दूरियाँ और धुँधले रिश्ते

दूरियाँ इतनी भी ना बढ़ने दें

गायत्री शर्मा
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यह जीवन बस के सफर की तरह है, जिसमें हर रोज कई लोग मिलते-बिछुड़ते हैं। कोई हमारी आखिरी मंजिल तक हमारे साथ चलता है तो कोई रास्ते में ही हमें अलविदा कह अपने नए सफर की ओर कूच करता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस अजनबी को कितने समय तक याद रख पाते हैं और अपने रिश्तों में ताजगी कायम रख पाते हैं।

दूरियों के साथ-साथ रिश्ते भी धुँधले होते जाते हैं और हमारी स्मृति से वे लोग ओझल होते जाते हैं, जिनके बगैर कभी हम जीने की कल्पना भी नहीं करते थे। यही तो दुनिया की रीत है कि जीवन की इस बस के सफर में जब एक जाएगा, तभी दूसरा उसकी जगह लेगा।

रिश्तों की इस अजीब उलझन व लोगों के आवागमन के इस चक्रव्यूह में आप और मैं नहीं बल्कि हम सभी फँसे है। आज हम केवल उन्हें ही याद रख पाते हैं, जो कितने ही भले-बुरे हों लेकिन हमारे आसपास होते हैं। दूर वालों से तो बस हमारी कभी-कभार मेल-मुलाकातों में दूर की राम-राम ही होती है। बाद में वे अपनी जिंदगी में खुश और हम अपनी जिंदगी में।

दूर वालों की यदि यादें धुँधली होती हैं तो उनसे हमारे गिले-शिकवे भी धुँधले होते जाते हैं। भला जो सामने नहीं है, उससे बैर क्या पालना? यदि इस अर्थ में सोचा जाए तो रोज-रोज के विवादों से दूरियाँ भली हैं परंतु यदि दूसरे अर्थ में सोचा जाए तो कभी-कभी यह दूरियाँ दिलों को पाट देती हैं।

जब हमारे अपनों को हमारी जरूरत होती है, तब हम उनसे इतने दूर होते हैं कि हम उनके थरथराते हाथों व लड़खड़ाते पैरों को सहारा भी नहीं दे सकते हैं। ऐसी दूरियाँ भी भला किस काम की?

हालाँकि आज पैसा सर्वोपरि हो गया है। इसके बगैर जीवन में कोई आनंद नहीं है परंतु यह भी सत्य है कि पैसा प्यार नहीं खरीद सकता, पैसा ममता नहीं ला सकता, यह सिसकती आँखों के आँसू नहीं पोंछ सकता है। यह आपको दे सकता है- माँ की जगह नौकरानी, बच्चों की जगह टीवी आपके अकेलेपन का साथी व हाथों की बजाय रूमाल, जो आपके आँसू पोंछने के काम आएगा।

याद रखें अपनों से दूरियाँ न बनाएँ। हमेशा उनके आसपास रहें ताकि जब वो आपको याद करें आप उनके पास हाजिर हो जाएँ। बड़ों का आशीष व दुआएँ केवल किस्मतवालों को ही नसीब होती हैं बाकी तो तन्हाई व दूरियों में ही अपने जीवन में प्यार का असीम सुख खो देते हैं।

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