यह पौधा आसानी से प्राप्त हो सकता है। मोर की शिखा जैसा दिखाई देने के कारण इसे मयूर शिखा कहते हैं। बंगाली में लाल मोरग या मोरगफूल कहते हैं जबकि तेलगु में माइरक्षिपा और ओड़िया में मयूर चूड़िआ कहते हैं। भारतीय भाषाओं में इसे भिन्न भिन्न नाम से जानते हैं। इसका वैज्ञानिक नामएक्टीनप्टेरीडेसी और अंग्रेजी में इसे पीकॉक्स टेल कहते हैं। यह मुर्गे की कलगी की तरह भी दिखाई देता है इसलिए इसे 'मुर्गे का फूल' भी कहते हैं। यह पौधे 2 या 3 प्रकार के होते हैं।
1. बाग-बगीचे और घर के अंदर की सुंदरता बढ़ाने के लिए यह पौधा लगाया जाता है। यह डेकोरेटिव पौधा है।
2. वास्तुदोष निवारण में यह पौधा लाभदायक माना जाता है। इससे घर के भीतर की नकारात्मकता समाप्त होती है।
3. माता जाता है कि इसे लगाने से पितृदोष का निवारण भी होता है।
4. इसका एक नाम दुष्टात्मानाशक भी है अर्थात यह घर में बुरी आत्माओं के प्रवेश को रोकता है।
5. इसकी पत्तियां और फूल को सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
6. आयुर्वेद में इसका उपयोग औषधी के रूप में होता है। कषाय, अम्ल, शीत, लघु, कफ-पित्तशामक, ज्वरघ्न तथा पक्वातिसार शामक, मधुमेहरोधी आदि का कार्य होता है।