श्रीराम ने रेवा तट पर किया था रुद्राभिषेक

रामनवमीं पर विशेष

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने चौदह वर्ष के वनवास काल के बीच जाबालि ऋषि की तपोभूमि जबलपुर को अपनी चरण रज से पावन किया था। उन्होंने इस गुप्त प्रवास के दौरान रेवा तट पर जिस शिवलिंग का अभिषेक किया था, उसे रामेश्वरम के उपलिंग का दर्जा प्राप्त है। इसका संदर्भ मत्स्य पुराण, स्कंद पुराण के रेवाखंड और मूल शिवपुराण के अलावा रामायण में मिलता है।

सुतीक्ष् ण आश्र म मे ं जाबाल ि स े हु ई प्रथ म भेंट : भगवान जब चौदह वर्ष के वनवास पर निकले थे, तो वे सतना के पास जैतवारा से उत्तर-दक्षिण दिशा से पाँच किलोमीटर दूर सुतीक्ष्ण ऋषि के आश्रम पहुँचे थे। भगवान राम-लक्ष्मण और माता जानकी के आने की खबर सुनते ही अनेक ऋषि उनके दर्शन करने पहुँचे, उसमें जाबालि ऋषि भी शामिल थे।

अपनी दिव्य दृष्टि से देखने के बाद जाबालि ऋषि ने कहा कि अयोध्या में राजा दशरथ आपके कारण प्राण त्यागने वाले हैं। आप वृद्ध पिता को छोड़कर मंथरा और माता कैकई के कारण वनवास पर आ गए, क्या ये उचित है? यह सुनकर भगवान ने कहा कि ऋषि वर आप इतनी तपस्या के बाद भी रीति-नीति की बात कर रहे हैं।

यह सुनकर जाबालि ऋषि पश्चाताप करने के लिए तप करने नर्मदा तट पर आ गए। जब तीन दिन बाद भगवान राम सुतीक्ष्ण ऋषि के आश्रम से चलने लगे, तो वहाँ जाबालि ऋषि नहीं दिखे, तो उन्होंने अन्य ऋषियों से कारण पूछा। तब भगवान को पता चला कि जाबालि ऋषि उसी समय से यहाँ नहीं है।

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सतना से गुप्त प्रवास पर आए जबलपुर : जाबालि ऋषि से मिलने भगवान गुप्त प्रवास पर नर्मदा तट पर आए। उस समय यह पर्वतों से घिरा था। रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने आतुर थे, लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे। भगवान राम के पैरों को कँकर न चुभें इसीलिए शंकरजी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया। इसलिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है।

रेव ा त ट प र किय ा थ ा रुद्राभिषेक : जब भगवान यहाँ पहुँचे तो गुफा (वर्तमान में गुप्तेश्वर मंदिर) से नर्मदा जल बह रहा था। भगवान यहीं रुके और बालू एकत्र कर एक माह तक उस बालू का नर्मदा जल से अभिषेक करने लगे। आखिरी दिन शंकरजी वहाँ स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम-शंकर का मिलन हुआ।

यह जानकारी मिलते ही जाबालि ऋषि वहाँ आ गए और भगवान से क्षमा माँगी, लेकिन जाबालि ऋषि को यह पता चला कि भगवान राम-लक्ष्मण और माता जानकी उनसे मिलने के लिए आए हैं तो वे बहुत प्रसन्न हुए।

गुप्तेश्वर में स्थापित हैं रामेश्वर के उपलिंग : गुप्तेश्वर मंदिर की गुफा में जो बालू का शिवलिंग भगवान द्वारा बनाया गया है वह रामेश्वर के शिवलिंग का उपलिंग है। धीरे-धीरे प्राकृतिक कारणों से यह गुफा बंद हो गई, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी है जो भगवान राम की गुप्त यात्रा का प्रतीक है। शिवप्रिय मैकल सैल सुता सी, सकल सिद्धि सुख संपति राशि..., रामचरित मानस की ये पंक्तियाँ श्रीराम के चरण पड़ने की साक्षी है।

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