़ रामायणें लिखी जा चुकी हैं।

मानवीय मूल्यों को समूची सृष्टि के कल्याण के लिए राम ही आते हैं। संतों एवं सज्जनों को सदपथ पर लाने का सतत प्रयास प्रभु राम करते हैं। राम का जन्म उस समय हुआ जब अत्याचार चरम उत्कर्ष पर था। भगवान शंकर भी प्रभु राम की महिमा का सदा गुणगान करते आए हैं। सुंदर तिथि, मास, नक्षत्र और पक्ष के आधार पर नवधा भक्ति से युक्त अनुकूल समय चैत्र शुक्ल नवमी को राम का अवतार होता है। आदर्श जीवन की शाश्वत कल्पना, राम के संदर्भों को उकेरती है।

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