गुजरात में एक शख्स ऐसे हैं जिनके बारे में दावा किया जाता है कि वे पिछले 70 वर्षों से बिना कुछ खाए-पिए न केवल जीवित हैं बल्कि बढ़ती उम्र के असर से भी अछूते हैं! डॉक्टरों का दल उनके इस अजूबे पर अनुसंधान कर रहा है।
बनासकाँठा जिले में एक मंदिर की गुफा में रहने वाले 81 वर्षीय प्रहलादभाई जानी उर्फ माताजी ने 70 वर्षों से अन्न-जल का त्याग कर रखा है। और यह बात स्वास्थ्य विशेषज्ञों को आश्चर्य में डाले हुए है। अब डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एंड अलायड साइसेंस के विशेषज्ञ, स्टर्लिंग अस्पताल के डॉक्टरों के साथ प्रहलादभाई की जाँच कर यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह वे बिना कुछ खाए-पिए और मल-मूत्र का त्याग किए स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
स्टर्लिंग अस्पताल के न्यूरोलाजिस्ट डॉ. सुधीर शाह और डीआईपीएएस की डॉ. इला वजगान ने बताया कि 22 अप्रैल से शुरू हुआ यह शोध सात मई तक चलेगा। डॉ. शाह ने कहा कि देश में लंबे समय तक उपवास रखने की परंपरा देखी जाती है, लेकिन तब भोजन या पानी की कुछ मात्रा ले ली जाती है। लेकिन प्रहलादभाई का मामला इसलिए अलग है कि उन्होंने भोजन और पानी को पूरी तरह छोड़ दिया है।
प्रहलादभाई ने डॉक्टरों को बताया कि उनके पास विशेष कुंडलिनी शक्ति है जिसके कारण वे इतने वर्ष बिना खाए-पिए रह सके। डॉ. वजगान ने अध्ययन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा- यदि हम इसके पीछे का रहस्य पता लगा सके, तो प्राकृतिक आपदा में फँसे लोगों, विपरीत परिस्थितियों में पानी और भोजन की कमी से जूझते सैनिकों के लिए प्रभावी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी। प्रहलादभाई के शरीर का अध्ययन कर पता लगाया जाएगा कि वह किस तरह अन्य लोगों से अलग हैं और अगर ऐसा हुआ तो इससे सैनिकों और अंतरिक्ष यात्रियों को मदद मिलेगी।
डॉक्टरों ने बताया कि 81 वर्ष की आयु में भी प्रहलादभाई का मस्तिष्क किसी 25 वर्षीय युवक के समान काम कर रहा है। उन पर उम्र का कोई असर नहीं दिखता। यहाँ तक कि आज भी वह सात मंजिला इमारत पर चढ़ सकते हैं और वह भी बिना किसी थकान के।
कंठकूपे क्षुत्पिपासानिवृत्तिः॥
कंठकूपे यानी कंठकूप में संयम करना, क्षुत्पिपासानिवृत्तिः यानी भूख और प्यास की निवृत्ति। पातञ्जलि योग दर्शन के तीसरे पाद, विभूतिपाद में सिद्धियों का जिक्र है। इस सूत्र की व्याख्या इस तरह है।
जिह्वा के नीचे एक तंतु है (जिसे जिह्वामूल भी कहते हैं), उसके नीचे कंठ है, उसके नीचे कूप (गड्ढा) है। उस कंठकूप में संयम या ध्यान लगाने से भूख-प्यास की बाधा मिट जाती है। इसमें यह कारण बतलाया जाता है कि उस कंठकूप से प्राणवायु टकराती है, उसी से भूख-प्यास की बाधा होती है, उसमें संयम करने के बाद वह नहीं होती।