अगले बरस तू जल्दी आ...

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- अखिलेश श्रीराम बिल्लौर े
गणेश विसर्जन का समय आ गया। गली-मोहल्लों व बड़े-बड़े मॉल्स में गणेशजी की मूर्तियाँ अपनी क्षमता, अपने तरीके से स्थापित की गई थीं। दस दिनों तक गणेशजी के जयकारों ने आकाश गुंजायमान कर दिया था।

चारों तरफ उत्साह ही उत्साह ‍नजर आ रहा था। विशेषकर बच्चों में गणेशजी के उत्सव को लेकर अलग ही हर्ष रहता है। उनकी बालक्रीड़ाएँ शायद गणपति बप्पा को भी भाती हैं।

अब गणेशजी की प्रतिमाएँ चली जाएँगी। वातावरण में एक अजीब सा सन्नाटा छा जाएगा। ऐसा लगेगा जैसे हमसे कोई अपना बिछड़ गया हो। प्रतिमा चली जाएगी, गणेशजी हृदय में रह जाएँगे।

फिर भी... विसर्जन करने वालों से ‍एक निवेदन है----

भाइयों, पहले आप वहाँ जाइए, जहाँ गत वर्ष आपने प्रतिमाएँ विसर्जित की थीं। मेरा ख्याल है कि आपको वहाँ पिछले वर्ष की मूर्तियों के कुछ अंश जरूर मिल जाएँगे। अभी कुछ दिनों पूर्व गणेशोत्सव के आरंभिक दिनों में समाचार पढ़ा था कि मुंबई में समुद्र किनारे गत ‍वर्ष विसर्जित की गईं अनेक मूर्तियाँ क्षत-विक्षत अवस्था में पड़ी हैं।

जब समुद्र के ये हाल हैं कि वहाँ के पानी से मूर्तियाँ विघटित नहीं हो पा रही हैं तो यहाँ हमारे आसपास के जल स्रोतों में क्या होगा?

विचारणीय प्रश्न है?
धर्मग्रन्थों में किसी भी देवता की पूजा के लिए (उस पूजा में जिसमें विसर्जन होता है) मिट्टी या रेत की मूर्ति बनाई जाती है। अन्य किसी पदार्थ की नहीं। ऐसी ही मूर्ति बने जो पानी में पूरी तरह घुल जाए और उसका किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव न हो।
भाइयों, पहले आप वहाँ जाइए, जहाँ गत वर्ष आपने प्रतिमाएँ विस‍र्जित की थीं। मेरा ख्याल है कि आपको वहाँ पिछले वर्ष की मूर्तियों के कुछ अंश जरूर मिल जाएँगे।


परंतु आज इसका पालन नहीं होता? हम बेचारे अनेक गाँव वालों या अनपढ़ लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने का पाठ पढ़ाते हैं परंतु विषैले रसायनों से युक्त मूर्तियाँ अपने घरों में, दफ्तरों में बैठाते हैं।

जबकि हम स्वयं को पढ़ा-लिखा या ग्रेजुएट या इंजीनियर या डॉक्टर- कलेक्टर कहते हैं। इसलिए आओ संकल्प लें कि केवल मिट्टी की या रेत की प्रतिमा ही हम हमारे घर या दफ्तर में स्थापित करेंगे अन्यथा गणेशजी को केवल उनके मंदिर में जाकर मना लेंगे।
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