दीपावली का त्योहार वैसे तो देश भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर दिवाली कुछ विशेष थी। यहां पर दिवाली पर सब कुछ वैसा ही था जैसे बाकी घरों में होता है, लेकिन फिर भी सब कुछ खास था।
जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर पटाखों से होने वाला ध्वनि और वायुप्रदूषण भी नहीं था, और बाजार से लाई गई एक भी चीज यहां नहीं थी, लेकिन दीपावली उसी रौनक और उल्लास वाली थी जैसी हर जगह। दरअसल दीपावली पर यहां बारुद की गंध नहीं बल्कि मिट्टी की महक थी।
प्रकृति की गोद में, सनावदिया गांव में स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर में दीपावली पूरी तरह से प्राकृतिक और खुशनुमा थी। यहां दीपों की रौशनी जरूर झिलमिलाई, लेकिन ये दीपक बाजार के चाइनामेड या मोम के दीए नहीं, बल्कि हाथों से बनाए गए दीपकों से थी।
दीपावली पर की रौशनी, यहीं के रहने वाले ग्रामीणों के हाथों बनाए गए मिट्टी कि दीयों से थी, और पकवानों की महक, घर पर उगाए गए चने से बने बेसन के व्यंजनों और मिठाईयों से।
दीपावली पर हर घर और बजार की तरह यहां भी रंगबिरंगी लाइट्स से जगमगाती हुई रौशनी थी, लेकिन उन लाइट्स को जलाने के लिए बिजली की जगह सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया गया था।
सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व भी यहां ईको फ्रेंडली वातावरण में गाय गौरी और उसकी दो बछड़ों - शक्ति और ऊर्जा का पूजन कर, उन्हें प्राकृति रंगों और हेंडमेड मुरंगों से सजाकर मनाया गया।रंगने के लिए पूरी तरह से प्राकृतिक और घर पर उगाई गई हल्दी और फूलों से बने रंगों द्वारा किया गया था।
इतना ही नहीं गौरी, शक्ति और ऊर्जा के घर को भी फूलों से सजाया गया और प्यार दुलार के साथ गोवर्धन के पर्व को यहां उत्सव की तरह मनाया गया।