जम्मू। आतंकवादग्रस्त जम्मू-कश्मीर को प्रवासी श्रमिकों की जबर्दस्त कमी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी कमी के संकट से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए समस्या यहां तक पहुंच गई है कि अगर यह कमी यूं ही बनी रही तो कई प्रकार की गतिविधियां ठप हो जाएंगी, जो इन्हीं प्रवासी श्रमिकों के सहारे जारी रहती हैं।
अभी तक जम्मू-कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों की कोई कमी नहीं थी। इस माह के शुरू में प्रवासी नागरिकों को आतंकियों द्वारा निशाना बनाए जाने तथा उनकी ताबड़तोड़ हत्याओं के बाद कश्मीर में उनका गैरमौजूदगी सबको खलने लगी है। चौंकाने वाली बात यह कि इन हत्याओं का असर जम्मू मंडल में भी पड़ा है, जहां से भी प्रवासी नागरिक अपने प्रदेशों को लौटने लगे हैं।
असल में पाक समर्थक विदेशी आतंकियों ने कश्मीर में होने वाले नरसंहारों के क्रम में पहले इन प्रवासी मजदूरों को भी तेजी के साथ निशाना बनाया था और जब वे 5 अगस्त 2019 के हालात के बाद सरकारी सलाह के बाद घरों को तो लौट गए लेकिन उनकी वापसी भी सहज नहीं है। आतंकी उन्हें डराने-धमकाने की खातिर उन पर हमले करने लगे हैं तथा उन्हें मौत के घाट उतारने लगे हैं। इन परिस्थितियों का नतीजा यह है कि प्रदेश से बोरिया-बिस्तर समेट अपने घरों को लौटने तथा जम्मू में डेरा लगाने का जो क्रम आरंभ हुआ, वह लगातार जारी है। अगर आंकड़ों पर विश्वास करें तो कश्मीर घाटी पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों से रिक्त होने लगी है।
नरसंहारों के उपरांत आतंकी धमकियों के चलते जान बचाने की इस दौड़ में अब प्रवासी मजदूरों के शामिल हो जाने के बाद स्थिति यह हो गई है कि कश्मीर में वे सब कार्य ठप हो गए हैं जिनमें यह प्रवासी श्रमिक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
याद रखने योग्य तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय श्रमिकों की भारी कमी है और श्रमिकों के विकल्प के रूप में प्रवासी मजदूरों का सहारा लिया जाता है, जो उत्तरप्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश से आते हैं। इन्हीं श्रमिकों का सहारा सीमावर्ती किसान अपने खेतों की बुबाई, कटाई आदि के लिए भी लेते आ रहे हैं।(फ़ाइल चित्र)