राजा शिबि ने दिखाई थी धर्म की महानता...

अद्वितीय और अतुलनीय हैं राजा शिबि

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धर् म औ र संस्कृत ि क ी महानत ा क ो दर्शान े वाल े राज ा शिब ि क ा दर्श न अद्विती य औ र अतुलनी य है । ए क पौराणि क कथ ा क े अनुसा र उशीनगर देश के राजा शिबि एक दिन अपनी राजसभा में बैठे थे।

उसी समय एक कबूतर उड़ता हुआ आया और राजा की गोद में गिर कर उनके कपड़ों में छिपने लगा। कबूतर बहुत डरा जान पड़ता था।

राजा ने उसके ऊपर प्रेम से हाथ फेरा और उसे पुचकारा। कबूतर से थोड़े पीछे ही एक बाज उड़ता आया और वह राजा के सामने बैठ गया।

बाज बोला- मैं बहुत भूखा हूं। आप मेरा भोजन छीन कर मेरे प्राण क्यों लेते हैं?

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राजा शिबि बोले- तुम्हारा काम तो किसी भी मांस से चल सकता है। तुम्हारे लिए यह कबूतर ही मारा जाए, इसकी क्या आवश्यकता है। तुम्हें कितना मांस चाहिए?

बाज कहने लगा- महाराज! कबूतर मरे या दूसरा कोई प्राणी मरे, मांस तो किसी को मारने से ही मिलेगा।

राजा ने विचार किया और बोले- मैं दूसरे किसी प्राणी को नहीं मारूंगा। अपना मांस ही मैं तुम्हें दूंगा। एक पलड़े में कबूतर को बैठाया गया और दूसरे पलड़े में महाराज अपने शरीर के एक-एक अंग रखते गए। आखिर में राजा खुद पलड़े में बैठ गए।

बाज से बोले- तुम मेरी इस देह को खाकर अपनी भूख मिटा लो।

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महाराज जिस पलड़े पर थे, वह पलड़ा इस बार भारी होकर भूमि पर टिक गया था और कबूतर का पलड़ा ऊपर उठ गया था। लेकिन उसी समय सबने देखा कि बाज तो साक्षात देवराज इन्द्र के रूप में प्रकट हो गए है और कबूतर बने अग्नि देवता भी अपने मूल रूप में खड़े हैं।

अग्नि देवता ने कहा- महाराज! आप इतने बड़े धर्मात्मा हैं कि आपकी बराबरी मैं तो क्या, विश्व में कोई भी नहीं कर सकता।

इन्द्र ने महाराज का शरीर पहले के समान ठीक कर दिया और बोले- आपके धर्म की परीक्षा लेने के लिए हम लोगों ने यह बाज और कबूतर का रूप बनाया था। आपका यश सदा अमर रहेगा।

दोनों पक्षी बने देवता महाराज की प्रशंसा करके और उन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्र्ध्यान हो गए।

ऐसे कई सच्चे उदाहरण हमारे चारों ओर बिखरे पड़े हैं, जो हमारी संस्कृति और धर्म की महानता व व्यापकता दर्शाते हैं। हमारा दर्शन अद्वितीय और अतुलनीय है। स्वयं कष्ट उठा कर भी शरणागत और प्राणी मात्र की भलाई चाहने वाली संस्कृति और कहां मिलेगी। वहीं ऐसा राजा भी कहां मिलेगा, जो नाइंसाफी नहीं हो जाए, इसलिए स्वयं को ही भोजन हेतु समर्पित कर दें।


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