पंडों के पास सात पुश्तों का इतिहास

इतिहास संजोए हैं तीर्थस्थलों के पंडे

Webdunia
- योगेश मिश्र
ND

इंटरनेट पर पसरे ज्ञान संजाल को तलाशने के लिए बने तमाम छोटे-बड़े सर्च इंजनों के लिए भी नजीर है। तकरीबन सभी धार्मिक तीर्थों पर पंडों की झोली में रखे बही-खाते बहुत सारे परिवारों, कुनबों और खानदानों के इतिहास का ऐसा दुर्लभ संकलन हैं जिससे कई बार उसी परिवार का व्यक्ति ही पूरी तरह वाकिफ नहीं होता है। लाखों लोगों के ब्योरे के संकलित करने का यह तरीका इतना वैज्ञानिक और प्रमाणिक है कि पुरातत्ववेत्ता और संग्रहालयों के प्रबंधक भी इससे सीख ले सकते हैं।

सूचना क्रांति के महा विस्फोटक युग में आज भी हमारे तमाम धार्मिक तीर्थ पुरोहितों यानि पंडा समाज के पास राजा-महाराजाओं और मुस्लिम शासकों से लेकर देश भर के अनगिनत लोगों की पांच सौ वर्षों की वंशावलियों के ब्योरे बही खातों में पूरी तरह सुरक्षित हैं।

पंडों की बिरादरी के बीच सूबे के जिले ही नहीं, देश के प्रांत भी एकदम व्यवस्थित ढंग से बंटे हुए हैं। प्रयाग के तीर्थ पुरोहित गंगाधर के मुताबिक, 'अगर किसी जिले का कुछ हिस्सा अलग कर नया जिला बना दिया गया है तो भी तीर्थ यात्री के दस्तावेज मूल जिला वाले पुरोहित के नियंत्रण में ही रहते हैं। पुरोहित परिवार की संख्या अधिक होने पर भी अपने पूर्वजों से मिले प्रतीक चिन्ह को एक ही बनाए रखते हैं।'

आपके लिए शायद यह गौर करने वाली बात न हो। पर किसी तीर्थ में जाएं तो झंडे वाला पंडा, शंख वाला पंडा, डंडे वाला पंडा और घंटी वाले पंडा आदि-इत्यादि जरूर दिखते हैं। यह जो पंडों का प्रतीक चिन्ह है। वह उनके कुल के बारे में बताता है। अपने पूर्वजों के बारे में जानने के लिए आपको सिर्फ इतना जानने की जरूरत है कि आपकी दो-चार पीढ़ी पहले का पूर्वज आखिर जब तीर्थ यात्रा पर आता था तो किस प्रतीक चिन्ह वाले पंडे के जिम्मे उसको धार्मिक अनुष्ठान कराने का काम था। बस इतनी सी सूचना या जानकारी ही आपके पूर्वजों के बारे में सब कुछ बयान करने के लिए काफी होती हैं।

ND
इन पंडों के पास राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य नरेन्द्र देव, शुचिता कृपलानी समेत तमाम छोटे-बड़े लोगों की पूजा-अर्चना कराने का दावा करने वाले दस्तावेज और तीर्थ स्थलों में आने की तारीख, धार्मिक अनुष्ठान के ब्योरे इस तरह क्रमबद्घ रखे गए हैं कि कम्प्यूटर पर माऊस क्लिक करके जितनी देर में सूचना हासिल की जा सकती है। उससे कम समय में पंडे भी अपने बही-खाते से किसी आम और खास शख्स के बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। तीर्थ यात्री और पुरोहितों का संबंध गुरू-शिष्य पंरपरा का द्योतक है। पंडों की यजमानी दान तथा स्नान के आधार पर चलती है। प्रयागवाल के सभापति पंडित राम मोहन शर्मा बहुत फक्र से दावा करते रहे हैं, 'हमारा यजमानों से भावनात्मक संबंध है। आपके पास खानदान की वंशावली भले न हो। पर हम पुरोहितों के पास आपके सात पुश्तों की वंशावली मिलेगी।'

इन पुरोहितों के खाता-बही में यजमानों का वंशवार विवरण वास्तव में वर्णमाला के व्यवस्थित क्रम में आज भी संजो कर रखा हुआ है । पहले यह खाता-बही मोर पंख बाद में नरकट फिर जी-निब वाले होल्डर और अब अच्छी स्याही वाले पेनों से लिखे जाते हैं। वैसे मूल बहियों को लिखने में अब भी कई तीर्थ पुरोहित जी-निब का ही प्रयोग करते हैं। टिकाऊ होने की वजह से सामान्यतया काली स्याही उपयोग में लाई जाती है। मूल बही का कवर मोटे कागज का होता है। जिसे समय-समय पर बदला जाता है। बही को मोड़ कर मजबूत लाल धागे से बांध दिया जाता है।

आम तौर पर उसका कवर भी लाल रंग का बनाया जाता है क्योंकि लाल रंग पर कीटाणुओं का असर नहीं होता है। तीर्थ पुरोहित बहियों की तीन कापी तैयार करते हैं। एक घर में सुरक्षित रहती है। दूसरी घर पर आने वाले यजमानों को दिखाई जाती है। तीसरी तीर्थ स्थल पर लोहे के संदूक में रखी जाती है। सामान्यतः तीर्थ पुरोहित अपने संपर्क में आने वाले किसी भी यजमान का नाम-पता आदि पहले एक रजिस्टर या कापी में दर्ज करते हैं। बाद में इसे मूल बही में उतारा जाता है। यजमान से भी उसका हस्ताक्षर उसके द्वारा दिए गए विवरण के साथ ही कराया जाता है। बही की शुरुआत में बाकायदा अनुक्रमणिका भी होती है।

प्रत्येक पंडे का एक निश्चित झंडा या निशान होता है। दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं को अपने वंश पुरोहित की पहचान कराने वाली इन पताकाओं के निशान भी अपनी पृष्ठभूमि में इतिहास समेटे हुए हैं। भगवान राम ने लंका विजय के पश्चात प्रयाग के जिस पुरोहित को अपने रघुकुल का पुरोहित माना, उसके वंशज होने का दावा करने वाले पंडे आज भी हैं। वे कवीरापुर, बट्टपुर जिला अयोध्या के रहने वाले हैं। राजपूत युग के पश्चात यवन काल, गुलाम वंश, खिलजी सम्राट के समय भी इन तीर्थ पुरोहितों की महिमा बरकरार रखी गई थी। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दिया गया माफीनामा का फरमान प्रयाग के तीर्थ पुरोहित पंच भैया के यहां मौजूद है।

अकबर ने प्रयाग के तीर्थ पुरोहित चंद्रभान और किशनराम को 250 बीघा भूमि मेला लगाने के लिए मुफ्त दी थी। यह फरमान भी पंडों के पास सुरक्षित है। पंडों की बहियों में यह भी दर्ज है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कब प्रयाग आई थीं ? इनके पास नेहरू परिवार के लोगों के लेख व हस्ताक्षर भी मौजूद हैं। अकेले इलाहाबाद में 1500 पंडा परिवार धर्मकांड से अपनी आजीविका चला रहा है। गया में पितरों का श्राद्ध करने के लिए आपके पुरखों में से कभी भी कोई गया होगा तो उसकी भी इत्तिला इन पंडों के बही खातों से पलक झपकते ही मिल जाएगी। पंडा समाज में इस हाईटेक युग में भी बहियों के आगे कम्प्यूटर की बिसात कुछ भी नहीं है। यही वजह है कि पंडे अपने बहीखातों का इलेक्ट्रानिक डाकूमेंटकशन कराने को तैयार नहीं है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

शुक्र का कुंभ राशि में गोचर, इन 2 राशियों के लोगों को होगा नुकसान

जनवरी माह 2025 के प्रमुख व्रत एवं त्योहारों की लिस्ट

मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल और उत्तरायण का त्योहार कब रहेगा?

टैरो कार्ड्स का ज्योतिष कितना सही है, जानिए रहस्यमयी दुनिया का इतिहास

जय श्री हनुमान चालीसा | Shree Hanuman Chalisa Hindi

सभी देखें

धर्म संसार

21 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

21 दिसंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

janm dinak se jane bhavishya 2025 : जन्म दिनांक से जानिए कि कैसा रहेगा नया साल 2025

Merry Christmas 2024: क्रिसमस ट्री का रोचक इतिहास, जानें कैसे सजाते थे Christmas Tree

भानु सप्तमी के दिन क्या करते हैं?