जीवन से लड़ने की प्रेरणा दे‍ती है गीता

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जीवन एक संग्राम है और इसलिए कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता का गान एक सुयोग्य पृष्ठभूमि का सर्जन है। भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, विश्व के मानव मात्र को गीता के ज्ञान द्वारा जीवनाभिमुख बनाने का चिरंतन प्रयास किया है।

जीवन रोने के लिए नहीं है, भाग जाने के लिए नहीं है, हंसने के लिए है, खेलने के लिए हैं, संकटों से, हिम्मत से लड़ने के लिए है, वैसे ही अखंड आशा और दुर्दम्य श्रद्धा के बल पर विकास करने के लिए है। गीता मानव मात्र को जीवन में प्रतिक्षण आने वाले छोटे-बड़े संग्रामों के सामने हिम्मत से खड़े रहने की शक्ति देती है।

आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के मंगलप्रभात के समय कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविंद से गीता का ज्ञान प्रवाह बहा और भारत को गीता का अमूल्य ग्रंथ प्राप्त हुआ। तबसे यह दिन भारत के ज्वलंत सांस्कृतिक इतिहास का एक सुवर्ण पृष्ठ बनकर रहा है।

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केवल भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के सूज्ञ व्यक्ति भावपूर्ण अन्तःकरण से गीता जयंती का उत्सव प्रतिवर्ष मनाते हैं। किसी भी ग्रंथ का जन्मदिवस मनाया जाना यह कदाचित्‌ सम्पूर्ण विश्व में गीता की ही विशेषता मानी जा सकती है।

गीता अर्थात्‌ योगश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविंद से स्रवित माधुर्य व सौंदर्य का वांगयीन स्वरूप! भगवान गोपालकृष्ण की प्रेम मुरली ने गोकुल में सभी को मुग्ध किया तो योगेश्वर कृष्ण की ज्ञान मुरली गीता ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रवृत्त किया।

तबसे लेकर आज तक अनेक ज्ञानी, भक्त, कर्मयोगी, ऋषि, संत, समाजसेवक और चिंतक, फिर वे किसी भी देश या काल के हों, किसी धर्म या जाति के हों, उन सभी को गीता ने मुग्ध किया है।

' कृष्णस्तु भगवान स्वयं' से मुख से प्रवाहित इस वांगमय ने मानव को जीवन जीने की हिम्मत दी है। किसी भी विशिष्ट धर्मसंघ या सम्प्रदाय की धुन में न पड़कर गीताकार ने मानव जीवन के चिरंतन मूल्यों को गीता में ग्रथित किया है।

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ऐसा अमूल्य ग्रंथ मानव मात्र को देकर भी कृष्ण की नम्रता कितनी अद्भुत है। भगवान स्वमुख से कहते हैं कि इसमें मेरा कुछ भी मौलिक नहीं है। 'ऋषिभिर्बहुधा गीतं' ऋषियों ने जो अनेक बार अनेक प्रकारों से गाया है, वही मैं फिर से कह रहा हूं।

भगवान की इस नम्रता से प्रसन्न होकर गाए हुए एक स्त्रोत में श्रीमदाद्यशंकराचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण को 'मेघसुंदरम्‌' कहकर उनकी बिरुदावलि गाई है।

समुद्र से पानी खींचकर बनने वाले बादल का पानी भले ही उसका स्वयं का न हो, परंतु उस पानी की मिठास उसकी अपनी है। उसी तरह कदाचित्‌ ज्ञान, विचार स्वयं के न भी हों फिर भी गीता का जो विरला ही माधुर्य है, वह श्रीकृष्ण का स्वयं का है ।

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