अफजल गुरु जैसा बनना चाहता है उसका बेटा

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। संसद पर हमले के दोषी और बाद में फांसी की सजा पाने वाले अफजल गुरु का बेटा अपने अब्बाजान का सपना पूरा करना चाहता है। वह डॉक्टर बनना चाहता है। गालिब ने बोर्ड परीक्षा में 500 में से 474 नंबर हासिल किए हैं। वह बोर्ड का सेकंड टॉपर है।
 
अफजल गुरु भी एक बड़ा डॉक्टर बनने की चाहत लिए हुए था, लेकिन आतंकवाद की ओर पांव मुड़ने के कारण वह अपने सपने को पूरा नहीं कर पाया था। उसने एमबीबीएस की पढ़ाई जरूर की थी, पर बड़ा डॉक्टर नहीं बन पाया था, पर अब लगता है उसका बेटा ऐसा कर पाएगा, क्योंकि उसके बेटे ने दसवीं की परीक्षा में 95 प्रतिशत नंबर लिए हैं। 
इतना जरूर था कि जम्मू कश्मीर की बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में 95 फीसदी नंबर हासिल कर सोशल मीडिया पर जबरदस्‍त चर्चा बटोर रहे अफजल गुरु के बेटे गालिब को भारत पर भरोसा नहीं है। गालिब ने बोर्ड परीक्षा में 500 में से 474 नंबर हासिल किए हैं। वह बोर्ड का सेकंड टॉपर है।
 
अफजल गुरु को 2001 में हुए संसद हमले का दोषी करार देते हुए 9 फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी। अफजल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने कहा कि भारत में कहा जा रहा है कि आतंकी अफजल के बेटे ने सफलता हासिल की। मैं बता देना चाहूंगी कि वो (अफजल गुरु) आपके लिए आतंकी होगा, यहां के लिए शहीद है। यहां गालिब को लोग शहीद का बेटा बुलाते हैं। लोगों को नाज है कि एक शहीद का बेटा अपने बाप के इकबाल और नाम को आगे बढ़ा रहा है।
 
गालिब की उम्र करीब 16 साल है। गालिब को आज भी वह दिन याद है जब वह अपने पिता अफजल गुरु से अंतिम बार मिला था। गालिब ने बताया कि यह साल 2012 की बात है। मैं मां के साथ अब्बू से मिलने गया था। मुझे नहीं पता था कि अब्बू से वह मेरी आखिरी मुलाकात होगी। अब्बू ने कहा था कि बेटा खूब मन लगाकर पढ़ाई करना, कुरान पढ़ना, मां का ख्याल रखना।
 
अफजल का बेटा गालिब आगे कहता है कि मेरे अब्बू डॉक्टर थे। उनका सपना था कि मैं भी डॉक्टर बनूं। इंशाल्लाह मैं अपने अब्बू का सपना जरूर पूरा करूंगा। एक दिन आप सुनिएगा, खबर आएगी की गालिब डॉक्टर बन गया। गालिब ने बड़ी रुखाई से जवाब दिया जब किसी सरकारी मदद के बारे में उससे भी सवाल किया गया। गालिब ने कहा कि मुझे भारत पर भरोसा नहीं है। मैं खुद अपने दम पर आगे बढ़ूंगा।
 
संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के बेटे गालिब को आगे बढ़ने के लिए क्या किसी तरह की सरकारी मदद की जरूरत है? इस सवाल पर तबस्सुम साफ लहजे में कहती थी कि अंतिम वक्त में गालिब को उसके अब्बा से मिलने नहीं दिया। उनकी मिट्टी तक नहीं दी। ऐसे में क्या उम्मीद। गालिब अपने बलबूते और दुआओं के सहारे आगे बढ़ा है और आगे बढ़ेगा। 
 
तबस्सुम कहती थी कि अगर उसके अब्बा की कब्र यहां होती, तो सबसे पहले हम वहां फातिहा पढ़ने जाते। वह कहती हैं कि कब्र जहां भी हो रूह हर जगह होती है। गालिब के पिता दिल्ली में दफ्न हैं, तो इसी बहाने हमारा दिल्ली से रिश्ता तो है। ये रिश्ता प्रेम का है, अपनेपन का है। जो हुआ वो तो गलत ही हुआ। लेकिन छोड़िए उसको। वैसे गालिब की इस कामयाबी पर बधाई देने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी शामिल हैं।
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