-लेषणी मेहरा
महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर से करीब 48 किलोमीटर दूर है रामटेक। इस स्थान पर प्रभु राम का अद्भुत मंदिर है। इसके साथ ही यहां पर महर्षि अगस्त्य का आश्रम भी है, जहां वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण 4 मास तक रुके थे। यह मंदिर स्थापत्य कला का भी खूबसूरत नमूना है।
पद्मपुराण में भी रामटेक का वर्णन मिलता है। ऐसा माना जाता है कि सीता ने अपने वनवास की पहली रसोई भी रामटेक यानी अगस्त्य मुनि के आश्रम में ही बनाई थी, जहां श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ सभी ऋषि-मुनियों को भोजन कराया था।
धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए मंदिर के पुजारी संजय पांडे बताते हैं कि त्रेता युग में जब श्रीराम, पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी की ओर जा रहे थे, तब वर्षाकाल शुरू हो चुका था। बरसात के चार महीने रामजी ने यहीं अगस्त्य ऋषि के आश्रम में गुजारे थे।
ऋषि अगस्त्य ने राम को रावण और उसके राक्षसों के अत्याचारों के बारे में बताया था। यहीं पर अगस्त्य ऋषि ने राम को ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था तथा राम ने राक्षसों का वध करने की प्रतिज्ञा भी यहीं ली थी।
यह मंदिर स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल है। इसके निर्माण में कहीं भी रेती-सीमेंट का उपयोग नहीं हुआ। इसका निर्माण पत्थर के ऊपर पत्थर रखकर किया गया था। हैरानी की बात है कि सैकड़ों वर्षों के बाद भी यह पूरी तरह सुरक्षित है। मंदिर के प्रांगण में एक तालाब भी है, जिसका जल स्तर कभी भी कम या ज्यादा नहीं होता है।
मंदिर के रास्ते में एक स्थान का वर्णन मिलता है, जिसे रामगिरि कहा जाता है। इसी स्थान पर कवि कालिदास ने अपनी सबसे चर्चित रचना मेघदूत लिखी थी। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल का रामगिरि ही आज का रामटेक है। त्रेता युग में यहां केवल एक पहाड़ हुआ करता था।
कालांतर में इसी मान्यता के चलते नागपुर के राजा रघुजी भोंसले ने रामटेक किले का निर्मण करवाया। आज के दौर में रामटेक मंदिर रामभक्तों की आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र है। लोग दूर-दूर से यहां पर श्रीराम के दर्शन करने आते हैं। (इंटर्नशिप के तहत पारूल विवि की छात्रा)