भूमाफियाओं का मंदिर-मठों पर कब्जा

देते हैं भगवान को धोखा

Webdunia
- राघवेन्द्र नारायण मिश्र
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भू-माफियाओं ने अपना चोगा बदल लिया है और अब वे भगवान को भी धोखा देने लगे हैं। बाहुबलियों और जमीन के लालचियों ने भगवा चोला पहनकर मंदिरों और मठों की जमीन पर कब्जा शुरू कर दिया है। इन मठाधीशों में कई सामंत और आपराधिक तत्व शामिल हैं जो धर्मस्थलों की हजारों एकड़ जमीन पर चेले-चपाटों के साथ जमे हैं। धार्मिक न्यास बोर्ड ने जब इनके खिलाफ मुहिम चलाई तो इन लोगों ने कब्जा बरकरार रखने के लिऐ हर नुस्खे आजमाए।

अजगैबीनाथ में तो एक महंत प्रेमदास भारती ने खुद को एक लड़की के साथ मंदिर के एक कक्ष में बंद कर लिया। काफी मशक्कत के बाद उसे बाहर निकाला जा सका। बिहार में 4,074 पंजीकृत मंदिर-मठों में से 1,300 पर अब भी ऐसे ही छद्म और स्वयंभू महंतों का कब्जा है। मंदिरों और मठों की जमीन पर कब्जे के ये मामले अदालतों में लंबित हैं।

पटना के बाकरगंज स्थित भीखमदास ठाकुरबाड़ी पर आसाराम बापू के कब्जे को लेकर चला विवाद काफी चर्चित हुआ। ठाकुरबाड़ी की लगभग दो करोड़ रुपए की कीमत वाली जमीन पर कब्जा जमाए आसाराम बापू और उनके चेलों के खिलाफ जब कार्रवाई की गई तो धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल को जान से मारने की धमकी मिलने लगी।

कुणाल ने इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया और आसाराम बापू समेत तीन लोगों को सम्मन भी जारी हो चुका है। धार्मिक न्यास बोर्ड के अधिकारी बताते हैं कि गोपालगंज के माधोपुर स्थित विष्णु वैरागी मंदिर के महंत ने 21 साल तक न्यास बोर्ड को खर्चों का हिसाब दिया लेकिन बाद में एक स्वयंभू महंत इस पर काबिज हो गए और मंदिर को निजी संपत्ति घोषित कर दिया।

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बरौली गाँव में इस मंदिर की 50 बीघा जमीन है और यह 1955 से बोर्ड में पंजीकृत है। तत्कालीन महंत किशोर दास और उसके बाद महंत रामचंद्र दास ने न्यास बोर्ड की सत्ता मानी लेकिन बाद में भिखारी सिंह महंत बन गए और उन्होंने मंदिर को अपनी संपत्ति घोषित कर दी। यह विवाद अब तक सुलझ नहीं सका है।

गया के अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर के पंडों ने इसे निजी संपत्ति घोषित कर दिया है। धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष किशोर कुणाल अब इसे मुक्तकराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस मंदिर की व्यवस्था प्राचीनकाल से सार्वजनिक व्यवस्था के तहत ही चलती रही है।

परंपराओं के विपरीत कई महंतों ने विवाह कर लिया है फिर भी मंदिर-मठों की जमीन पर कब्जा बनाए हुए हैं। ऐसे तत्व न्यास को मुकदमों में उलझा देते हैं और लंबे समय तक जमीन और अन्य संपत्ति पर कब्जा बनाए रहते हैं। न्यास बोर्ड ने अध्यक्ष कुणाल की अगुवाई में मंदिरों और मठों की व्यवस्था में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। उनके प्रयास से राज्य सरकार ने अधिनियम में संशोधन भी किया है। दलितों को मंदिरों में पुजारी बनाया गया।

दलितों को न्यास समितियों में भी पदाधिकारी बनाया गया है। संगत-पंगत योजना के तहत दलितों को मंदिर में सभी अन्य जातियों के लोगों के साथ बैठाकर प्रसाद ग्रहण कराया जाने लगा है जो छुआछूत मिटाने की दिशा में सार्थक प्रयास कहा जा सकता है। मनेरी मठ में दलित जाति से आने वाले पुजारी जगदीश दास का प्रवचन सभी वर्ग के लोगों में पसंद किया जाता है। न्यास बोर्ड ने मुजफ्फरपुर में संत कबीर हृदय अस्पताल बनवाया है और बेगूसराय में मेडिकल कॉलेज की स्थापना का कार्य प्रगति पर है। नए मंदिरों का अधिग्रहण भी हो रहा है।

दरभंगा में श्यामा मंदिर को अधिग्रहीत किया गया तो बवाल हुआ लेकिन अब हाईकोर्ट ने भी इसकी वैधता पर मुहर लगा दी है। मुजफ्फरपुर में साईं मंदिर, पंचरुखी, आंबी का महामाया मंदिर और पर्वता में कबीरपंथी मठ, नालंदा में गर्म कुंड मंदिर अब कब्जे से मुक्तहोकर न्यास के अधीन हैं। मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया जा रहा है। बिहटा के बिहटेश्वरनाथ शिव मंदिर, बोधगया के जगन्नाथ मंदिर, मुजफ्फरपुर के मनियारी मठ और गरीबनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जा चुका है लेकिन अब भी एक हजार से अधिक मंदिर और मठ स्वयंभू महंतों के कब्जे में हैं।

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न्यास बोर्ड के तुलसी दास गोस्वामी कहते हैं कि वर्तमान अध्यक्ष किशोर कुणाल के प्रयास से दर्जनों मंदिरों और मठों को बाहुबलियों के कब्जे से मुक्तकराया गया है। उन्होंने अटाऊँ मठ की जमीन की अवैध बिक्री के खिलाफ भी कार्रवाई की है। पिछले दो साल में चालीस मंदिरों और मठों से अवैध कब्जा हटाया गया है। मंदिरों और मठों से असामाजिक तत्वों का कब्जा हटाने की इस मुहिम को सफलता तो मिली है लेकिन अभी बाहुबलियों के कब्जे से सैकड़ों मंदिरों को मुक्तकराया जाना बाकी है।

ऐसा नहीं है कि मंदिरों और मठों पर कब्जे को लेकर लड़ाई सिर्फ धार्मिक न्यास बोर्ड से ही होती हो महंतों के गुट भी आपस में टकराते रहे हैं। मंदिरों और मठों की जमीन पर कब्जे को लेकर खूनी खेल का इतिहास पुराना रहा है। सिर्फ औरंगाबाद में करीब 5,000 बीघा जमीन मठ-मंदिर मठाधीशों या इनके चेलों के नाम है। जमींदारी उन्मूलन के वक्त चालक सामंतों और मठाधीशों ने सीलिंग से फाजिल जमीन को ठिकाने लगाने का प्रयास पुरजोर ढंग से किया।

जब नक्सली आंदोलन का उभार हुआ तो ऐसी जमीन पर उनकी नजर गड़ी और सामाजिक संघर्ष तीखा होता चला गया। सिर्फ मठ और ठाकुरबाड़ी से जुड़े संत-शिष्यों में अब तक पाँच की हत्या हो चुकी है। ऐसी जमीनें बेची-खरीदी भी खूब गई। धूर्त साधु-संतों ने लाखों का वारा-न्यारा किया।

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