भारत में लिंग रूप में केवल भगवान शिव को ही पूजा जाता है, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहां लिंग स्वरूप में देवी की पूजा की जाती है। साल में एक बार खुलने वाले इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन करने से निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है।
देश के छत्तीसगढ़ राज्य के अलोर गांव में पहाड़ी के ऊपर मां शक्ति का मंदिर है जिसमें उनकी मूर्ति एक लिंग रूप में पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस लिंग रूप में भगवान शिव और शक्ति दोनों ही समाहित हैं, इसलिए दोनों की एक साथ पूजा की जाती है। इस मंदिर के साथ एक विशेषता यह भी जुड़ी है कि इसे वर्ष में केवल एक बार खोला जाता है। एक दिवसीय पूजा के बाद इसे फिर वर्ष भर के लिए बंद कर दिया जाता है।
मंदिर के दरवाजे बंद होने के बाद दरवाजे के बाहर रेत डाल दी जाती है। एक वर्ष बाद जब फिर से मंदिर खोला जाता है तो रेत पर बने चिन्हों से अनुमान लगाया जाता है कि अगला वर्ष कैसा होगा।
ऐसा माना जाता है कि अगर रेत पर कमल का चिन्ह बना हो तो यह लोगों की धन संपदा में बढ़ोतरी का प्रतीक होता है। जो लोग निसंतान होते हैं वे इस मंदिर में विशेष तौर पर दर्शन करते के लिए आते हैं और वे मानते हैं कि देवी उनकी संतान की इच्छा को अवश्य पूरी करेगी।
जिस पहाड़ी पर यह मंदिर बना है, उसे लिंगई गट्टा पहाड़ी कहा जाता है और यहां माता एक गुफा में वास करती हैं। इस मंदिर में लिंग की ऊंचाई करीब दो फीट है और पहले यह इतना ऊंचा नहीं था लेकिन समय के साथ इसकी ऊंचाई भी बढ़ती रही है। इस मंदिर में प्रवेश करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत ही छोटा और तंग है। इसलिए माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को लेटकर या घुटने के बल बैठकर मंदिर में प्रवेश करना पड़ता है।
मंदिर के अंदर काफी खुला स्थान है और यहां 25-30 लोग एक साथ माता की पूजा कर सकते हैं। मन्नत मांगने आए लोग देवी को खीरे का प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर के पुजारी पूजा करने के बाद खीरा दम्पति को लौटा देते हैं और नाखून की मदद से खीरे को दो हिस्सों में बांटकर तोड़ा जाता है। लिंग के समक्ष एक-एक हिस्सा पति, पत्नी खा लेते हैं और माना जाता है कि ऐसा करने से निसंतान दम्पत्ति को संतान की प्राप्ति होती है।