सुलझे रिश्ते की उलझी दास्तान

माँ- बेटी प्यार भी तकरार भी

Webdunia
- किरन भास्कर

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माँ-बेटी का रिश्ता केवल लिंग समानता का ही रिश्ता नहीं है बल्कि यह भावनाओ ं, प्रेम व आत्मीयता का रिश्ता है। इस रिश्ते में जो मिठास व अपनापन ह ै, वो दुनिया के किसी रिश्ते में नहीं है।
यदि हमसे पूछा जाए कि औरत का सबसे सुंदर रूप कौन सा है तो बेशक हमारा जवाब होगा 'मा ँ' । औरत के इसी रूप का गुणगान कई कवियों व शायरों ने भी अपने-अपने तरीकों से किया है। कृष्णस्वरूप ने तो 'मा ँ' का बखान करते हुए कहा है -

काँपते होठों से अम्मा जो दुआ देती है
मेरे मौल ा, तेरे होने का पता देती है

  माँ-बेटी का रिश्ता उलझता है तो वह रूढ़िवादी और नवीन विचारों के टकराव के कारण। यदि माँ-बेटी दोनों अपने-अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन एक-दूसरे की जगह स्वयं को रखकर कोई भी निर्णय लेगी तो बेशक इस रिश्ते की उलझी गुत्थी आसानी से सुलझ जाएगी।       
इससे तो यही स्पष्ट होता है कि खुदा का धरती पर दूसरा रूप 'मा ँ' का है। यही माँ जब जननी बनकर अपनी संतान को जन्म देती है। तब भी क्या यह रिश्ता ताउम्र उतना ही मधुर रह पाता ह ै? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह एक विचारणीय प्रश्न है। यह एक कटु सत्य है कि जो रिश्ता जितना अधिक गहरा होता है। उसमें कड़वाहट के बीज उतनी ही जल्दी पनपते हैं।

' माँ-बेट ी' के रिश्ते में भी ऐसा ही होता है। शायद इसी कारण इस रिश्ते की समीक्षा कभी किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुँच पाई है।

अभिनेत्री गीता वशिष्ठ के अनुसार- 'मेरे अपनी माँ से बहुत अच्छे संबंध थे। मेरे कुछ कहे बगैर ही वो मेरी हर जरूरत को पूरा कर देती थी। 16 बरस की उम्र तक वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। बाद में मैंने उनसे कुछ बातें इसलिए शेयर नहीं कि ताकि मेरी बातों से उनकों कोई तकलीफ ना पहुँचे ।'

अमूमन हर माँ-बेटी के रिश्ते इतने ही मधुर व सामंजस्य से परिपूर्ण होते हैं। अपवादस्वरूप इस रिश्ते में यदि मनमुटाव आता है तो वह सामंजस्य के अभाव व नासमझी की वजह से होता है। विशेषज्ञों की माने तो 'जो माँ अपनी बेटी पर गर्व करती है तथा अपनी बातों में अपनी खुशी को दर्शाती भी है। उन माँ-बेटियों के संबंध मधुर होते हैं तथा जो माँ हमेशा अपनी बेटी से लड़ती-झगड़ती है। उनके अपनी बेटियों से संबंध तनावपूर्ण होते हैं ।'

भेदभाव से बढ़ती है कटुता :
आज के दौर में बेटा-बेटी दोनों समान है। यदि दोनों में भेदभाव किया गया तो रिश्तों में कटुता पैदा होना स्वभाविक ही है। यह भी सत्य है कि बेटियाँ बेटों की तुलना में अपनी माँ की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए निरंतर प्रयासरत रहती हैं परंतु फिर भी भेदभाव की वजह से वह कई बार अपनी माँ की चहेती नहीं बन पाती है। यह रिश्ता प्यार का रिश्ता है। यदि माँ अपनी बेटी को प्यार देगी तो बदले में उसे भी प्यार व सम्मान मिलेगा।

समझें एक-दूसरे को :
संवादहीनता किसी भी रिश्ते में तनाव का महत्वपूर्ण कारण होता है। माँ-बेटी दोनों को एक-दूसरे को समझना चाहिए तथा एक-दूसरे से अपने मन की बात कहनी चाहिए। माँ की कही गई कड़वी बात भी बेटी की भलाई के लिए होती है। यदि इस बात को बेटी समझ ले तो उनके रिश्तों में विवाद का कोई स्थान नहीं रहेगा। इसके साथ ही माँ को भ‍ी चाहिए कि वो बेटी की सफलता पर उसकी हौसलाअफजाई करें।

माँ-बेटी का रिश्ता उलझता है तो वह रूढ़िवादी और नवीन विचारों के टकराव के कारण। यदि माँ-बेटी दोनों अपने-अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन एक-दूसरे की जगह स्वयं को रखकर कोई भी निर्णय लेगी तो बेशक इस रिश्ते की उलझी गुत्थी आसानी से सुलझ जाएगी ।

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