देहरादून। उत्तराखंड के नए सीएम तीरथ सिंह रावत के सामने कई चुनौतियां होंगी जिनसे पार पाना आसान नहीं होगा। असंतुष्ट खेमों को संतुष्ट करना, पूर्व मुख्यमंत्री के विवादित निर्णयों को कैसे जारी रखें, इसका सामंजस्य, चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड जिसने बीजेपी सरकार की काफी किरकिरी कराई और तीर्थ-पुरोहितों को भाजपा की खिलाफत में खड़ा किया, इस मसले को सुलझाना आदि। ये भी देखने वाली बात होगी कि त्रिवेंद्र रावत ने जिला विकास प्राधिकरणों को खत्म करने की जो घोषणा की थी, कैसे उसे निभाया जाए।
इसके अलावा लोगों की उनसे आकांक्षाएं बहुत हैं लेकिन राज्य का खजाना खाली पड़ा है। इस पर यह भी तुर्रा है कि त्रिवेंद्र रावत कई घोषणाएं कर गए हैं जिनमें संस्थाओं, किसानों और जरूरतमंद लोगों को नकदी और चेक देने की घोषणाएं भी हैं। मुख्यमंत्री का जनता से जुड़ाव चुनावी वर्ष में सबसे अहम है। तीरथ को जनता से संवाद वाला सीएम साबित होना होगा। सभी को साथ लेकर चलने की चुनौती तो होगी ही। 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ऐसा करना समय की मांग है। किसान आंदोलन, महंगाई और स्थानीय मुद्दों पर विपक्षी दलों की धार को भोथरा सरकार कैसे करे, यह भी एक चुनौती ही है।
भाजपा के अंदर राज्य में कई खेमे हैं और कई विधायक और मंत्री विभिन्न मामलों को लेकर मुख्यमंत्री से नाराज रहे। तीरथ को ब्राह्मण-ठाकुर पॉलिटिक्स को भी साधना होगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद अब अपनी टीम कैसे बनाएं, इसकी भी चुनौती होगी। चुनाव के लिए पार्टी के निष्क्रिय कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की भी चुनौती छोटी नहीं है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की तुलना में खुद को इक्कीस साबित करना भी तीरथ सिंह रावत के लिए चुनौती होगा।