लाइफ लाइन से डेथ लाइन बनने लगा नेशनल हाईवे

सुरेश एस डुग्गर
मंगलवार, 28 जून 2016 (18:17 IST)
श्रीनगर। जिस श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे को कश्मीरी लाइफ लाइन के नाम से पुकारा करते थे वह एक बार फिर सुरक्षाबलों के लिए डेथ लाइन बनने लगा है। ऐसा इसलिए होने लगा है क्योंकि इस हाईवे पर चलने वाले सुरक्षाबलों के काफिले आतंकियों के निशाने आसानी से बनने लगे हैं।
शनिवार को पंपोर में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले ने एक बात की तरफ सबका ध्यान आकर्षित किया है। पिछले कुछ दिनों से सेना और सुरक्षाबलों के काफिलों पर आतंकियों की नजरें लगी हुई हैं। 
 
अगस्त 2015 में उधमपुर में हुए आतंकी हमले के बाद तो जैसे सेना के काफिले पर हमलों की झड़ी-सी लग गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है कि आतंकियों ने नेशनल हाईवे पर चलने वाले सुरक्षाबलों के काफिलों को निशाना बनाना आरंभ किया हो बल्कि वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक वे इस हाईवे पर कई बार खूनी खेल खेल चुके थे जिसके लिए वे बारूदी सुरंगों से लेकर राकेटों तक का इस्तेमाल करते रहे हैं।
 
जम्मू-कश्मीर पुलिस के डायरेक्टर जनरल के राजेंद्र कुमार का कहना है कि सुरक्षाबलों के काफिले पर हमले वाकई हैरान करने वाले हैं। राजेंद्र कुमार की बात पर अगर गौर करें तो पता लगता है कि राज्य में सुरक्षाबलों के काफिलों पर हुए ये सभी हमले बढ़ते खतरे की ओर भी इशारा करते हैं।
 
अभी तक इस वर्ष ही सेना के काफिले पर तीन बड़े हमले हो चुके हैं और हालिया हमला पंपोर में हुआ आतंकी हमला है। इस हमले में आठ सीआरपीएफ जवानों की मौत हो गई थी। 
 
जम्मू कश्मीर में सेना और सुरक्षाबल के वे काफिले जो सुनसान रास्तों से सफर करते हैं उन पर आजकल आतंकियों की नजरें सबसे ज्यादा हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बात काफी हैरान करने वाली है कि इन काफिलों को कोई सुरक्षा नहीं दी गई थी।
 
सबको मालूम है कि जम्मू कश्मीर में अहम लड़ाई सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच ही है। आतंकियों का मानना है कि अगर वे सेना के काफिले को निशाना बनाते हैं तो वे बड़ा नुकसान कर सकते हैं। इसके अलावा इन हमलों के बाद अक्सर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं जिनसे सर्च ऑपरेशन और खतरनाक हो जाता है।
 
जवान जिस बस में सफर करते हैं वे बुलेट प्रूफ नहीं होती हैं। कोई भी बुलेट प्रूफ वाहन उन्हें इस तरह के हमलों से बचा सकता है। सीनियर ऑफिसर्स की मानें तो इंटेलीजेंस काफी बड़ा और अहम सवाल है। उनका मानना है कि भले ही कोई इंटेलीजेंस हो या ना हो लेकिन सुरक्षा हमेशा चाक चौबंद रहनी चाहिए।
 
इस वर्ष फरवरी में पंपोर में ही आतंकियों ने सुरक्षाबलों को अपना निशाना बनाया था। उस समय भी सीआरपीएफ के दो जवानों की मौत हो गई थी। इसके बाद तीन जून को आतंकियों ने बीएसएफ के काफिले को निशाना बनाया था। 
 
बीएसएफ का काफिला जम्मू श्रीनगर हाइवे से गुजर रहा था जब बिजबिहाड़ा में उस पर हमला हुआ। इसके बाद 25 जून शनिवार को सीआरपीएफ के काफिले को फिर से निशाना बनाया गया। पिछले वर्ष अगस्त में उधमपुर में आतंकी हमला हुआ था जिसमें बीएसएफ के दो जवान शहीद हो गए थे।
 
इससे पहले 24 जून 2013 को सेना के आठ जवानों की मौत हो गई थी जब आतंकियों ने इसी तरह से उन्हें अपना निशाना बनाया था। इससे पहले 19 जुलाई 2008 को भी सेना के काफिले पर हमला हुआ जिसमें 10 जवान शहीद हो गए। इस हमले में आतंकियों ने सेना की गाड़ी को ब्लास्ट से उड़ा दिया था।
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