करे तैयारी सैकेंड हनीमून पर जाने की

रखें नाजुक रिश्तों का खयाल

भाषा
' सैकेंड हनीमून न डे पर विशे ष'

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' हर शह जहाँ हसीन थी हम तुम थे अजनबी।' कुछ इसी तरह सैकेंड हनीमून न डे जैसे अवसर बोझिल होती शादीशुदा जिंदगी में रवानगी डालने के लिए कारगर हो सकता है।

पश्चिम में सैकेंड मनाने का प्रचलन है। इसी आधार पर इसका प्रचलन कब से शुरू हुआ इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि इस तरह के छोटे मोटे अवसर रिश्तों को न केवल तरोताजा कर देते हैं बल्कि उनमें नयी उर्जा का संचार भी करने में सक्षम होते हैं।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक एस. सुदर्शन के अनुसार बीते कुछ समय में तेज रफ्तार जिंदगी के साथ ही खासकर नवविवाहित महिलाओं के मनोरोग की चपेट में आने की प्रवृत्ति काफी बढी है। इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि भाग दौड़ भरी शहरी जिंदगी में नवविवाहित जोड़ों के पास एक दूसरे के लिए काफी कम समय रहता है और अक्सर दोनों के कामकाजी होने के कारण दोनों काफी कम वक्त साथ गुजारते हैं।

उन्होंने कहा कि वैवाहिक जिंदगी को लेकर लड़की कुछ सपने संजोये रहती है और जब उसकी ख्वाहिशें पूरी नहीं हो पाती हैं तो वह डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। इससे बचने के बारे में मनौवैज्ञानिकों का मानना है कि शहरी जिंदगी के बीच पति पत्नी दोनों को एक दूसरे के लिए फिक्रमंद रहना चाहिए और समय निकालना चाहिए। इससे आपसी प्रेम बढ़ेगा और शादीशुदा जिंदगी की समस्याएँ दूर होगी।

  मनौवैज्ञानिकों का मानना है कि शहरी जिंदगी के बीच पति पत्नी दोनों को एक दूसरे के लिए फिक्रमंद रहना चाहिए और समय निकालना चाहिए। इससे आपसी प्रेम बढ़ेगा और शादीशुदा जिंदगी की समस्याएँ दूर होगी।      
डॉ. सुदर्शन के मुताबिक सेकेंड हनीमून जैसी सोच बेहतर होती है क्योंकि पहले हनीमून के वक्त युगल एक दूसरे की अपेक्षाओं से अनजान रहते हैं जबकि दूसरे हनीमून के समय एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझ चुके होते हैं। एबाउट डाट काम के मैरिज गाइड शैरी स्ट्रीट्फ का कहना है हमने छह दफा हनीमून न मनाया।

हम जहाँ गये वहाँ की यादें हमारे लिए पहली दफा से अधिक महत्वपूर्ण रहीं। हकीकत यह है कि जब भी हम एक दूसरे के लिए वक्त निकालते हैं वह अहम होता है।

पहले हनीमून के बजाय दूसरा हनीमून ज्यादा अहम होता है क्योंकि पहले हनीमून न के वक्त अमूमन दोनों एक दूसरे से अंजान होते हैं और एक दूसरे की सोच को लेकर जेहन में तस्वीर साफ नहीं होती है। लेकिन दूसरे हनीमून के मौके पर दोनों न केवल एक दूसरे को समझ लेते हैं बल्कि दोनों का प्रेम एक नया आयाम ले चुका होता है।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि हर दिन व्यक्ति अपना और अपने परिवार का कई तरीकों से ख्याल रखता है। लेकिन क्या वह अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण रिश्ते का ध्यान रख पाता है। उनका मानना है कि व्यक्ति चाहे पति हो या पत्नी व्यस्त जिंदगी और जिम्मेदारियों के कारण एक दूसरे की भावनाओं का दमन करता रहता है। रोज-रोज की जिंदगी की जिम्मेदारियों से दूर सैकेंड हनीमून दोनों का एक साथ गुजारा गया यादगार वक्त साबित हो सकता है।
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