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मध्यप्रदेश में आरटीआई के केसों में पहली बार नया प्रयोग

हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश में आरटीआई के केसों में पहली बार नया प्रयोग
, सोमवार, 1 जून 2020 (18:49 IST)
  • वीडियो कॉल पर सुनवाई, व्हाट्सएप पर आदेश, एक ही दिन में आदेश का पालन
  • मध्यप्रदेश में मोबाइल फोन पर केस की सुनवाई पहली बार
  • आरटीआई की 7000 अपीलें लंबित हैं, दो महीने से काम ठप होने से मोबाइल फोन पर सुनवाई
  •  आयोग ने चेताया-आदेश का पालन न हुआ तो 25 हजार की पेनाल्टी से बचना मुश्किल होगा
मध्यप्रदेश के सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने पहली बार मोबाइल फोन के जरिए वीडियो कॉल पर लंबित मामलों की सुनवाई शुरू की है। सोमवार को प्रयोग के तौर पर सुने गए मामलों के आदेश भी दो घंटे के भीतर व्हाट्सएप पर भेजे गए। उमरिया के एक प्रकरण में तो आदेश पहुंचने के पहले ही आवेदक को जानकारी मिल गई।

लॉक डाउन के चलते दो महीने सुनवाइयां नहीं हो पाईं। अभी भी यातायात पूरी तरह बहाल होने के आसार नहीं हैं। लोगों में बाहर जाने का डर बाद में भी बना रहेगा। इसी वजह से आयोग ने यह शुरुआत की है।

आयोग में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सीमित सुविधा को देखते हुए यह संभव नहीं था कि नियमित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हो सके। इसलिए पहली बार मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिए दूर के दो जिलों उमरिया और शहडोल की लंबित अपीलों पर सुनवाई की गई। सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाने वालों और उनके विभागों के लोक सूचना अधिकारियों को सबसे पहले इसके लिए तैयार किया गया। दोनों पक्षों की सहमति मिलने के बाद व्हाट्सएप पर ही उन्हें सुनवाई का सूचना पत्र दिया गया। सोमवार को पहले दो मामलों की सुनवाई के बाद निराकरण किया गया और इसका फैसला भी हाथों-हाथ व्हाट्सएप के जरिए भेजा गया, जो डाक से उन्हें बाद में मिलेगा।

आयोग ने फैसले में लिखा है कि कोरोना महामारी के कठिन समय में सरकारी कामकाज में नई तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाना चाहिए। यही इस वैश्विक संकट में हमारा सबक है कि हम रोजमर्रा के काम में तकनीक का इस्तेमाल करें। इससे सुनवाई के लिए लंबी यात्रा का समय और खर्च दोनों ही बचाए जा सकते हैं।

मध्यप्रदेश में करीब सात हजार केस लंबित हैं और हर महीने औसत 400 नई अपीलें आती हैं। लोक सूचना अधिकारियों को यह हिदायत दी गई है कि जितना संभव हो आवागमन से बचने के लिए मामलों को फौरन निपटाएं। चाही गई जानकारियां दें। अनावश्यक रूप से सुनवाइयों में भोपाल आने की स्थिति में कोरोना से वे भले ही सुरक्षित रहेंगे, लेकिन 25 हजार रुपए की पेनाल्टी से नहीं बचा पाएंगे, क्योंकि जानकारी देने की 30 दिन की समय सीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है। अपीलार्थियों से भी कहा गया है कि वे चाही गई देने योग्य जानकारी लें, प्रकरणों को लंबा न खींचें।

उमरिया: आवेदक शशिकांत सिंह ने शिक्षा विभाग में एक ही बिंदु पर शिक्षकों के रिक्त पदों की जानकारी अक्टूबर 2019 में मांगी थी, जो 30 दिन की समय सीमा में उन्हें नहीं दी गई। आज की सुनवाई में लोक सूचना अधिकारी उमेश धुर्वे को तत्काल यह जानकारी देने का आदेश किया गया। दोपहर बाद आदेश की प्रति व्हाट्सएप पर भेजी गई। लेकिन तब तक आवेदक शिक्षा विभाग के कार्यालय पहुंचे और उन्हें जानकारी मिल चुकी थी। उन्होंने बाद में कहा कि मामलों को टालने की आम प्रवृत्ति है। अधिकारी जानकारी देने से बचते हैं। लोग बिलावजह परेशान होते हैं।

शहडोल: स्थानीय निवासी जगदीश प्रसाद ने तीन बिंदुओं की जानकारी शिक्षा विभाग से नवंबर 2019 मांगी थी। यह निजी स्कूलों की मान्यता और शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता से संबंधित जानकारी थी। प्रथम अपील अधिकारी के आदेश का भी इसमें पालन नहीं किया गया था। दो बिंदुओं से संबंधित दस्तावेज सुनवाई के दौरान ही उपलब्ध कराए गए। लेकिन अपीलार्थी ने कहा के वे एकसाथ पूरी जानकारी लेना चाहेंगे। आयोग ने आदेश दिया कि एक महीने के भीतर पूरी जानकारी दी जाए।

"स्मार्ट फोन सबके पास हैं। सोशल मीडिया पर ज्यादातर यूजर्स हैं। आपात स्थिति में व्हाट्सएप एक आसान विकल्प है। वीडियो कॉल पर सुनवाई का पहला अनुभव आशाजनक है। लोक सूचना अधिकारियों को आदेशित किया गया है कि वे लंबित मामलों को निपटाएं। सुनवाई का इंतजार ही न करें। चूंकि 30 दिन की समय सीमा वे पार कर चुके हैं इसलिए पेनाल्टी के दायरे में हैं। मुझे खुशी है कि लोक सूचना अधिकारियों ने पूरी तैयारी के साथ सुनवाई में हिस्सा लिया’

-विजय मनोहर तिवारी, राज्य सूचना आयुक्त, मध्यप्रदेश

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