कार्बन उत्सर्जन घटाने का उपाय दक्कन में

Webdunia
शनिवार, 5 जनवरी 2008 (12:42 IST)
ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारण कार्बन उत्सर्जन को कम करने का उपाय शायद दक्कन के पठार में छिपा है।

भारतीय भूगर्भ विशेषज्ञों ने पता लगाया है कि दक्कन के पठार की बसाल्ट चट्टानों ने ज्वालामुखी के लावे से अपने निर्माण के दौरान अपने अंदर मौजूद कार्बन डाइआक्साइड को एक लंबे अंतराल में कार्बोनेट या विभिन्न लवणों में बदल दिया था।

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के यहाँ जारी सत्र में हैदराबाद स्थित नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) के निदेशक वीपी डिमरी ने कहा कि वैज्ञानिक मानते हैं कि फैक्टरियों से उत्सर्जित कार्बन डाइआक्साइड को मध्य एवं दक्षिण भारत में इसी तरह के पाँच लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैले पठार में प्रविष्ट कराया जा सकता है।

एनजीआरआई के वैज्ञानिकों ने गुजरात के कच्छ, मध्यप्रदेश के जबलपुर, कर्नाटक के बेलगाम और महाराष्ट्र के इगतपुरी इलाकों में बसाल्ट चट्टानों के निर्माण का अध्ययन किया है।

डिमरी ने कहा कि परिणाम उत्साहवर्धक हैं। हमने पाया कि कार्बन डाइआक्साइड मैग्नेशियम और कैल्शियम कार्बोनेटों में तब्दील हो गया। ये कार्बोनेट ज्यादा नुकसानदेह नहीं हैं।

चूँकि दक्कन का पठार बहुत बड़ा है, अत: वैज्ञानिकों ने इसके 20 स्थानों पर व्यापक सर्वे करने की योजना बनाई है। इसके लिए वह कार्बन डाइआक्साइड को जमीन में डालना चाहते हैं। यह प्रक्रिया कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन कहलाती है।

ऐसा ही एक अध्ययन अमेरिका की इडाहो नेशनल लैबोरेटरी में किया गया, जहाँ 85000 वर्ग मील के इलाके में ज्वालामुखी के लावे से बनी बसाल्ट चट्टानें फैली हैं। अध्ययन में पता चला कि इस क्षेत्र में 100 अरब टन कार्बन डाइआक्साइड का संग्रह किया जा सकता है।

ज्वालामुखी के लावे की परत एक के ऊपर एक जमने की वजह से बेसाल्ट चट्टानें बनती हैं और यह भी परतदार होती हैं। इनकी मोटाई दस से सैकड़ों फीट हो सकती है।

तेजी से ठंडी होने वाली बसाल्ट चट्टानों के ऊपरी हिस्से में कई दरारें तथा गैस के बुलबुलों के निशान होते हैं। धीरे धीरे ठंडी होने वाली बसाल्ट चट्टानों के अंदरूनी हिस्से में अत्यंत सघनता होती है। लावे से चट्टान बनने की प्रक्रिया में कई सदियाँ लग जाती हैं।

कांग्रेस में अर्थ सिस्टम्स साइंसेज के अध्यक्ष डिमरी ने कहा कि यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है। हमें इसका ध्यान रखना होगा और देखना होगा कि इसमें संग्रहित कार्बन डाइआक्साइड पुन: हवा में न चली जाए, अन्यथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। कार्बन डाइआक्साइड ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।

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