जैन समुदाय का संथारा मामले में 'धर्म बचाओ आंदोलन' 24 को

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पिछले दिनों राजस्थान उच्च न्यायालय ने जैन धर्म के धार्मिक रिवाज ‘संथारा या सल्लेखना' अर्थात मृत्यु तक उपवास को अवैध बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 तथा 309 के तहत दंडनीय बताया। 
 
 


अदालत ने कहा, 'संथारा या मृत्युपर्यंत उपवास जैन धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।'
 


गौरतलब है कि वकील निखिल सोनी ने वर्ष 2006 में ‘संथारा’ की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। याचिका दायर करने वाले के वकील ने ‘संथारा’, जो कि अन्न-जल त्यागकर मृत्युपर्यंत उपवास है, को जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया था। 
 
राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा दिए गए इस फैसले से समस्त जैन समाज (दिगंबर-श्वेतांबर) आहत हुआ है और इसी फैसले के विरोधस्वरूप जैन समाज हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय पर पुनर्विचार को लेकर राष्ट्रव्यापी आह्वान पर सकल जैन समाज द्वारा 24 अगस्त, सोमवार को 'धर्म बचाओ आंदोलन' देशभर में होगा। जैन धर्मावलंबी बड़े पैमाने पर हाथ में तख्तियां लेकर संथारा-सल्लेखना और आत्महत्या के बीच का फर्क समझाएगा और मौन जुलूस भी निकाला जाएगा। 

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