कश्मीर में 21 बरस के कामरान आफताब की दादी से मिलने की हसरत क्यों अधूरी रह गई?

सुरेश डुग्गर
सोमवार, 4 फ़रवरी 2019 (17:30 IST)
जम्मू। पाक अधिकृत कश्मीर से अपनी दादी और अन्य रिश्तेदारों से मिलने के लिए 'राहे मिलन' का सफर करने वाले 21 वर्षीय कामरान आफताब को एलओसी ने एक बार फिर इसलिए बांट दिया, क्योंकि अनुमति के बावजूद उसे तारबंदी के पीछे छूट चुके अपने पैतृक गांव जाने की अनुमति सेना की ओर से नहीं दी गई। हालांकि आफताब को प्रशासन की ओर से अनुमति इसलिए मिली थी, क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों ने उसे क्लीन चिट दी थी।
 
21 वर्षीय कामरान आफताब ने पुंछ जिले में गलोटा बेहरोट में अपनी दादी, चाचा और अन्य रिश्तेदारों से मिलने और उस गांव में जाने के लिए 28 जनवरी को शांति बस अर्थात राहे मिलन के माध्यम से उस कश्मीर से इस कश्मीर आने की यात्रा की थी। हालांकि सेना ने उन्हें एलओसी की बाड़ से आगे स्थित एक गांव गालोटा बहरोट की यात्रा करने की अनुमति नहीं दी।
 
दरअसल, तारबंदी के पार छुट चुके गांवों में जाने के लिए सेना द्वारा संचालित फाटकों को पार करने के लिए सेना की अनुमति आवश्यक होती है। आफताब को पुंछ में 25 फरवरी तक रहने की वैध अनुमति मिली थी। उसे अपने घर जाने के लिए डिप्टी कमिश्नर पुंछ की ओर से अनापत्ति पत्र भी दिया गया था, पर इस पत्र के बावजूद वह अपने उस घर को नहीं देख पाया, जहां उसका बचपन गुजरा था।

उसने सेनाधिकारियों से मिन्नतें भी की कि उसे अपने पैतृक घर जाने की अनुमति दे ताकि वह अपनी दादी और अन्य रिश्तेदारों से मिल सके, पर एलओसी की दीवारें मानवीयता की दीवार के आड़े आ ही गईं।
 
निराश होकर कामरान सोमवार तड़के उस कश्मीर स्थित कोटली जिले के बांदी स्थित अपने में घर के लिए रवाना हो गया। जब वह वापसी के लिए चक्कां-दा-बाग में राहे मिलन पर सवार हो रहा था तो उसके रिश्तेदार उसे गले लगाकर फूट-फूटकर रो रहे थे, हालांकि उसकी दादी और अन्य रिश्तेदार उससे मिलने तारबंदी को पार कर चक्कां-दा-बाग पहुंचे थे।
 
वैसे यह कोई अकेला मामला नहीं है जिसमें उस कश्मीर का कोई बाशिंदा इतने करीब आकर भी अपने पैतृक घर पर नहीं जा सका। पहले भी ऐसे कई मामले हो चुके हैं जिसमें एलओसी और तारबंदी मानवीयता के आड़े आई थी। हालांकि अभी तक बाबूगिरी के कारण ही कश्मीर के दोनों हिस्सों के लोग अपने बिछुड़े हुए रिश्तेदारों से नहीं मिल पा रहे थे जिसमें अब ऐसे अड़ियलपन का अध्याय भी जुड़ गया है।

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