खून से लिखते हैं, इंसानियत की इबारत

Webdunia
शनिवार, 29 नवंबर 2014 (15:33 IST)
-शब्बीर हुसैन
 
रब की सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान है और इसके निर्माता ने इस बात को पसंद नहीं किया है कि सब इंसान एक जैसे हों। हर इंसान अपनी अलग पहचान रखता है। रंग-नस्ल, नैन-नक्श, कद-काठी हर इंसान को दूसरे इंसान से जुदा कर देती है।
 
मगर, ख़ास बात ये है कि इस अनुपम कृति में एक तत्व ऐसा है, जो सब मनुष्य में एक जैसा ही पाया जाता है, वो है खून। सभी के लहू का रंग भी लाल ही होता है और शरीर में इसकी ज़रूरत और काम करने का अंदाज़ भी एक ही होता है।
 
तरक्की के इस दौर में अंग-प्रत्यारोपण के ज़रिए कितने ही मनुष्य नया जीवन पा जाते हैं। रक्तदान भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। रक्त एक ऐसी आवश्यकता है जिसके बगैर कोई भी बड़ी शल्य-चिकित्सा असंभव है। दुर्घटना, झगड़े-फसाद जैसे आकस्मिक हालात भी रक्त की वक़्त पर पूर्ति न होने की वजह से बड़े हादसे का कारण बन जाती है।
 
रक्तदान की महत्ता हर वो शख्स बा-खूबी महसूस कर सकता है जिसका अपना परिजन, रिश्तेदार, दोस्त खून देने वालों की तलाश में जब दर-दर भटकता है, लोगों की विनती करता है और खुद को असहाय, बे-बस और लाचार पाता है। यह स्थिति और भी विकट रूप धारण कर लेती है, जब कोई मुसाफ़िर अजनबी शहर, माहौल और लोगों के बीच रक्तदाताओं की तलाश में, जीवन-मौत के संघर्ष में इंसानियत को ढूंढता है। उस पर बड़ा ज़ुल्म ये हुआ है कि इंसानों को बांटने और वोट हासिल करने की राजनीति ने लहू के भी अलग-अलग रंग पैदा कर दिए हैं, जिस वजह से रक्तदाता भी अब नाम पूछकर, जाति, मज़हब देखकर रक्त देने का सोचने लगे हैं। (देखिए आलेख, 'लहू के दो रंग'- आदिल सईद, प्रभात किरण दिनांक 21 नवंबर)।
 
ऐसे हालात में सबसे ज़्यादा गरीब आदमी पिस जाता है जिसके पास महंगे अस्पताल में इलाज, प्राइवेट चिकित्सक की फीस की व्यवस्था नहीं होती। उसके पास सरकारी अस्पताल ही एकमात्र आशा की किरण का काम करती है। एमवाय अस्पताल को लेकर चाहे कितनी ही आलोचना की जाए, लेकिन यहाँ का रक्त-बैंक और इसकी टीम का काम यहाँ की जीवनरेखा का काम करती है। उपलब्ध संसाधनों के बावजूद रक्तदाताओं की कमी, ज़रूरत और आपूर्ति का फर्क इन्हें भी लाचार और बेबस कर देता है।
 
कुछ महीनों पहले जब एमवाय में रक्त की कमी की खबर आई थी तब सैफी नगर के युवाओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से 103 यूनिट रक्त चंद घंटों में इकट्ठा कर के एमवाय को दान कर दिया था। यह स्थिति एमवाय में लगातार बनी रहती है। इसी कमी की आपूर्ति करने, गरीब मरीज़ों को भटकने से बचाने के उद्देश्य से कल रविवार को सैफी नगर के युवाओं की टीम दोबारा 'रक्तदान, महादान' के नारे के साथ मालवा कैम्ब्रिज स्कूल, खातीवाला टैंक पर कैंप लगा रही है। इस बार पिछले अनुभव को ध्यान में रखकर ज़्यादा लोगों को प्रेरित करने का संकल्प भी इन्होंने लिया है। मुस्तफा मालक, मजहर मालक अपने दोस्तों, परिवार की महिलाओं के साथ बढ़-चढ़कर इस नेक काम का हिस्सा बनते हैं।
 
खून से इंसानियत को जोड़ने की इस इबारत को लिखने के लिए ऐसी कोशिशों को बढ़ावा देना आज के वक़्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है। इसमें वो तमाम लोग आमंत्रित हैं, जो इंसानियत का दर्द अपने दिल में रखते हैं। यकीन जानिए इस पुण्य कार्य से दिल के अदृश्य तारों से ऐसी आवाज़ पैदा होती है, जो परायों को भी ऐसे ख़ून के रिश्तों में बाँध देती है जिसे अंतरमन में ही सुना और महसूस किया जा सकता है। 
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