उत्सवों के हमारे देश में हर त्योहार अपनी खास पहचान रखता है। साथ ही कुछ खास नाम हर त्योहार का प्रतीक बन जाते हैं।
बात मकर संक्रांति की करें तो तिल्ली-गुड़ व गेहूँ के खिचड़े की मिठास मुँह में घुल जाती है। गिल्ली-डंडे की खनक याद आती है और साथ ही आँखों के सामने कौंध जाती हैं आसमान को छूती रंग-बिरंगी पतंगें। इन रंग-बिरंगी पतंगों को यदि जीवन के फलसफे एवं रिश्तों से जोड़कर देखें तो लगता है कि पतंग कई बातें कह व सिखा जाती है-
* पतंगों की तरह जीवन में भी विविध रंग होते हैं, खुशी, गम, पाना, खोना, आश्चर्य, भय आदि।
* जीवन में हम भी पतंग के समान आकाश को छूना व खूब ऊँचा जाना चाहते हैं।
* जिस तरह पिसे काँच व गोंद से सूते माँजे की पतंग आसानी से नहीं कटती, उसी तरह प्रेम व विश्वास से सूते रिश्ते भी मजबूत होते हैं।
उत्सवों के हमारे देश में हर त्योहार अपनी खास पहचान रखता है। साथ ही कुछ खास नाम हर त्योहार का प्रतीक बन जाते हैं। बात मकर संक्रांति की करें तो तिल्ली-गुड़ व गेहूँ के खिचड़े की मिठास मुँह में घुल जाती है। गिल्ली-डंडे की खनक याद आती है।
* बिना डोर के पतंग बेकार है, यानी जिंदगी के रिश्ते भी एक-दूसरे के सहयोग बिना अधूरे हैं।
* पतंग उड़ाना अकेले के बस की बात नहीं, उचका पकड़ने व उड़ंची देने वाला साथ भी चाहिए।
* पतंग हवा के रुख के साथ बहती है। हम भी सबके अनुकूल होकर जीवन जिएँ तो वह अधिक आसान होता है।
* पतंग के जैसे रिश्तों में पेंच न लड़ाएँ, कटने का डर रहता है।
* खपच्ची टूटी तो पतंग कट ही गई समझो। जीवन में रिश्तों की खपच्ची को टूटने न दें, उतना ही मोड़ें जितनी उसमें लचक है।
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* पतंग की पूँछ से उसका बैलेंस होता है, जीवन में धैर्य इस पूँछ का कार्य करता है। जितना हम धैर्य रखेंगे, रिश्तों में उतना ही बैलेंस होगा।
* कभी-कभी पतंग में ढील भी देना पड़ती है। जीवन में भी हमेशा तने-खिंचे न रहें, ढील देते रहें, ताकि जिंदगी 'स्मूथ' चलती रहे।
* पतंग उड़ाने में कई बार हाथों में कट लगता है। जिंदगी में भी कई बार खुशी की उड़ान के साथ गम के 'कट' भी लगते हैं।
* उचका पकड़ने व पतंग उड़ाने वाले में सही तालमेल जरूरी है। यही तालमेल रिश्तों में भी बना रहे।
* पतंग कितनी ही ऊँची उड़ जाए, उचका नीचे ही रहता है। हम भी कितनी ही ऊँचाई को छू लें, पैर जमीन पर ही रहने दें।
कभी-कभी पतंग कट भी जाती है। यानी जीवन में भी असफलता आ जाती है। लेकिन उस एक असफलता को अपनी नाकामी न मानकर फिर से नई पतंग को उड़ंची देकर, नई परवाज दें तो अवश्य ही आसमान की बुलंदियों को छू लेंगे।