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बाघ आदमियों को ले गया, अम्फान रोजगार, सुंदरबन की बाघ विधवाओं का संघर्ष

हमें फॉलो करें बाघ आदमियों को ले गया, अम्फान रोजगार, सुंदरबन की बाघ विधवाओं का संघर्ष
, बुधवार, 27 मई 2020 (16:47 IST)
कोलकाता। मंजुला सरदार (45) मुरमुरे और गुड़ लेकर बैठी नमकीन पानी से भर चुके तालाब को एकटक देख रही हैं। 2 दिन में पहली बार मंजुला को मुरमुरे और गुड़ नसीब हुए हैं, जो फिलहाल उनका पूरा खाना है। पश्चिम बंगाल में 1 हफ्ते पहले आए अम्फान तूफान ने न सिर्फ मंजुला के तालाब की सारी मछलियों को मार डाला बल्कि उससे आजीविका का एकमात्र सहारा भी छीन लिया।
7 साल पहले 2013 में जब सुंदरबन के गोसाबा इलाके में एक बाघ ने उसके पति को मार डाला तबसे इस तालाब की मछलियां ही 4 लोगों के परिवार के लिए आय का एकमात्र सहारा थीं। मंजुला और उस जैसे महिलाओं को आतौर पर 'बाघ विधवा' कहा जाता है। मंजुला को अब इस बात की चिंता सता रही है कि परिवार का पालन कैसे करेगी, क्योंकि चक्रवात के साथ आए पानी ने तालाब और आसपास के सारे खेतों में पानी लबालब भर दिया और इसमें उसकी आमदनी का जरिया भी जाता रहा।
 
मंजुला ने फोन पर बताया कि चक्रवात आइला के बाद हमारे खेतों में नमकीन पानी भर गया और तब मेरे पति ने परिवार चलाने के लिए सुंदरबन की खाड़ियों में मछली पकड़ने का काम शुरू किया। मछली पकड़ने के दौरान ही एक बार बाघ ने हमला कर दिया और उन्हें घसीटकर जंगल में ले गया।
काफी संघर्ष के बाद एक गैरसरकारी संगठन की मदद से उसे घर के पास मछली पालन के लिए एक तालाब के इस्तेमाल की इजाजत मिली थी। उसने कहा कि लेकिन 'अम्फान' सब कुछ ले गया। मेरे घर का एक हिस्सा ढह गया जबकि पूरा तालाब खारे पानी से भर गया जिससे मछलियां मर गईं। तालाब को फिर से मछली पालने लायक बनाने में काफी पैसा और समय लगेगा।
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गोसाबा इलाके के सतजेलिया प्रखंड की 100 से ज्यादा 'बाघ विधवाओं' ने बीते 15 वर्षों में अपने पतियों को बाघ की वजह से खो दिया और इन सबकी कहानी कमोबेश एक जैसी है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सुंदरबन इलाके में 2010 से 2017 के बीच बाघ के हमलों में कम से कम 52 लोगों की जान गई है।
 
शीबा सरदार (40) सतजेलिया की रहने वाली एक अन्य बाघ विधवा है। उसे चक्रवात या इंसान-बाघ के संघर्ष से ज्यादा भूख का डर है। वह मुर्गीपालन का काम करती थी और उन्हें बड़ा होने पर मीट निगम को मुनाफे पर बेचती थी। उसने कहा कि हमारे लिए प्रकृति और वन्यजीव के साथ संघर्ष नियमित बात है। लेकिन सबसे ज्यादा दुख इस बात का होता है कि जब भी सुंदरबन में कोई आपदा आती है तो हमें सब कुछ जीरो से शुरू करना पड़ता है।
 
शीबा ने कहा कि 100 मुर्गियां और 80 चूजे बह गए। मेरे पास जो खेत का छोटा टुकड़ा था उसमें भी पूरी तरह खारा पानी भर चुका है। राहत सामग्री वितरण जब बंद हो जाएगा तो हम कैसे जिंदा रहेंगे? शीबा की छोटी बेटी 10वीं की परीक्षा देने के बाद नतीजों का इंतजार कर रही है जबकि बड़ी बेटी की उम्र विवाहयोग्य है।
 
सुंदरबन डेल्टा (नदीमुख भूमि) यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है। चक्रवात की वजह से यहां कई किलोमीटर जमीन के दायरे में खारा पानी भर गया। इसकी वजह से अगले 5-6 वर्षों तक यहां कुछ भी उपजाना बेहद मुश्किल होगा।
 
खेतिहर मजदूर सुलाता का कहना है कि आइला चक्रवात के बाद चीजें पटरी पर लौटना शुरू हुई ही थीं कि अम्फान तूफान ने सब कुछ खत्म कर दिया। उसने कहा कि अब हमें सब कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा। कोई खेतीयोग्य जमीन नहीं बची और मेरे पास परिवार को पालने के लिए कोई जरिया नहीं है।
 
सुलाता के पति को 2011 में उसकी आंखों के सामने ही बाघ ने मार दिया था। उसने बताया कि बाघ, घड़ियाल और सांप के हमले में अपने पति को खोने वाली बहुत-सी महिलाओं ने शहर का रुख कर लिया और वहां काम तलाश लिया। बाघ विधवाएं हर महीने 5 से 6 हजार रुपए कमा लेती थीं लेकिन अब हालात बेहद खराब हो गए हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के हस्तक्षेप की बेहद जरूरत है।
 
यादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान विद्यालय के निदेशक सौगत हाजरा कहते हैं कि सुंदरबन जैसे आपदा संभावित इलाकों के लिए सरकार को निश्चित रूप से कोई नीति बनानी चाहिए। वहीं संपर्क किए जाने पर पश्चिम बंगाल सुंदरबन मामलों के मंत्री मंटुराम पखीरा ने कहा कि सरकार सुंदरबन की विधवाओं के मामले को देखेगी। (भाषा)

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