भैरवदेव की भग्नावशेष मूर्ति मिली

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कल्चुरि वंशीय राजा तंत्र-मंत्र और टोना टोटके में अटूट विश्वास रखते थे। रायपुर के नजदीक पचराही में खुदाई के दौरान मिली भैरवदेव की भग्नावशेष मूर्ति इस बात की ओर इंगित करती है। पुरातत्वविदों के मुताबिक तत्कालीन राजा युद्ध में निकलने के पूर्व और किसी शुभ कार्य शुरू करने के पहले भैरवदेव की पूजा-अर्चना किया करते थे।

पचराही उत्खनन केंद्र के टीला क्रमांक 4 से भैरवदेव की मूर्ति मिली है। यह ढाई फीट ऊँची और 1 फीट चौड़ी है। मूर्ति खुरदुरे पत्थर से निर्मित है। खुदाई प्रभारी अतुल प्रधान ने बताया कि भैरवदेव भगवान शिव का ही एक रूप है।

कल्चुरि राजा इसे शक्ति का प्रतीक मानते थे, इसलिए उस समय के हर मंदिर के बाहरी हिस्से में उनकी मूर्ति लगाई जाती थी। भैरवदेव के आठ हाथ हैं। चार बाँए और चार दाएँ हिस्से में । हाथों में त्रिशूल, खप्पर, डमरू, कमंडल और अक्षमाला है। कमर में डेकोरेटेड फूल माला है, जो उस समय की कलाकृति को दर्शाती है। प्रधान ने बताया कि पचराही में भैरवदेव की मूर्ति पहली बार मिली है। इससे पहले शक्ति की देवी चामुंडा देवी की मूर्ति भी मिल चुकी है।

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उत्खनन केंद्र के निदेशक एसएस यादव ने बताया कि यह मूर्ति मिलने के पहले तक कल्चुरि वंशीय राजाओं में तंत्र-मंत्र में आस्था को लेकर मतभेद था। लेकिन अब यह पुख्ता हो गया है। उन्होंने कहा कि इससे पहले जबलपुर में भी भैरवदेव की मूर्ति मिली है, लेकिन वह उतना स्पष्ट नहीं है।

यादव ने कहा कि इस मूर्ति से कल्चुरि वंशीय राजाओं के आध्यात्मिक पक्ष को जानने-समझने में मदद मिलेगी। पचराही के टीला क्रमांक 4 से ही एक शिवजी की भग्नावशेष मूर्ति मिली है। श्री यादव ने बताया कि बरसात के कारण अभी खुदाई रोक दी गई है। अक्टूबर- नवंबर से यहाँ खुदाई शुरू हो जाएगी। इस दौरान अब तक प्राप्त पुरातात्विक महत्व की चीजों का संरक्षण किया जाएगा। उनके मुताबिक पुरातत्व विभाग अब कवर्धा स्थित राजबेंदा (मध्यप्रदेश बार्डर) में भी खुदाई करने की तैयारी में है।

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