आत्मा के पाँच कोष और चार स्तर

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
।कोष: जड़, प्राण, मन, बुद्धि और आनंद/ अवस्था: जाग्रत, स्वप्न, सु‍षुप्ति और तुरीय। 
 
'एक आत्मा है जो अन्नरसमय है-एक अन्य आंतर आत्मा है, प्राणमय जो कि उसे पूर्ण करता है- एक अन्य आंतर आत्मा है, मनोमय-एक अन्य आंतर आत्मा है, विज्ञानमय (सत्यज्ञानमय) -एक अन्य आंतर आत्मा है, आनंदमय।'-तैत्तिरीयोपनिषद 
 
भावार्थ : जड़ में प्राण; प्राण में मन; मन में विज्ञान और विज्ञान में आनंद। यह चेतना या आत्मा के रहने के पाँच स्तर हैं। आत्मा इनमें एक साथ रहती है। यह अलग बात है कि किसे किस स्तर का अनुभव होता है। ऐसा कह सकते हैं कि यह पाँच स्तर आत्मा का आवरण है। कोई भी आत्मा अपने कर्म प्रयास से इन पाँचों स्तरों में से किसी भी एक स्तर का अनुभव कर उसी के प्रति आसक्त रहती है। सर्वोच्च स्तर आनंदमय है और निम्न स्तर जड़।
 
जो भी दिखाई दे रहा है उसे जड़ कहते हैं और हमारा शरीर जड़ जगत का हिस्सा है। जो लोग शरीर के ही तल पर जी रहे हैं वह जड़ बुद्धि कहलाते हैं, उनके जीवन में भोग और संभोग का ही महत्व है। शरीर में ही प्राणवायु है जिससे व्यक्ति भावुक, ईर्ष्यालु, क्रोधी या दुखी होता है। प्राण में ही स्थिर है मन। मन में जीने वाला ही मनोमयी है। मन चंचल है। जो रोमांचकता, कल्पना और मनोरंजन को पसंद करता है ऐसा व्यक्ति मानसिक है।
 
मन में ही स्थित है विज्ञानमय कोष अर्थात ‍बुद्धि का स्तर। जो विचारशील और कर्मठ है वही विज्ञानमय कोष के स्तर में है। इस ‍विज्ञानमय कोष के भी कुछ उप-स्तर है। विज्ञानमय कोष में ही स्थित है-आनंदमय कोष। यही आत्मवानों की ‍तुरीय अवस्था है। इसी ‍स्तर में जीने वालों को भगवान, अरिहंत या संबुद्ध कहा गया है। इस स्तर में शुद्ध आनंद की अनुभूति ही बच जाती है। जहाँ व्यक्ति परम शक्ति का अनुभव करता है। इसके भी उप-स्तर होते हैं। और जो इस स्तर से भी मुक्त हो जाता है-वही ब्रह्मलीन कहलाता है।
 
ईश्वर एक ही है किंतु आत्माएँ अनेक। यह अव्यक्त, अजर-अमर आत्मा पाँच कोषों को क्रमश: धारण करती है, जिससे की वह व्यक्त (दिखाई देना) और जन्म-मरण के चक्कर में उलझ जाती है। यह पंच कोष ही पंच शरीर है। कोई आत्मा किस शरीर में रहती है यह उसके ईश्‍वर समर्पण और संकल्प पर निर्भर करता है।
 
चार स्तर : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2) स्वप्न (3) सुषुप्ति और (4) तुरीय अवस्था।
 
इसमें तीन स्तरों का अनुभव प्रत्येक जन्म लिए हुए मनुष्य को अनुभव होता ही है लेकिन चौथे स्तर में वही होता है जो ‍आत्मवान हो गया है या जिसने मोक्ष पा लिया है। वह शुद्ध तुरीय अवस्था में होता है जहाँ न तो जाग्रति है, न स्वप्न, न सु‍षुप्ति ऐसे मनुष्य सिर्फ दृष्टा होते हैं-जिसे पूर्ण-जागरण की अवस्था भी कहा जाता है।
 
A. अनुभूति के स्तर:- जाग्रत, स्वप्न, सु‍षुप्ति और तुरीय अवस्था।
B. व्यक्त (प्रकट) होने के कोष:- जड़, प्राण, मन, बुद्धि और आनंद।
 
अंतत: जड़ या अन्नरसमय कोष दृष्टिगोचर होता है। प्राण और मन का अनुभव होता है किंतु जाग्रत मनुष्य को ही विज्ञानमय कोष समझ में आता है। जो विज्ञानमय कोष को समझ लेता है वही उसके स्तर को भी समझता है।
 
अभ्यास और जाग्रति द्वारा ही उच्च स्तर में गति होती है। अकर्मण्यता से नीचे के स्तर में चेतना गिरती जाती है। इस प्रकृति में ही उक्त पंच कोषों में आत्मा विचरण करती है किंतु जो आत्मा इन पाँचों कोष से मुक्त हो जाती है ऐसी मुक्तात्मा को ही ब्रह्मलीन कहा जाता है। यही मोक्ष की अवस्था है।
 
इस तरह वेदों में जीवात्मा के पाँच शरीर बताए गए हैं- जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद। इस पाँच शरीर या कोष के अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग नाम हैं जिसे वेद ब्रह्म कहते हैं उस ईश्वर की अनुभूति सिर्फ वही आत्मा कर सकती है जो आनंदमय शरीर में स्थित है। देवता, दानव, पितर और मानव इस हेतु सक्षम नहीं।
 
कॉपीराइट वेबदुनिया 

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

30 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

30 नवंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

मेष राशि पर 2025 में लगेगी साढ़ेसाती, 30 साल के बाद होगा सबसे बड़ा बदलाव

property muhurat 2025: वर्ष 2025 में संपत्ति क्रय और विक्रय के शुभ मुहूर्त

ताजमहल या तेजोमहालय, क्या कहते हैं दोनों पक्ष, क्या है इसके शिव मंदिर होने के सबूत?