अब भूपेश फूंकेंगे छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जान

रवि भोई
शनिवार, 21 दिसंबर 2013 (18:37 IST)
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने संगठन स्तर पर फेरबदल कर दिया है। डॉ. चरणदास महंत के स्थान पर भूपेश बघेल को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। तेजतर्रार व पिछड़े वर्ग के नेता बघेल अजीत जोगी के कट्‌टर विरोधी हैं।

कांग्रेस हाईकमान ने बघेल को पार्टी में नई जान फूंकने व भाजपा को चुनौती देने की जिम्मेदारी सौंपी है, साथ ही बघेल की नियुक्ति से पार्टी आलाकमान ने राज्य में जोगी का प्रभाव कम करने का भी संकेत दे दिया है।

माना जा रहा है कि बघेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अब किसी आदिवासी या सवर्ण को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाएगा। इसमें प्रमुख नाम टीएस सिंहदेव का है। सिंहदेव राजघराने से ताल्लुक रखने के साथ आदिवासी क्षेत्र सरगुजा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

बघेल की नियुक्ति से रमन सरकार को सदन के भीतर व बाहर चुनौती मिलने की उम्मीद की जा रही है। अभी तक बघेल अपने स्तर पर अकेले रमन सरकार से मुकाबला करते थे। अब पार्टी स्तर पर लड़ाई लड़ेंगे। बघेल पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं। अभी तक वे पार्टी के कार्यक्रम संयोजक थे।

नंदकुमार पटेल की शहादत के बाद उन्हें डॉ. महंत के साथ संयोजक बनाया गया था। बघेल ने विधानसभा चुनाव के पहले सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिल पाई।

वे कांग्रेस की गुटीय राजनीति में उलझकर रह गए, साथ ही अजीत जोगी द्वारा उनके क्षेत्र में जाकर चुनौती देने की वजह से वे प्रदेश स्तर की राजनीति करने की जगह अपने क्षेत्र में ही सीमित होकर रह गए। बघेल ने विधानसभा चुनाव के पहले हाईकमान के सामने खुलकर अजीत जोगी की शिकायत की थी।

वैसे सन् 2000 में बघेल ने ही अजीत जोगी की बस यात्रा प्रदेश में निकलवाई थी। वे जोगी समर्थक थे, लेकिन सन् 2002 में दोनों के बीच मतभेद हो गया और दोनों कट्‌टर दुश्मन बन गए। बघेल जोगी मंत्रिमंडल में सन् 2000 से 2003 तक कैबिनेट मंत्री थे। पहले उनके पास पीएचई विभाग था। जोगी से विवाद के बाद उन्हें राजस्व विभाग दे दिया गया।

बघेल सन् 2008 में विधानसभा चुनाव हार गए। इसके बाद रायपुर संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा। यहां पर उन्होंने भाजपा के रमेश बैस को कड़ी टक्कर दी। दोनों कुर्मी होने की वजह से मुकाबला कांटे का रहा, लेकिन वे चुनाव हार गए। इसके बाद वे अपने स्तर पर रमन सरकार से लड़ते रहे।

नंदकुमार पटेल के निधन के बाद उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई। बघेल मूलतः छत्तीसगढ़िया हैं और एक किसान के रूप में उनकी पहचान है। बघेल को पिछड़े वर्ग का समर्थक माना जाता है। कांग्रेस ने बघेल का पिछड़ा वर्ग कार्ड के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई है।

राज्य बनने के बाद से ही कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। पहले रामानुजलाल यादव अध्यक्ष रहे। इसके बाद चरणदास महंत अध्यक्ष बने। फिर धनेन्द्र साहू को कमान सौंपी गई। साहू के स्थान पर पटेल अध्यक्ष बने। पटेल के निधन के बाद महंत बने और अब बघेल को अध्यक्ष बनाया गया है। सभी पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।

विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष का बदला जाना तय माना जा रहा था, लेकिन हाईकमान ने बिना देरी के फैसला कर लिया। हाईकमान ने रमन सरकार को चुनौती देने वाले व्यक्ति के साथ ही अजीत जोगी पर लगाम लगाने की ताकत रखने वाले को पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की कमान सौंपी है।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को भाजपा के साथ-साथ अजीत जोगी से भी अंदरूनी तौर पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है। जोगी ने विधानसभा चुनाव से पहले खुलकर पार्टी के खिलाफ बिगुल बजाया था, वहीं डॉ. रमनसिंह के शपथ समारोह में मंच पर बैठकर सबको चौंका दिया। इससे हाईकमान नाराज हो गया।

महंत अजीत जोगी से सीधे टकराने में कतराते थे। माना जा रहा है कि बघेल जोगी से टकराने में परहेज नहीं करेंगे, वहीं रमन सरकार के खिलाफ मुद्‌दों को सामने लाने में नहीं घबराएंगे। पुष्प स्टील मामले में बघेल लगातार सरकार को घेरते रहे हैं।

रमन सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर से कांग्रेस को लोकसभा में फायदा हो सकता है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा में वोट का अंतर मात्र .75 फीसदी ही है, वहीं बस्तर व सरगुजा इलाके में कांग्रेस को इस चुनाव में फायदा हुआ है। मैदानी इलाके में ही भाजपा ने जीत दर्ज की है।

बघेल को कमान सौंपने के बाद भाजपा भी राज्य में रणनीतिक बदलाव कर सकती है। अभी उसे भी नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करना है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा को मंत्री बनाने से वे दोनों पद पर नहीं रहेंगे। भाजपा राज्य बनने के कुछ साल को छोड़कर किसी न किसी आदिवासी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंपते आ रही है।

इस बार भी वह किसी आदिवासी को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी। इसके लिए ऐसे नेता की तलाश की जा रही है, जो सरकार के साथ तालमेल कर चल सके। भाजपा आदिवासी नेता रामविचार नेताम को अध्यक्ष नहीं बनाना चाहती, क्योंकि वे शुरू से राज्य आदिवासी नेतृत्व की बात करते रहे हैं।

ननकीराम कंवर सरकार में रहते कई बार डॉ. रमन के खिलाफ मुहिम चला चुके हैं। नंदकुमार साय व विष्णुदेव साय को लोकसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा है। आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी घमासान होने के आसार दिखाई दे रहे हैं।

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