कब्रों की घाटी बनी कश्मीर घाटी...

सुरेश डुग्गर
श्रीनगर। श्रीनगर से सटे सुम्बल इलाके के बटमोहल्ला के कब्रगाह में दफन बीसियों लोगों की पहचान गुम है। पिछले 27 सालों के दौरान इस कब्रगाह में 75 बेनाम लोगों के शवों को दफन करने के लिए पुलिस व सेना ने कब्रगाह की देखभाल करने वालों को सौंपा था। ऐसा सिर्फ एकमात्र कब्रगाह के साथ नहीं है, बल्कि कश्मीर के गली-मुहल्ले में बन चुके कब्रगाहों में हजारों कब्रें आज भी बेनाम हैं, क्योंकि कश्मीर घाटी को आज कब्रों की घाटी कहा जा रहा है। वैसे सैकड़ों उन लोगों को कब्रें भी नसीब नहीं हो पाईं जो एलओसी पर आरपार आते-जाते बर्फ में दफन हो गए।
बटमोहल्ला की कब्रगाह में इन 75 बेनाम कह लीजिए या अनाम कब्रों पर नजर उसी समय पड़ी जब वर्ष 2007 में कोकरनाग के अब्दुर रहमान पढेर के शव की तलाश हुई थी जिसे राज्य पुलिस के एसओजी विंग ने सवा लाख रुपयों का इनाम पाने के लिए फर्जी मुठभेड़ में मार डाला था। जिन बेनाम लोगों को इस कब्रगाह में दफन किया गया है उनमें से अधिकतर को विदेशी आतंकी करार दिया गया था और कइयों की मजार पर लगे पत्थर उनके नाम तक नहीं जानते।
 
जिन 75 लोगों के शव सेना और पुलिस ने इन 27 सालों में इस कब्रगाह में दफन करने के लिए दिए थे उनकी पहचान की खातिर अब पत्थर भी लगाए जा चुके हैं। अधिकतर पर नामालूम आतंकी लिखा गया है और यह सभी पत्थर पुलिस विभाग द्वारा लगाए गए हैं। इसी प्रकार के पत्थर कश्मीर के उन अन्य कब्रगाहों में उन कब्रों पर भी लगाए गए हैं जहां ‘मुठभेड़ों’ में मारे गए आतंकी दफन हैं।
 
अगर आधिकारिक रिकॉर्ड को भी मानें तो कश्मीर में पिछले 27 सालों में मरने वाले 60 हजार लोगों में से 90 प्रतिशत को कश्मीर के उन कब्रगाहों में दफन किया गया है जो कुकुरमुत्तों की तरह इन सालों में उगाए गए थे। इनमें 35 हजार आतंकी बताए जाते हैं जिनमें से 50 प्रतिशत विदेशी हैं। कई इस संख्या को देखकर कश्मीर को कब्रों की घाटी का नाम देने से भी नहीं चूकते क्योंकि आतंकी कश्मीर में इस अवधि में एक लाख लोगों के मारे जाने की बात करते हैं।
 
इतना जरूर है कि मुठभेड़ों में, चाहे वे असली थीं या फर्जी, मरने वालों को दो गज जमीन तो नसीब हो गई लेकिन अभी तक लापता तथा अवैध रूप से एलओसी को पार करते समय बर्फ के नीचे दफन हो जाने वालों को कब्र भी नसीब नहीं हो पाई है। हालांकि ऐसी मौतों का कोई आंकड़ा कोई मुहैया नहीं करवा पाता पर लोग इस आंकड़े को कई हजार में बताते हैं क्योंकि हजारों लोग आज भी कश्मीर से लापता बताए जाते हैं।

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