उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले का मांगली बरसाली गांव इन दिनों अरुणाचल प्रदेश का राज्य पुष्प ऑर्चिड फ़ॉक्सटेल महक रहा है। द्रौपदी के गजरे पर सजने के चलते इस फूल को द्रौपदीमाला भी कहते हैं। यह पुष्प मां सीता को भी अतिप्रिय था।
वनवास के दौरान भगवान श्रीराम पंचवटी नासिक में रुके थे। तब सीता मां ने भी इस फूल का इस्तेमाल किया था। इस वजह से इसे सीतावेणी भी कहा जाता है। इसके धार्मिक महत्व को देखते हुए उत्तराखंड के वन महकमे ने इसको सहेजा है। उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने अपनी नर्सरी में खिलाकर संरक्षित किया है।
इसका वानस्पतिक नाम Rhynchostylis retusa है। वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया व भारत के अरुणाचल प्रदेश, आसाम व बंगाल में ये बहुतायत में प्राकृतिक रूप से उगता है। अरुणाचल प्रदेश व आसाम का तो ये 'राज्य पुष्प' भी है।
उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में इस फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड के लिए अनुकूल माहौल वातावरण, पर्यावरण के चलते इसको उगाने के सरकारी प्रयास वन विभाग स्तर पर जारी हैं। उत्तरकाशी जिले के मांगली बरसाली गांव में एक अखरोट के पेड़ के ठूंठ पर इस फूल ने पिछले 10 वर्षों से अपना 'घरौंदा' बना रखा है।
इस फूल को कोई प्रवासी पक्षी लाया होगा औऱ बीट (मलत्याग) के माध्यम से इस फूल को germination यानी अंकुरण में इस पुराने सड़ रहे अखरोट के पेड़ पर उपयुक्त और अनुकूल मिट्टी माहौल और वातावरण मिलने से यह यहां जम गया होगा। यह फ़ॉक्सटेल ऑर्चिड पुष्प अधिपादप श्रेणी में है। अधिपादप वे पौधे होते हैं, जो आश्रय के लिए वृक्षों पर निर्भर होते हैं लेकिन परजीवी नहीं होते। ये वृक्षों के तने, शाखाएं, दरारों, कोटरों, छाल आदि में उपस्थित मिट्टी में उपज जाते हैं व उसी में अपनी जड़ें चिपकाकर रखते हैं।
मांगली बरसाली गांव के निवासी और गंगा विचार मंच के उत्तराखंड प्रदेश संयोजक लोकेन्द्रसिंह बिष्ट ने बताया कि उनके गांव में यह पिछले 10 साल से एक पुराने अखरोट के पेड़ पर हर वर्ष मई-जून में खिलता है इसके वे स्वयं गवाह हैं। इसे किसी ने लगाया नहीं, लोकेन्द्र सिंह बिष्ट के अनुसार गांववासियों के लिए इस फूल का खिलना एक कौतूहल से कम नहीं है।
मेडिकल गुणों की वजह से इसकी खासी डिमांड है। आंध्रप्रदेश में तो इसकी तस्करी भी होती रही है। उत्तराखंड के वन अनुसंधान केंद्र द्वारा ज्योलीकोट व एफटीआइ की नर्सरी में इसे उगाया गया है। अस्थमा, किडनी स्टोन, गठिया रोग व घाव भरने में द्रौपदीमाला का दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
असम का बीहू नृत्य में इस फूल का श्रृंगार कर सांस्कृतिक कार्यक्रम से लेकर शुभ अवसर तक यहां की महिलाएं नाचती हैं। यह फूल जमीन व पेड़ दोनों पर होता है। आमतौर पर समुद्रतल से 700 मीटर से लेकर 1500 मीटर ऊंचाई पर मिलने वाला यह फूल अखरोट, बांज व अन्य पेड़ों पर नजर आता है।