कानूनी दायरे में हो प्रतिक्रिया-काजमी

अरविंद शुक्ला
बुधवार, 22 सितम्बर 2010 (00:41 IST)
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जाने माने एडवोकेट एसएमएए काजमी का कहना है कि अयोध्या के आने वाले फैसले पर यदि एक पक्ष असंतुष्ट है तो उसके पास उच्चतम न्यायालय जाने का संवैधानिक अधिकार मौजूद है। एक अनुभवी पक्ष की हैसियत से इस फैसले का स्वागत करना चाहिए और इस पर सभी प्रतिक्रियाए संवैधानिक व कानूनी दायरे में ही प्रकट करनी चाहिए।

राज्य के पूर्व महाधिवक्ता और उत्तरप्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रह चुके काजमी ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि अयोध्या मुकदमे की सुनवाई तीनों बेहतरीन न्यायमूर्तियों द्वारा की जा रही है जो कि संवैधानिक एवं सिविल कानूनों के जानकार हैं। अत: संभावित निर्णय की गुणवत्ता के विषय में किसी संदेह का आधार नहीं बनता।

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को संभावित फैसले को एक बालिग निगाह से देखने की आवश्यकता है और इस पर न तो किसी को अनावश्यक रूप से प्रसन्न होने की और न ही गैरजरूरी तौर पर जज्बाती होने का कोई कारण है।

लोकसभा में कानून बनाकर समस्या का हल किए जाने संबंधी एक प्रश्न के उत्तर में काजमी ने कहा कि इस मुद्‌दे का हल 60 वर्षों की मुकदमेबाजी के बाद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि लोकसभा में कानून बनाकर समस्या का हल किए जाने की अपेक्षा किया जाना व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता। भावनाओं से जुड़े मुद्‌दे आपसी सौहार्द और समझदारी से तय किए जाएँ, जिसके लिए दोनों समुदाय के निष्पक्ष और गैर-राजनीतिक लोगों को आगे आना होगा।

एडवोकेट काजमी ने कहा कि सबसे ज्यादा देश के लोगों को भारत की भारतीयता पर विश्वास रखना चाहिए। यहाँ भारतीयता कितनी मजबूत और अटूट है उसका उदाहरण देश कई बार देख चुका है।

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद भाजपा का पहले राज्य विधानसभा चुनाव में हारना, लोकसभा चुनाव के बाद लोकसभा में विश्वासमत प्राप्त न कर पाना इस बात को साबित करता है कि इस देश में बाबरी मस्जिद की शहादत को मुसलमानों से अधिक हिन्दुओं ने नकारा था।

काजमी ने कहा कि गुजरात में 2002 के मोदी सरकार के तांडव के बाद देश की जनता ने मीडिया की सभी भविष्यवाणी नकारते हुए 2004 में देश की एनडीए सरकार को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि यह बातें साबित करती हैं कि भारत में भारतीयता ऐसा फैक्टर है, जो सर्वोपरि रहता है। अत: इस पर विश्वास रखते हुए सभी वर्गों को भारत को शांतिपूर्ण और प्रगतिशील बनाने में उपाय करने चाहिए। जाहिर है कि इन एजेंडों में हिंसा का कोई स्थान नहीं है।

रोजी-रोटी की चिंता : मशहूर संस्था मिल्ली
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फाउंडेशन के संयोजक एवं एडवोकेट सलाहउद्‌दीन शीबू का कहना है कि अयोध्या के आने वाले फैसले से मुल्क की अस्सी प्रतिशत आबादी जो कि बीस रुपए प्रतिदिन पर गुजारा करती है, उसे रोजी-रोटी और रोजगार की चिन्ता अभी से सता रही है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थित में संभावित फैसले को लेकर किसी अनावश्यक संवेदनशीलता से हमें बचने की आवश्यकता है।

शीबू का कहना है कि भारत की तहजीब गंगा-जमुनी है, जो सबसे बड़ी धरोहर है। यहाँ मुख्तलिफ जबान बोलने वाले एवं धर्मों का आदर करने वाले मिल-जुलकर शान्ति से रहते हैं।

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