बादामवारी ने ताजा कर दीं कश्मीरियों की यादें...

सुरेश एस डुग्गर
मंगलवार, 28 मार्च 2017 (21:23 IST)
श्रीनगर। कश्मीर के सदाबहार मौसम के बीच बादाम के पेड़ों की छांव में बैठकर सिंघाड़े खाना और मुगल चाय (कहवा), कश्मीरी कुलचे और शीरमाल का मजा लेने का मंजर आज बरसों बाद एक बार फिर आंखों के सामने छाने लगा है। कितनी बेफिक्री और कितने अच्छे दिन थे वे। 
 
कश्मीर घाटी के मशहूर पर्यटन स्थलों में शुमार की जाने वाली बादामवारी जिसे वारिस खान के नाम से भी जाना जाता है और जो सही देखरेख न होने के कारण तकरीबन 27 वर्ष तक गुमनामी के अंधेरे में रही और एक लंबे समय के अंतराल के बाद जब बादामों के इस चमन को नए सिरे से सजा-संवारकर एक बार फिर जनता के सामने रखा गया तो नौजवानों में उत्साह की लहर दौड़ गई, वहीं कुछ बुजुर्ग भी बादामवारी में कदम रखते हुए भावुक होकर एक बार फिर अपने बचपन के दौर को याद करने के लिए अतीत के पन्ने उलटने लगे थे। 
 
बात हो रही है कश्मीर के प्रसिद्ध बादामवारी की। करीब 27 वर्ष पहले लोगों को अपने दामन में सुकून फरहाम करने वाली बादामवारी को वर्ष 2008 में आम जनता के लिए खोल दिया गया था। इसे फिर से जब आम जनता के लिए खोला गया तो लोग भावुक हो उठे। 
 
एक जमाने में धूम मचाने वाला यह ऐतिहासिक बाग तकरीबन 27 साल तक सही देखरेख न मिलने के कारण अपनी साख खो चुका था, यहां तक कि उस समय की सरकार की गलत नीतियों के कारण बादामवारी जो 27 वर्ष पहले 750 कनाल जमीन पर फैली हुई थी सिमटते-सिमटते केवल 280 कनाल तक ही सीमित रह गई क्‍योंकि सरकार ने वहां पर तिब्बती कॉलोनी का निर्माण किया। इसको नए सिरे से सजाने-संवारने के लिए जेके बैंक ने इसके निर्माण की जिम्मेदारी संभाली थी। वर्ष 2006 में इसका दोबारा निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था। 
 
तकरीबन 280 कनाल तक फैले हुए इस बाग को बड़ों के साथ-साथ बच्चों के आकर्षण के हर सामान से सजाया गया है, जिसमें एक किलोमीटर लंबा जौगर, तकरीबन तीस मीटर ऊंचा बादाम के आकार का फव्वारा भी शामिल है। इस अवसर पर यादें ताजा करते हुए लोगों का कहना था कि बादामवारी केवल एक पर्यटनस्थल ही नहीं, बल्कि इसके साथ हमारा इतिहास भी जुड़ा है। ये जगह हमारी परंपरा का प्रतीक भी है। उन्होंने जेके बैंक का धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि उन्होंने डेढ़ वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ समय में इस ऐतिहासिक बाग का दोबारा निर्माण कर एक मिसाल कायम की थी। 
 
68 वर्षीय गुलाम अली ने इस अवसर पर भावुक होते हुए कहा मुझे याद है कि मैं जब छोटा था तो मैं अपने परिवार के साथ तांगे पर यहां आया करता था। सर्दियां खत्म होते ही यहां 15 दिन तक चलने वाला नौ बहार मेला लगाया जाता था। मेले की प्रथा 1953 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम मुहम्मद बख्शी ने शुरू की थी। 
 
मुझे याद है कि ये बाग इतना बड़ा था कि चलते-चलते कदम थक जाते थे। एक दिन मैंने अपने बाबा से पूछा कि ये बाग कितना बड़ा होगा तो बाबा ने बताया था कि इसका कुल क्षेत्र 750 कनाल है। अब ये केवल 280 कनाल तक ही सिमट गई है। 76 वर्षीय अली ख्वाजा ने बताया उस जमाने में बादामवारी ही एकमात्र पर्यटन स्थल माना जाता था, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग को तो हम बस नाम से ही जानते थे। बादाम के शगूफे फूटते ही बादामवारी में मेला लगता था। 
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