भाजपा-पीडीपी गठबंधन में फिर हुई दरार

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। राज्य की गठबंधन सरकार के दोनों राजनीतिक दलों भाजपा और पीडीपी के बीच एक बार फिर दरार पैदा हो गई है। दरार के दो मुख्य कारण, उन पत्थरबाजों के परिवारों को मुआवजा देने के हैं, जो पिछले छह महीनों के दौरान पुलिस की कार्रवाई में मारे गए तथा राज्य के अंतिम महाराजा हरिसिंह के जन्मदिन पर राज्य में अवकाश घोषित किए जाने को लेकर विधानसभा में पारित प्रस्ताव है।
 
भाजपा के विरोध को दरकिनार कर रियासती सरकार ने कश्मीर हिंसा के दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मारे गए पत्थरबाजों के परिवारों को मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सत्ताधारी गठबंधन के घटक दल भाजपा ने प्रदेश कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित कर इसका विरोध किया था।
 
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह साफ कर दिया है कि हिंसा में हुई मौतों की जांच के लिए आयोग का गठन नहीं होगा। उन्होंने न्यायिक जांच की मांग को भी खारिज कर दिया है। जांच के लिए सिट का गठन कर दिया गया है। इस बाबत पुलिस मुख्यालय की ओर से आदेश जारी कर दिए गए हैं।
 
मजेदार बात यह है कि विधानसभा सत्र में भी गठबंधन के दोनों दल 36 का आंकड़ा बनाए हुए हैं। पहले ही बुरहान वानी के परिवार को मुआवजा देने के सरकार के ऐलान ने भाजपा को कठघरे में ला खड़ा किया था। बड़ी मुश्किल से भाजपा ने बुरहान वानी के नाम को अपने गले से निकाल बाहर फेंका था ही कि पत्थरबाज अब उनके गले पड़ गए हैं।
 
मारे गए पत्थरबाजों के परिवारों को मुआवजा देने, उनके पुनर्वास करने तथा सरकारी नौकरी देने के फैसले चाहे पीडीपी ने आप ही लिए लेकिन जम्मू संभाग समेत देश के अन्य हिस्सों में संदेश यही गया कि इस फैसले में भाजपा की भी भागीदारी है जो पत्थरबाजों को हमेशा देशद्रोही करार देती आई है तो अब यह प्यार क्यों?
 
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की इन घोषणाओं के बाद भाजपा को अपने ही लोगों की आलोचनाओं का शिकार इसलिए होना पड़ा क्योंकि वह अभी तक वर्ष 2008 में होने वाले अमरनाथ जमीन आंदोलन में मारे गए लोगों को न तो मुआवजा दिला पाई थी और न ही उन लोगों के खिलाफ पुलिस मामलों को खारिज करवा पाई थी, जो अभी भी इतने सालों से कोर्ट-कचहरियों के चक्कर काट रहे हैं।
 
यही नहीं जम्मू कश्मीर के अंतिम महाराजा हरि सिंह जिन्होंने राज्य के भारत में विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे, के जन्मदिन पर राज्य में अवकाश होने के प्रस्ताव का विरोध कुछ विपक्षी दलों ने किया तो पीडीपी भी उसमें शामिल हो गई। ऐसी परिस्थितियों में भाजपा अवाक सी रह गई थी। नतीजा यह है कि भाजपा अभी तक दोनों मुद्दों को सुलझा नहीं पाई है जिस कारण दोनों ही दलों में एक बार फिर रार बढ़ती जा रही है। 
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