Political journey of Chief Minister Hemant Soren : महज 38 साल की उम्र में सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड की कमान संभालने से लेकर आदिवासी अधिकारों के लिए स्वयं को एक योद्धा के रूप में स्थापित करने तक हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है जो जेल से रिहा होने के कुछ दिन बाद ही बृहस्पतिवार को तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
राजनीतिक विरासत के लिए सोरेन अपने पिता एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख शिबू सोरेन की पहली पसंद नहीं थे लेकिन 2009 में अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन के निधन के बाद हेमंत ने राजनीति में अपने पैर जमाना शुरू कर दिया। उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की संदिग्ध रूप से गुर्दा निष्क्रिय होने से मौत हो गई थी।
झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा कथित भूमि घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में जमानत दिए जाने के बाद हेमंत सोरेन को गिरफ्तारी के लगभग पांच महीने बाद 28 जून को जेल से रिहा किया गया था। अपनी गिरफ्तारी से कुछ समय पहले ही 31 जनवरी को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
हजारीबाग के पास नेमरा गांव में 10 अगस्त, 1975 को जन्मे हेमंत ने पटना माध्यमिक स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की और बाद में रांची में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। हेमंत को बैडमिंटन खेलने, साइकल चलाने और किताबें पढ़ने का शौक हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी कल्पना और दो बच्चे हैं।
हेमंत ने 2009 में राज्यसभा सदस्य के रूप में राजनीति में कदम रखा था। अगले वर्ष उन्होंने भारतीय जनता पार्टी नीत अर्जुन मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए संसद के उच्च सदन से इस्तीफा दे दिया। हालांकि दो साल बाद भाजपा-झामुमो सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
उन्होंने 2013 में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के रूप में झारखंड की कमान संभाली। मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल अल्पकालिक था क्योंकि 2014 में भाजपा ने सत्ता हासिल कर ली और रघुबर दास मुख्यमंत्री बन गए, तब हेमंत विपक्ष के नेता बने।
भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने 2016 में जब गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए आदिवासी भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति को लेकर छोटानागपुर किराएदारी अधिनियम और संथाल परगना किराएदारी अधिनियम में संशोधन करने की कोशिश की तो सोरेन ने एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया जिसका राजनीतिक लाभ उन्हें तीन साल बाद मिला।
अपने सहयोगियों कांग्रेस और राजद के समर्थन से हेमंत 2019 में सत्ता में आए और उनकी पार्टी झामुमो ने 81 सदस्यीय विधानसभा में अकेले 30 सीटें जीतीं जो झामुमो का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा। धन शोधन मामले में करीब पांच महीने जेल में बिताने के बाद, जेल से बाहर आने पर झामुमो नेता ने आरोप लगाया था कि वह राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं।
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, कब तक मुझ पर अत्याचार करोगे, कब तक मुझे रोकोगे...हम आदिवासी हैं, हम बीज की तरह हैं, जितना जमीन में गाड़ोगे, वो अंकुरित होकर बरगद का पेड़ बन जाएगा। ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद सोरेन ने एक्स पर कवि शिवमंगल सिंह सुमन की कविता की पंक्तियां पोस्ट कीं, यह एक विराम है, जीवन महासंग्राम है। हर पल लड़ा हूं, हर पल लड़ूंगा, पर समझौते की भीख मैं लूंगा नहीं।
अपने राजनीतिक सफर के दौरान सोरेन ने स्टीफन मरांडी, साइमन मरांडी और हेमलाल मुर्मू जैसे वरिष्ठ झामुमो नेताओं को किनारे लगा दिया जिसके कारण ये नेता पार्टी छोड़ने को मजबूर हो गए। मुर्मू और साइमन मरांडी भाजपा में शामिल हो गए वहीं स्टीफन मरांडी ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के साथ मिलकर एक पार्टी बनाई। स्टीफन बाद में झामुमो में लौट गए और सोरेन को पार्टी का नेता स्वीकार कर लिया।
मुख्यमंत्री कार्यालय में सोरेन का कार्यकाल आसान नहीं रहा। राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद खनन पट्टे के कथित नवीनीकरण के मामले में 2022 में उन पर एक विधायक के रूप में अयोग्य घोषित किए जाने का खतरा मंडरा रहा था जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री का पद खोना पड़ सकता था।
उसी वर्ष राज्य के तीन कांग्रेस विधायकों को पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में लगभग 49 लाख रुपए नकदी के साथ पकड़ा गया था। सोरेन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने आरोप लगाया था कि यह सब सरकार को गिराने की भाजपा की साजिश का हिस्सा था। तमाम समस्याओं के बीच सोरेन ने खुद को राज्य के प्रभुत्वशाली आदिवासी समुदाय की एक मजबूत आवाज के रूप में स्थापित किया।
आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार जैसी पहल के साथ सेवाओं की घर-घर पहुंच सुनिश्चित करने से लेकर राज्य सरकार की पेंशन योजना का विस्तार करते हुए अधिक से अधिक लोगों को शामिल करने तक सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम उनके शासन की विशेषता रहे हैं। वह राज्य में खनन गतिविधियों का आर्थिक लाभ आदिवासियों तक पहुंचाने के भी प्रबल समर्थक रहे हैं।
सोरेन (अब 48 वर्ष) को 31 जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ ही मिनट बाद कथित भूमि धोखाधड़ी से जुड़े धन शोधन मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। राज्य उच्च न्यायालय द्वारा सोरेन को जमानत दिए जाने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। अदालत द्वारा कहा गया कि प्रथम दृष्टया वह दोषी नहीं हैं, और याचिकाकर्ता द्वारा जमानत पर रहते हुए अपराध करने की कोई संभावना नहीं है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour