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प्रभु श्रीराम से सीखें मैनेजमेंट के ये 7 गुण

हमें फॉलो करें प्रभु श्रीराम से सीखें मैनेजमेंट के ये 7 गुण

अनिरुद्ध जोशी

, शुक्रवार, 1 मई 2020 (12:39 IST)
यदि आपका जीवन योजनाओं से युक्त नहीं है तो वह निष्फल होगा या कहें कि वह रेंडमली होगा। एक सफल मैनेजर या शासक वही है जो योजनाएं बनाता हैं और निरंतर उसे अपडेट करता रहता है। शास्त्र कहते हैं कि सभी को मैनेज किया जा सकता है लेकिन ग्रहों की चाल और मनुष्य के मन को मैनेज करना दुष्कर कार्य है।
 
 
जिंदगी में तात्कालिक सुख, दु:ख, सफलता और असफलता का उतना महत्व नहीं है जितना की महत्व उस कार्य को करने का है जिसके करने से दूरगामी परिणाम निकलते हैं और जो हमारे भविष्य को सुंदर और सुरक्षित करता हो। प्रभु श्रीराम ने वही किया जो धर्मसम्मत और दूरगामी था। आओ जानते हैं उनके मैनेजमेंट के 7 सबसे खास गुण।
 
 
1. खुद को बनाओ आइडियल : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन को इस तरह मैनेज किया कि आज भी उनके कार्य, व्यक्तित्व और शासन को याद किया जाता है। प्रभु श्रीराम के पास अनंत शक्तियां थीं लेकिन उन्होंने उसका कभी भी दुरुपयोग नहीं किया जैसा की रावण ने किया। रावण ने अपनी शक्तियों का प्रदर्शन किया लेकिन राम ने मर्यादा और विनम्रता का। वे यह सोचकर जीए कि मैं लोगों के लिए यदि मैं गलत चला तो संपूर्ण भारत गलत राह पर चलेगा। इसलिए आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में हो घर में ऑफिस में या और कहीं आप यह मत भूलों की लोग आपको जज कर रहे हैं।
 
 
2. टीम को दो नेतृत्व का मौका : प्रभु श्रीराम अपने साथ दो लोगों की टीम लेकर चले थे। पहली उनकी पत्नी और दूसरा उनका भाई। तीनों ने मिलकर टीम वर्क किया, लेकिन नेतृत्व श्री राम के हाथ में ही दे रखा था। लेकिन प्रभु श्रीराम ने अपने साथ के सभी लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई ऐसे मौके आए जबकि नेतृत्व उन्होंने दूसरों के हाथ में दिया। श्रीराम ने रणनीति, मूल्य, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनना और पारदर्शिता को अपने सामने रखा और अपने वनवास काल में एक बहुत बड़ी टीम बनाकर सभी को नेतृत्व करने का मौका दिया।
 
 
3. संपूर्ण जीवन हो योजनाओं भरा : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन का हर कार्य एक बेहतर योजना के साथ संपन्न किया। उन्होंने पहले ऋषि मुनियों को भयमुक्त कर उनका समर्थन हासिल किया, सुग्रीव को राजा बनाया। तमिलनाडु के तट से श्रीलंका तक पुल बनाना आसान कार्य नहीं था। वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुलर्निर्माण करने का फैसला लिया। 

 
दूसरी ओर रावण जैसे संपन्न, शक्तिशाली और घातक हथियारों से लैसे व्यक्ति और उसकी सेना से लड़ना आसान नहीं था लेकिन श्रीराम के पास योजना थी साथ ही उन्होंने अपने साथियों से भी कई तरह की योजनाओं पर वार्तालाप किया। यदि आपके पास कोई योजना नहीं है तो आप जीवन में अपने लक्ष्य को नहीं भेद सकते हो। लक्ष्य तभी भेदा जा सकता है जबकि एक बेहतर योजना हो जिस पर टीम कार्य कर सके।  
 
 
4. समानता : अपने टीम के लोगों के एक समान ही समझना और सभी को समान रूप से प्रोत्साहन और सम्मान देना ही टीम को बिखरने से रोकता है। एक समझदार मैनेजर टीम को तभी साथ लेकर आगे बढ़ सकता है जबकि वह किसी को भी बड़ा या छोटा न समझता हूं। असमान समझने से टीम में निराशा और उपेक्षा का भाव विकसित होता है।

 
भगवान राम चूंकि राज परिवार से थे। लेकिन उन्होंने अपने व्यवहार से ऐसा कभी भी प्रकट नहीं होने दिया। वे वनवासियों के बीच वनवासी की तरह ही रहे। वे चाहते तो केवट या सबरी को बिना गले लगाए भी अपना वनवास गुजार सकते थे। लेकिन उन्होंने उक्त सभी के साथ ही जटायु, संपाति और तमाम आदिवासियों को गले लगाया और उन्होंने मनुष्य को बस मनुष्य ही समझा। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के निजी दर्द को भी समझा। ऐसा करने से उनके साथ लोगों में समानता का विश्वास पैदा हुआ।

 
5. योग्यता को समझने की क्षमता : प्रभु श्रीराम यह भलिभांति जानते थे कि किस व्यक्ति से कब कौनसा काम किस तरह कराना है। उन्होंने हनुमान को दूत बनाकर भेजा और उसके बाद अंगद को दूत बानाकर भेजा। वे जानते थे कि दोनों में क्या भेद है और दोनों क्या कर सकते हैं। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता अनुसार उसे कार्य सौंपा लेकिन उन्होंने लोगों के ऐसे कार्य भी सौंपे जिसमें वे उन्हें दक्ष करना चाहते थे। दक्षता बढ़ाने के लिए भी उन्होंने कार्य सौंपे।

 
6. विशाल सेना का गठन : जब प्रभु श्री राम की पत्नी सीता का रावण हरण करके ले गया तब श्रीराम के समक्ष सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया था। वह वन-वन सीता को खोजने के लिए भटके और उन्होंने अपनी बुद्धि और कौशल से आखिर यह पता लगा ही लिया की सीता कहां है। फिर उन्होंने सुग्रीव के लिए बाली का वध किया और सुग्रीव का समर्थन हासिल किया। इसी तरह उन्होंने कई राजाओं की सहायता की।

 
श्री राम का जब रावण युद्ध हुआ तो वे कोई अयोध्या से सेना लेकर नहीं गए थे। वहीं उन्होंने मैनेजमेंट कर सेना तैयार की। उन्होंने वानर और रक्ष जाती के लोगों को एकत्रित किया और एक विशाल सेना का गठन कर दिया। खास बात तो यह कि न वेतन, न वर्दी, न आर्म्स और उस सेना से विजय हासिल की। कम संसाधन और कम सुविधाओं और संघर्ष के बावजूद उन्होंने पुल बनाकर लंका में प्रवेश किया और विजय हासिल की।

 
7. समस्याओं में समाधान ढूंढना : प्रभु श्रीराम के समक्ष कई बार ऐसा मुश्किल हालत पैदा हुए जबकि संपूर्ण टीम में निराशा के भाव फैल गए थे लेकिन उन्होंने धैर्य से काम लेकर समस्याओं के समाधान को ढूंढा और फिर उस पर कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने सीता हरण से लेकर, अहिराणण द्वारा खुद का हरण और लक्ष्मण के मुर्च्छित हो जाने तक कई तरह के संकटों का सामना किया लेकिन उनकी उत्साही टीम ने सभी संकटों पर विजयी पाई। संटक उसी व्यक्ति के समक्ष खड़े होते हैं जो उनका हल जानता है। सफलता का रास्ता आपके खिलाफ खड़ा किया गया विरोध और संकट ही बनाता है।

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